Read this article in Hindi to learn about the Mendelian theories and its explanations.

मेंडल के वंशागति के नियमों में पृथक्ककरण का नियम (law of segregation) की जानकारी के अनुसार किसी जीन के एलील गैमीट बनते समय एक-दूसरे से पृथक हो जाते हैं अत: जितने प्रकार के गैमीट बनेंगे

(विशुद्ध एवं संकर) F1 या F2 में संतति उतने ही प्रकार के फीनोटाइप दर्शायेंगे । यहाँ मेंडल के मोनोहाइब्रिड क्रॉस को दर्शाने वाली गतिविधि दी जा रही हैं ।

गतिविधि:

मेंडल के मोनोहाइब्रिड क्रॉस में F2 संतति में वंशागत गुणों का विभिन्न अनुपात देखना ।

सिद्धान्त:

दो दो विशुद्ध ब्रीड करने वाली वेरायटी के जनकों में परस्पर क्रॉस करने की विधि को मोनोहाइब्रिड क्रॉस कहते हैं । इससे F1 पीढ़ी में हाइब्रिड (संकर) प्राप्त होते हैं । इन हाइब्रिडों में स्व-परागण कराने पर दो प्रकार के बराबर अनुपात में गैमीट बनते हैं ।

F2 पीढ़ी में इन गैमीटों के रेन्डम काम्बिनेशन कुल मिलाकर तीन प्रकार के बनते हैं:

(a) होमोजाइगस प्रभावी – 25%

(b) हेटेरोजाइगस प्रभावी – 50%

(c) होमोजाइगस अप्रभावी – 25%

चूंकि (a) तथा (b) बाहर से एक समान होंगे अर्थात् एक ही फीनोटाइप दर्शायेंगे प्रभावी एवं अप्रभावी लक्षण दर्शाने का अनुपात 3:1 होगा ।

आवश्यक सामग्री:

पीली एवं सफेद मक्का के 25-25 दाने, एक बैग, नोट बुक, पेन/पैंसिल ।

विधि:

(1) बैग में 25 दाने पीली मक्का के एवं 25 दाने सफेद मक्का के डाल दें ।

(2) पीली एवं सफेद मक्का के रूप में एलील का एक जोड़ा प्रदर्शित कर रहे हैं ।

(3) मान लें कि पीली मक्का का दाना प्रभावी है एवं सफेद अप्रभावी ।

(4) अब बैग से एक बार में दो दाने निकालें, उनका रंग देखें एवं दी हुई तालिका के निर्धारित कॉलम में उसको नोट करें । दानों को पुन: बैग में डाल दें । इस तरह से बैग से कम से कम 500 बार दाने निकाल कर उनकी प्रविष्टि तालिका में करें । इसे 1000 बार करने पर अनुपात और भी सही आने की सम्भावना है ।

(5) इस बात को सुनिश्चित करें कि प्रत्येक बार प्रत्येक बैग से निकाले गये दाने उसमें वापिस डाल दिये हैं । अर्थात् हर बार दाने निकालने के पूर्व बैग में दानों की संख्या उतनी ही रहेगी जितनी आरम्भ में थी ।

(6) प्रत्येक बार के निकाले गये दाने गैमीट का प्रकार एवं पृथक्करण की क्रिया का प्रदर्शन करता है । हर बार बैग को ठीक से हिला लें ताकि दोनों रंग के दाने मिक्स रहें ।

(7) तालिका में प्रविष्टि कर तीनों कॉम्बिनेशन की गिनती कर उनका परस्पर अनुपात निकालें ।

(1) मानव रक्त समूह का अध्ययन:

जैसा कि आप जानते हैं, मानव रक्त को विभिन्न समूहों में विभक्त किया गया है- A, B, AB एवं O समूह । अर्थात् किसी भी मनुष्य (स्त्री अथवा पुरुष) का रक्त इन चार समूहों में से एक अवश्य होगा । इसके अलावा कुछ मनुष्यों के रक्त में एक Rh फैक्टर उपस्थित हो सकता है या नहीं भी हो सकता । जिन मनुष्यों के रक्त में Rh फैक्टर उपस्थित होता है उन्हें Rh पॉजीटिव (Rh+) एवं जिनके रक्त में Rh-फैक्टर नहीं होता उन्हें Rh निगेटिव (Rh-) कहते हैं ।

अत: प्रत्येक व्यक्ति के रक्त को वर्गीकृत करने के लिए उन्हें A, B, AB एवं O में से एक समूह तथा Rh+ या Rh- समूह में रखा जा सकता है । मनुष्यों की किसी दी हुई जनसंख्या में उक्त समूहों का किस प्रकार वितरण है इसे देखने के लिए एक सर्वे (survey) किया जा सकता है । सर्वे सेम्पल कैसा भी लिया जा सकता है ।

जैसे आपकी अपनी कक्षा के सारे विद्यार्थी या आपके मोहल्ले के सारे व्यक्ति । सर्वे करते समय निम्न जानकारी लेकर उसे अपने रजिस्टर में लिखते जाएँ एवं उसके आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कर सकते हैं ।

सर्वे के दौरान निम्न तालिका में प्रविष्टियाँ कर सकते हैं:

विश्लेषण:

तालिका के आधार पर सभी रक्त समूहों की संख्या ज्ञात कर उनके वितरण को दर्शाएँ तथा कोई असामान्य जानकारी मिलने पर शिक्षक महोदय से चर्चा करें एवं आवश्यक हो तो किन्हीं चिकित्सक से भी अतिरिक्त जानकारी प्राप्त करें ।

मानव रक्त समूह का पेडिग्री चार्ट तैयार करना:

मानव रक्त समूह का पेडिग्री चार्ट अर्थात् वंशावली तैयार करना आसान नहीं है । क्योंकि किसी भी परिवार के सदस्यों की एक या दो अथवा तीन पीढ़ियों के रक्त समूह की जानकारी तो मिलती है किन्तु पेडिग्री तैयार करने हेतु अनेक पीढ़ियों का रेकार्ड उपलब्ध होना आवश्यक है ।

फिर भी, आप कुछ परिवार के सदस्यों के रक्त समूह की जानकारी लेकर निम्न तालिका से मिलान करें एवं रक्त समूहों की वंशागति की जानकारी प्राप्त करें । विवादास्पद संतान के वैध माता-पिता निर्धारण हेतु उक्त जानकारी सहायक होती है ।

Rh-फैक्टर:

यदि आपको सर्वे के दौरान ऐसी दम्पत्ति मिलें जिनमें पति Rh पॉजीटिव है एवं पत्नी Rh निगेटिव हैं तब उनकी संतान (यदि हों तो) के बारे में जानकारी प्राप्त करें । प्राय: ऐसे दम्पत्तियों की प्रथम संतान तो सामान्य होती है किन्तु द्वितीय संतान (यदि माता का गर्भावस्था में उपचार न हो तो) की मृत्यु एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटेलिस (erythroblastosis foetalis) नामक रोग से हो जाती है । आजकल इसका उपचार गर्भावस्था के दौरान किया जाता है अत: दम्पत्ति के रूधिर वर्ग एवं Rh-फैक्टर की पूर्व जानकारी सहायक होती है ।

Home››Genetics››