Read this article in Hindi to learn about the living and non-living things.

जीव जगत् की इस दुनिया में सजीवों एवं निर्जीवों को पहचानना एक सामान्य सा अवलोकन है । हम अनजाने ही बगैर उनके विशिष्ट लक्षणों को ध्यान दिए कह सकते हैं कि कौन सजीव हैं और कौन निर्जीव ? ऐसा करते समय हम किसी वस्तु में कुछ लक्षण जैसे गति अथवा चलन, पोषण, वृद्धि, श्वसन, उत्सर्जन, जनन एवं किसी उद्दीपन के प्रति किए जाने वाले व्यवहार को देखते है ।

किन्तु आवश्यक नहीं कि सारे सजीवों में उपरोक्त लक्षण एक साथ देखने को मिल जाएँ । लकड़ी की टेबल, कुर्सी या राह में पड़े पत्थर आदि को देखकर कोई भी व्यक्ति बगैर लक्षणों को याद किए कह देगा कि ये वस्तुएँ निर्जीव हैं । किन्तु कुछ वस्तुएँ ऐसी हैं जिन्हें देखकर उन्हें सजीव या निर्जीव कहना थोड़ा दुविधा में डाल सकता है ।

उदाहरण के लिए विभिन्न पौधों के बीज । बीज को देखकर कोई भी व्यक्ति उपरोक्त लिखे लक्षणों में से एक का भी साक्षात्कार नहीं करता । किन्तु हम सब जानते हैं कि बीज सजीव हैं अन्यथा समय आने पर उनमें अंकुरण कैसे हो जाता है ? इसी तरह कुछ कीट-पतंगों की लार्वा अवस्था तो गतिशील रहती है, वह पोषण भी करती है, वृद्धि भी होती है किन्तु जैसे ही वे प्यूपा अवस्था में परिवर्तित होते हैं उनमें एक भी लक्षण सजीवों का दिखाई नहीं देता ।

प्यूपा एक ही स्थान पर कई दिनों तक बिना कुछ गति किए या खाए-पिए पड़े रहते हैं किन्तु किसी दिन उसे तोड़कर उसमें से शिशु कीट निकलकर उड़ जता है । यह सिद्ध करता है कि प्यूपा एक सजीव है एवं उसके भीतर जीवन की सभी गतिविधियाँ चलती रहती हैं ।

गतिशीलता अथवा चलन:

सजीवों का यह लक्षण सामान्यतया जन्तु-जगत् के सदस्यों में आसानी से देखा जा सकता है किन्तु पादप-जगत् के सदस्य हमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक चलते हुए नहीं दिखते । फिर भी, कुछ फलों के तिड़कने से उनके बीजों का बिखराव या छुई-मुई के पौधे को स्पर्श करते ही उनकी पत्तियों का बन्द होकर लटक जाना, अनेक फूलों का दिन में खिलकर शाम तक उनकी पंखुड़ियों का पुन: बन्द हो जाना आदि ऐसी घटनाएँ हैं जो उनकी गतिशीलता दर्शाती हैं ।

एक कोशिकीय शैवालों को जन्तुओं की तरह ही गति करते देखा जा सकता है । प्रोटिस्ट जगत् के अनेक सदस्य जैसे- क्लेमिडोमोनास एवं वॉल्वॉक्स आदि डबरों के पानी की बूंद को सूक्ष्मदर्शी में देखने पर गति करते दिखाई दे सकते हैं ।

पोषण:

सम्पूर्ण जन्तु-जगत् को हम पोषण लेते हुए देखते हैं । किन्तु पादप-जगत् में उनके सदस्य हमारी तरह भोजन ग्रहण करते नहीं दिखते । पौधों की पत्तियाँ क्लोरोफिल एवं सूर्य-प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कर स्टार्च निर्माण कर संग्रहीत करती है । इसे देखने के लिए शैवालों एवं अन्य पौधों की पत्तियों में स्टार्च की उपस्थिति देखी जा सकती है ।

गतिविधि:

(i) किसी पौधे की कुछ मुलायम पत्तियों को एल्कोहल (रेक्टिफाइड स्प्रिट) में उबालो । इससे उनका हरा पदार्थ क्लोरोफिल निकल जाएगा एवं वे लगभग रंगहीन हो जाएँगी । अब इन पत्तियों को आयोडीन के हल्के घोल में डुबाएँ तो देखेंगे कि वे गहरे नीले या काले रंग की हो गई हैं । आयोडीन का यह परीक्षण पत्तियों में स्टार्च की उपस्थिति दर्शाता है ।

(ii) यदि किसी पौधे युक्त गमले को दो-तीन दिन तक पूर्ण रूप से अंधेरे कमरे में रख दिया जाए और फिर उसकी किसी पत्ती के साथ उपरोक्त क्रिया करेंगे तो आप देखेंगे कि पत्ती में स्टार्च की उपस्थिति नहीं होती । ऐसा इसलिए होता है कि अंधेरे में स्टार्च निर्माण की क्रिया रूक जाती है और संग्रहीत स्टार्च का पौधे द्वारा उपयोग कर लिया जाता है । यदि उक्त क्रिया किसी निर्जीव पदार्थ जैसे सूखी लकड़ी या पत्थर के साथ दुहराएं तो स्टार्च परीक्षण नहीं होगा ।

वृद्धि:

वृद्धि सजीवों का एक महत्वपूर्ण लक्षण हैं । पेड़-पौधों के बीज अंकुरण से वृद्धि करते हुए पौधों को बड़ा होकर वृक्ष बनते हम देखते ही हैं । जीव-जन्तुओं में भी बच्चे धीरे-धीरे वृद्धि कर वयस्क अवस्था प्राप्त करते   हैं । किन्तु निर्जीव पदार्थ जिस आकार के होते हैं वे कितनी भी अवधि के पश्चात् वैसे ही रहेंगे ।

गतिविधि:

वृद्धि देखने के लिए किसी भी प्रकार के बीजों को छोटे-छोटे गमलों में या मिट्टी के कुल्हड़ों में या प्लास्टिक के कप में बो दीजिए । अब उनका प्रतिदिन अवलोकन करें एवं थोड़ा-थोड़ा पानी देते रहें । बीज अंकुरित होंगे एवं नवजात पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती दिखेगी ।

साथ ही कुछ दिनों में उनकी शाखाएँ, पत्तियाँ भी विकसित होगी । आप अलग-अलग प्रकार के बीजों को बोने के बाद प्रतिदिन उनमें होने वाली वृद्धि का रिकार्ड भी रख सकते हैं । इससे आपको विभिन्न प्रकार के बीजों के अंकुरण एवं वृद्धि दर में अन्तर देखने को मिलेगा ।

श्वसन:

जीव-जन्तुओं में से कोई जीवित है अथवा नहीं इसका पता उसके श्वास लेने से ही चल जाता है । श्वास नहीं चल रही है अर्थात् जन्तु की मृत्यु हो चुकी है । किन्तु पेड़-पौधों में पौधे इसी तरह से सांस लेते नहीं दिखते । यद्यपि हम जानते हैं कि वे भी श्वसन करते हैं । यहाँ तक कि बीज जो हमको निर्जीवों की तरह ही दिखते हैं वे भी श्वसन करते हैं और यह देखकर हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि बीज सजीव    हैं ।    

इसके लिए निम्न गतिविधि की जा सकती है:

गतिविधि:

एक चौड़े मुंह की लम्बी परखनली लेकर उसमें गुलाबी रंग का फिनॉफ्थोलिन का थोड़ा-सा घोल डालें । अब उस परखनली में ऊपर से कॉटन का एक प्लग (चित्र अनुसार) घोल से थोड़ा ऊपर लगा दें । अब थोड़े से बीज (गेहूँ, चना या कोई भी) कॉटन प्लग के ऊपर रख दें एवं परखनली को कर्क से अच्छा बन्द कर दें ।

यदि मोम से सील कर दें तो और भी अच्छा होगा । आप देखेंगे कि कुछ घंटों पश्चात् फिनॉफ्थोलिन का रंग उड़कर वह रंगहीन हो गया है । ऐसा क्यों हुआ ? आप जानते ही होंगे कि कार्बन डाई ऑक्साइड के सम्पर्क में आने पर फिनॉफ्थोलिन का सूचक घोल रंगहीन हो जाता है ।

इस प्रयोग में निश्चित रूप से बीजों के श्वसन के दौरान मुक्त हुई CO2 के सूचक घोल के सम्पर्क में आने से ही सूचक घोल रंगहीन हुआ होगा । इस प्रयोग के साथ-साथ एक नियन्त्रण प्रयोग भी कर सकते हैं । एक दूसरी परखनली में सूखे बीजों के स्थान पर उबले हुए बीज या कंकड़-पत्थर रख दें ।

आप देखेंगे कि सूचक घोल के रंग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । यह सिद्ध करता है कि सूखे बीज सजीव हैं उबलने से बीज मृत हो जाते हैं एवं वे तथा कंकड़ पत्थर निर्जीव होने से श्वसन क्रिया नहीं करते । (देखिए चित्र 1.3)

जनन:

जीव-जन्तुओं में जनन क्रिया तो हम देखते ही हैं जैसे, कुतिया के बच्चे होना, गाय के बछड़े होना, स्त्रियों द्वारा बच्चों को जन्म देना आदि ।

किन्तु छोटे-जन्तुओं एवं पेड़-पौधों में जनन-क्रिया देखने के लिए निम्न गतिविधियाँ की जा सकती हैं:

गतिविधि:

(i) किसी पौधे (नींबू या अन्य) की पत्तियों पर यदि आपको अंडे दिखें तो उन्हें पत्ती सहित किसी काँच की बोतल में रख दें । थोड़ी अन्य पत्तियाँ भी साथ में रखें । अब बोतल को ऊपर से ढँक दें । ढक्कन में छोटे-छोटे छेद करें । अब प्रतिदिन अवलोकन करते जाएँ । आपको अंडों से इल्लियाँ (लार्वा) निकली दिखेंगी ।

लार्वा उन पत्तियों को खाएँगे । यदि पत्तियाँ सूखने लगें तो उसी पौधे की ताजी पत्तियाँ उसमें डालते रहें । लार्वा धीरे से प्यूपा अवस्था में बदलेंगे जो बोतल में कहीं पड़े रहते हैं । वे लार्वा की तरह न तो कुछ खाते हैं एवं न ही चलते-फिरते हैं । कुछ दिनों में उसमें से कोई तितली या पतंगा निकल आता है ।

(ii) इसी प्रकार का एक प्रयोग अनुसंधानात्मक खंड में (मक्खी का जीवन-चक्र) दिया गया है । उसे भी करके देखिए ।  पुष्प के जायांग से फल विकसित होता है । अनेक पुष्पों के जायांग फल में विकसित नहीं हो पाते क्योंकि उनमें जनन-क्रिया पूरी तरह से नहीं हो पाती अर्थात् परागण का अभाव या अन्य कोई त्रुटि । आप किसी पुष्प के नर जननांगों अर्थात् पुंकेसरों से परागकण निकालकर उनका अध्ययन भी कर सकते हैं । कोई भी निर्जीव वस्तु जनन-क्रिया नहीं करती ।

उत्तेजनशीलता:

प्रत्येक जन्तु अपने बाहरी या आंतरिक परिवर्तन होने पर उसके प्रत्युत्तर में कुछ न कुछ क्रिया करता है । हमें भूख, प्यास लगने का आंतरिक अनुभव होता है । कुछ अन्य जन्तुओं में तापक्रम का प्रभाव देखा जा सकता है । जैसे, कुछ केंचुओं को यदि एक ऐसी बोतल में रखें जो आधी काले कागज से लपेटी हुई हो ।

अब इस बोतल को प्रकाश में रखें । कुछ ही देरी में आप देखेंगे कि सारे केंचुए बोतल के अंधेरे वाले हिस्से में एकत्र हो गए हैं । इसी तरह छुई-मुई के पौधे को स्पर्श की संवेदना मिलते ही उसकी पत्तियाँ बन्द होने लगती हैं एवं धीरे-धीरे वह शाखा ही लटक जाती है ।

वातावरण में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप कॉकरोच में होने वाले व्यवहार देखने हेतु भी निम्न गतिविधियाँ की जा सकती हैं:

कॉकरोच एक कीटवर्ग का घरेलू कीट है । लगभग सभी प्राणियों में वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रति अनुकूलन करने की क्षमता होती है । किन्तु सभी जन्तुओं में यह क्षमता एक समान नहीं होती । कीट-वर्ग के जन्तु अन्य सभी जन्तुओं की तुलना में बेहतर अनुकूलन की क्षमता रखते हैं ।

वातावरण में अचानक होने वाले परिवर्तनों के प्रति कॉकरोच अपने आपको कैसे अनुकूलित करते हैं इसका अध्ययन करने के लिए एक योजना तैयार करें । वातावरण में प्रमुख रूप से होने वाले परिवर्तन ताप, प्रकाश एवं नमी जैसे कारकों में होता है ।

अत: कुछ ऐसे जालीदार पिंजरे बनवाना होंगे जिसमें कॉकरोच को रखकर उसकी गतिविधियों में होने वाले परिवर्तनों का निरीक्षण किया जा सके । इन प्रयोगों की अवधि कम भी हो सकती है एवं अधिक भी । यदि संभव है तो इसे 3-4 माह तक भी किया जा सकता है ।

पिंजरे बनाकर (आकार कम से कम 1 फुट लम्बे x 8” चौड़े x 9” ऊँचे) उनमें कृत्रिम रूप से भिन्न-भिन्न परिस्थितियाँ निर्मित की जा सकती हैं । तापक्रम हेतु अलग-अलग पिंजरों में अलग-अलग शक्ति के बल्ब लटकाए जा सकते हैं । पिंजरे की एक साइड में थोड़ा कार्डबोर्ड से अंधेरा कर दें ताकि एक ही पिंजरे में तापक्रम तो समान रहे किन्तु तीव्र-प्रकाश और कम प्रकाश या अंधेरे की स्थिति भिन्न हो जाए ।

इसी प्रकार कुछ पिंजरों को शुष्क वातावरण एवं कुछ को नमीयुक्त वातावरण में रखकर उसमें उनके व्यवहार को देखा जा सकता है । पिंजरे यदि उपलब्ध न हो सकें तो चौड़े मुँह की काँच की बोतलों में कॉकरोच छोड्‌कर ऊपर से कपास का प्लग लगा सकते हैं ।

कम तापमान में यदि उनकी गतिविधि देखना है तो शीतलपेय की खाली बोतलों का भी उपयोग किया जा सकता है । वातावरण में अचानक परिवर्तन लाने के लिए बोतलों का उपयोग बेहतर होता है । बोतल को पहले धूप में रखें तथा कॉकरोच को खाने की सामग्री रखें ।

कुछ देर बाद उसी बोतल को फ्रीज में रखकर गतिविधियों की तुलना कर सकते हैं । नमीयुक्त वातावरण निर्मित करने के लिए बोतल में जल-वाष्प का प्रवेश कराया जा सकता है । सामान्य तापक्रम पर एवं अत्यधिक तेज या अत्यधिक कम तापमान में उनके आहार ग्रहण करने पर भी अवलोकन किये जा सकते हैं ।

अवलोकन:

इन प्रयोगों में मोटे तौर पर कॉकरोच के व्यवहार अर्थात् वे किसी कारक में कितनी वृद्धि सहन करते हैं उनकी गतिविधियों से पता लगाया जा सकता है । यदि लम्बी अवधि तक अवलोकन करें तो उनकी प्रजनन क्रिया पर पड़ने वाले प्रभाव भी देखे जा सकते हैं तथा भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में रखने की स्थिति में उनके द्वारा लिए जाने वाले आहार पर भी प्रभाव देखा जा सकता है ।

कॉकरोच सर्वहारा है । जब भी उन्हें अवलोकन हेतु रखें, पिंजरों में पर्याप्त खाद्य-सामग्री भी रखें । अवलोकनों के अन्तर्गत गतिविधि में जो अन्तर देखें वहीं उनकी अनुकूलता है । यदि अत्यन्त कम तापक्रम में कॉकरोच अपनी गतिविधि कम कर एक स्थान पर विश्राम करने लगते हैं तो इसका अर्थ हुआ कि बदली हुई परिस्थितियों से सामंजस्य बनाने के लिए उन्होंने ऊर्जा कम करने हेतु गतिविधियाँ कम कर ली हैं ।

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