Here is a compilation of top eight experiments on animal physiology written in Hindi language.

Experiments on Animal Physiology


Contents:

  1. Experiment on the Study of Effect of pH and Temperature on Salivary Amylase
  2. Experiment on the Chemical Tests of Food Ingredients (Starch,Protein and Fat)
  3. Experiment on the Checking of Abnormal Substances Present in Supplied Urine Sample
  4. Experiment on the Study of Haemolysis and Crenation
  5. Experiment on the Study of Cross Section of Various Parts of Mammals by Permanent Slide
  6. Experiment on the Study of Human Girdles and Limb Bones
  7. Experiment on the Study of Bones of the Appendages
  8. Experiment on the to Observe Permanent Slide of Human Blood


Experiment # 1. सलाइवरी एमाइलेज की क्रिया पर pH तथा ताप के प्रभाव का अध्ययन (Study of Effect of pH and Temperature on Salivary Amylase):

(A) सलाइवरी एमाइलेज की क्रिया पर ताप का प्रभाव:

आवश्यक सामग्री:

परखनली, परखनली स्टैण्ड, बीकर, पिपेट, चाड़िया, स्प्रिट लैम्प, थर्मामीटर, नपनापर (Measuring Cylinder) कॉटन, स्टार्च, आयोडीन, पोटेशियम आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड आदि ।

क्रिया विधि:

(i) कॉटन की एक पतली फिल्म तैयार कर उसे पानी में डूबाते हैं एवं इसे दोनों हाथों के बीच में रखकर दबाते हैं जिससे पानी की अधिक सोखी हुई मात्रा उसमें से निकल जाये । कॉटन की इस गीली फिल्म को परखनली पर इस प्रकार रखते हैं जिससे वह छन्ते की भांति कार्य करे । अब इस छन्ते को एक साफ परखनली पर रखते हैं । अब रबर के टुकड़े या पैराफिन (मोम) को मुँह में रखकर चबाते हैं एवं बाहर आती हुई लार को परखनली मे छोड़ते हैं । इस प्रकार से लगभग 1 एम.एल. (ml) लार एकत्र करते हैं और इस लार को गीली काटन फिल्म द्वारा छानते है । अब 1 एम.एल. लार को लेकर उसमें 49 एम.एल. पानी मिलाते हैं जिससे 1:50 एन्वाइम घोल प्राप्त होता है ।

(ii) अब तीन परखनलियों की कतारें बनाते हैं । जिनमें से प्रत्येक में एक ग्राम आयोडीन घोल हो । इन्हें अलग-अलग तीन स्टैण्ड पर लगाते हैं ।

(iii) तीन एक्सपेरिमेन्टल टेस्ट ट्‌यूब बनाते हैं जिनमें प्रत्येक में 1 प्रतिशत स्टार्च का 5 एम. एल. और 1 प्रतिशत स्टार्च का 1 एम.एल. घोल हो । इन तीनों अलग-अलग परखनलियों को वाटर वाथ या वीकर में विभिन्न तापक्रमों जैसे 5 ± 2C, 37 ± 2C तथा 70 ± 2C पर रखते हैं । इस प्रयोग में Control Tube की आवश्यकता नहीं हो ती है, क्योंकि अनेक Experimental Tubes में प्रतिक्रिया (Reactions) की तुलना की जा सकती है । बीकर या वाटरबाथ में बर्फ का उपयोग परखनलियों को निम्न तापक्रम पर बनाये रखने हेतु किया जाता है:

(iv) प्रत्येक Experimental Tube में 1 एम.एल. घुले एन्जाइम की मात्रा डालते हैं । तुरन्त बाद ड्रापर के द्वारा (तीनों परखनलियों हेतु अलग-अलग ड्रापर) इन तीनों परखनलियों से 1-1 बूंद अलग-अलग लेकर इन्हें आयोडीन से भरी परखनली में डालते हैं ।

यह प्रक्रिया प्रत्येक 2 मिनट के बाद दुहराते हैं और ऐसा तब तक करते हैं जब तक कि आयोडीन का रंग परिवर्तित न हो । जब Experimental Tube के लिए, जो विभिन्न तापक्रमों पर रखी है, इस टाइम को नोट करते हैं । जब तक कि वह आयोडीन के साथ कोई रंग नहीं देता । इसे एक्रोमिक प्याइन्ट कहते हैं । अर्थात् आयोडीन के घोल के साथ नीला रंग नहीं आता ।

अवलोकन तालिका:

1 प्रतिशत स्टार्च के 5 एम.एल. को विभिन्न तापक्रमों पर पाचित एन्जाइम द्वारा अन्तिम बिन्दु तक पहुंचने में लगने वाले समय का विवरण ।

परिणाम:

37C तापक्रम के एक्रोमिक प्याइन्ट तक पहुंचने में कम समय लगता है क्योंकि इस तापक्रम पर एज्जाइम सबसे अधिक क्रियाशील रहता है । जबकि सबसे अधिक एवं सबसे कम तापक्रम पर एक्रोमिक प्याइन्ट तक पहुंचने में अधिक समय लगता है ।

स्पष्टीकरण:

रासायनिक प्रकृति से सभी एन्याइम प्रोटीन है । अधिक तापक्रम पर प्रोटीन अप्राकृतिक हो जाते हैं एवं उनकी क्रियाशीलता घट जाती है । इसीलिए मण्ड को पाचित करने में एन्त्राइम को अधिक समय लगता है । कम तापक्रम पर भी एज्जाइम अक्रिय हो जाते हैं तथा उनकी क्रियाशीलता घट जाती है । एन्जाइम की सबसे अधिक क्रियाशीलता 37C तापक्रम पर रहती है जो (Optimum Temperature) है । इसलिए मण्ड (Starch) माल्टोज में शीघ्र ही पच जाता है ।

सावधानियाँ:

(i) काँच के सभी उपकरण साफ एवं सूखे हुए हों ।

(ii) लार को हमेशा गीली काटन फिल्म द्वारा छानना चाहिए ।

(iii) सही ढंग से नाप-तौल की जानी चाहिए ।

(iv) प्रयोग करते समय तक वाटर बाथ का तापक्रम एक समान बना रहना चाहिए ।

(v) एक्रोमिक प्वाइन्ट सही नोट करना चाहिए ।

(B) सलाइवरी एमाइलेज की क्रिया पर pH का प्रभाव:

बफर सोल्यूशन के विभिन्न pH, बफर सोल्युशन की सान्द्रता 1ml NaOH मिलाकर तैयार करते है । प्रत्येक परखनली में 5 एम.एल. वाला 1 प्रतिशत स्टार्च + 2 ml pH बफर घोल 1 एम.एल. लार लेते हैं । इन परखनलियों को Water Bath में 37C तापक्रम पर रखते हैं एवं अवलोकन कर तालिका में नोट करते हैं ।


Experiment # 2. भोजन अवयवों (मण्ड, प्रोटीन तथा वसा) का रासायनिक परीक्षण (Chemical Tests of Food Ingredients [Starch,Protein and Fat]):

भोजन, जो हम लेते हैं उसमें विभिन्न प्रकार के पदार्थ (Substance) पाये जाते हैं । जिनमें मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट, स्टार्च, प्रोटीन, वसा, मिनरल, विटामिन्स सम्मिलित है । कार्बोहाइड्रेट्‌स हमारे भोजन के Basic Components (घटक) हैं जो शरीर के लिए प्रमुख ऊर्जा का स्त्रोत है ।

ये मोनोसेकेराइड्‌स, डायसेकेराइड्‌स तथा पोलीसेकेराइड्‌स स्टार्च हैं । स्टार्च (मण्ड) एक कम्पाउण्ड कार्बोहाइड्रेट है । प्रोटीन, हमारे भोजन का एक और मुख्य घटक है जो हमारे शरीर की कोशिकाओं का निर्माण करता

है । जबकि वसा तथा तैल भी मुख्य घटक है जो कार्बोहाइड्रेट से दुगनी कैलारी वाले होते हैं ।

हमारे भोजन में पाये जाने वाले अवयवों (मण्ड, प्रोटीन तथा वसा) का रासायनिक परीक्षण:

(1) मण्ड (Starch) परीक्षण:

(पोलीसेकेराइड (Polysaccherides):

मण्ड एक कार्बोहाइड्रेट है जो कम्पाउण्ड कार्बोहाइड्रेट के अन्तर्गत आता है यह एक पालीसेकेराइड भी है ।

1. आयोडीन टेस्ट:

परीक्षण (Test):

एक साफ परखनली में 2 मि॰ली॰ चावल/गेहूँ/चना/आलू का निष्कर्षण (Extract) लीजिये इसमें आयोडीन विलयन की कुछ बूंदें डालिये ।

निरीक्षण (Observation):

गहरा नीला रंग दिखाई देने लगेगा ।

परिणाम (Result):

आयोडीन की बूंदों के मिलाने से गहरे नीले रंग का होना स्टार्च की उपस्थिति दर्शाता है ।

2. बेनेडिक्ट्स, फेहलिंग, टेस्ट:

परीक्षण (Test):

हाइड्रोलिसिस के उपरान्त (Benedicts Fehling’s test after hydrolysis)

एक साफ परखनली में स्टार्च का निष्कर्षण (Extract) लेकर उसमें कुछ बूंद हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की डालकर उबालें ।

इस विलयन को अब NaOH मिलाकर क्षारीय (एल्कलाइन) बना लीजिये अब इसमें बेनेडिक्ट्स फेहलिंग घोल की बूंदें मिलाइये ।

निरीक्षण (Observation):

नारंगी या गहरे ईट के जैसा रंग परख नली में आयेगा ।

परिणाम (Result):

मोनोसेकेराइड्‌स की उपस्थिति प्रदर्शित करता है जो कि स्टार्च के द्वारा होता है ।

B. प्रोटीन का परीक्षण (Test of Proteins):

i. बाइयूरेट टेस्ट:

परीक्षण:

एक परखनली में दिये गये विलयन की 3 एम॰एल॰ मात्रा लेकर उसमें 1 एम॰एल॰ सोडियम हाइड्रॉक्साइड तथा 1 प्रतिशत सान्द्र, कापर सल्फेट विलयन मिलाइये ।

निरीक्षण:

बैंगनी या गुलाबी रंग दिखाई पड़ने लगेगा ।

परिणाम:

प्रोटीन उपस्थित है ।

ii. मिलन टेस्ट (Millions Test):

परीक्षण:

एक साफ परखनली में दिये हुये विलयन की 3 एम॰एल॰ लेकर उसमें 2 एम॰एल॰ मरक्यूरिक सल्फेट डालकर 1 मिनिट तक गरम कीजिये । पीला अवक्षेप आने पर ठण्डा कीजिये । उसमें 1 प्रतिशत सोडियम नाइट्रेट की 2 बूंद डालकर गरम कीजिये ।

निरीक्षण:

(i) पीला अवक्षेप आयेगा ।

(ii) पीला अवक्षेप बदलकर लाल अवक्षेप हो जायेगा ।

परिणाम:

(i) प्रोटीन हो सकता है ।

(ii) प्रोटीन उपस्थित है ।

iii. एल्डीहाइड टेस्ट (Aldehyde Test):

परीक्षण:

एक साफ परखनली में दिये हुए विलयन की 3 एम॰एल॰ मात्रा लीजिये । इसमें 8 प्रतिशत फार्मल्डीहाइड की 1 बूंद तथा 5 एम॰एल॰ मरक्यूरिक सल्फेट डालिये । मिश्रण को हिलाइये अब 2 सीसी सान्द्र सल्पयूरिक

अम्ल मिलाइये ।

निरीक्षण:

बैंगनी या परपल (Purple) रंग आता है ।

परिणाम:

प्रोटीन उपस्थित है ।

iv. निनहाइड्रिन टेस्ट (Ninhydrin Test):

परीक्षण:

एक साफ परखनली में दिये हुये विलयन की 3 एम॰एल॰ मात्रा लीजिये अब इसमे 1 प्रतिशत ट्राई कीटो हाइड्रिडीन मिलाइये । इस मिश्रण को 2 मिनिट तक उबालिये फिर ठण्डा कीजिये ।

निरीक्षण:

नीला रंग आता है ।

परिणाम:

प्रोटीन उपस्थित है ।

3. वसा का परीक्षण (Test of Fats):

a. अर्द्ध पारदर्शक धब्बा परीक्षण (Translucent Spot Test):

परीक्षण:

दिये गये विलयन की एक बूंद को सादे कागज के ऊपर रखिये ।

निरीक्षण:

एक अर्द्ध पारदर्शक धबा दिखाई देने लगता है ।

परिणाम:

वसा उपस्थित है ।

b. इमल्सीफिकेशन परीक्षण (Emulsification Test):

परीक्षण:

दिये गये नमूने की 3 एम॰एल॰ को एक स्वच्छ परखनली में लेकर 2 एम॰एल॰ ओलीक अम्ल तथा थोड़ा सा तनु कास्टिक सोडा डालिये ।

निरीक्षण:

साबुन जैसा बन जाता है ।

परिणाम:

वसा उपस्थित है ।

c. घुलनशील परीक्षण (Solubility Test):

परीक्षण:

तीन साफ परखनलियां लीजिये इनमें क्रमश: 1,2,3 नम्बर डाल दीजिये । तीनों परखनलियों में दिये हुये नमूने की 3-3 एम॰एल॰ मात्रा डाल दीजिये । प्रथम परखनली में 5 एम॰एल॰ पानी, द्वितीय में 5 एम॰एल॰ ईथर तथा तृतीय में 5 एम॰एल॰ क्लोरोफार्म डाल दीजिये ।

निरीक्षण:

प्रथम परखनली में दिया गया नमूना अघुलनशील है । द्वितीय, तृतीय में नमूना घुलनशील है ।

परिणाम:

वसा उपस्थित है ।

d. परीक्षण:

एक परखनली में नमूने का 2ml लीजिए इसमें 1ml सूडान मिलाइये ।

निरीक्षण:

गुलाबी रंग की बूंदें विलयन में हो जाती हैं ।

परिणाम:

वसा उपस्थित है ।


3. Experiment on the Checking of Abnormal Substances Present in Supplied Urine Sample:  

आमतौर पर मानव मूत्र हल्के पीले रंग का  होता है जिसमें पानी यूरिया, तथा कई नाइट्रोजन उत्सर्जी पदार्थ (जैसे अमोनिया, यूरिक अम्ल, क्रियेटिनाइन तथा हिप्यूरिक अम्ल) मिनरल लवण तथा कुछ नान नाइट्रोजीनस कार्बनिक पदार्थ सम्मिलित हैं, पाये जाते है । परन्तु एक व्यक्ति जो उपापचयी या रीनल डिसआर्डर से ग्रस्त होता है तो वह ग्लूकोज एल्युमिन, एसीटोन बाइल साल्ट इत्यादि मूत्र में उत्सर्जन करता

है । ऐसे मूत्र सेम्पल में असामान्य पदार्थो के मूत्र सेम्पल की जांच की जाती है ।

मूत्र सेम्पल में असामान्य पदार्थों की उपस्थिति की जांच:

A. यूरीया का परीक्षण (Test for Urea) यूरीऐज परीक्षण (Urease Test):

परीक्षण:

मूत्र नमूने का 5 एम॰एल॰ का स्वच्छ परखनली में लीजिये इसमें फीनॉल रेड की 4-5 बूंदें डालिये । अब धीरे-धीरे सोडियम हाइड्रॉक्साइड की बूंदें मिलाइये जब तक कि विलयन हल्के गुलाबी रंग का नहीं हो जाता अब इसमें 1 प्रतिशत एसिटिक एसिड की कुछ बूंदें डालिये जब तक कि हल्का गुलाबी रंग गायब नहीं हो जाता । अब इसमें यूरीएच की आधी गोली पीसकर डालिये अब इसे हिलाइये ।

निरीक्षण:

विलयन लाल रंग का हो जाता है ।

परिणाम:

यूरिया उपस्थित है ।

B. शर्करा का परीक्षण (Test for Sugar):

परीक्षण:

(a) बेनिडिक्ट परीक्षण (Benedicts Test):

मूत्र नमूने का, 2 एम॰एल॰ एक स्वच्छ परखनली में लीजिये इसमें 2 एम॰एल॰ बेनिडिक्टस विलयन मिलाइये । इसे उबालिये तथा कमरे के तापक्रम पर ठण्डा होने दें ।

(b) फेहलिंग्स परीक्षण (Fehling’s Test):

मूत्र नमूने का 2 एम॰एल॰ एक स्वच्छ परखनली में लीजिये तथा फेहलिंग विलयन ‘ए’ तथा ‘बी’ का 2 एम॰एल॰ इसमें मिलाइये । अब इसे दो मिनिट गर्म कीजिये तथा कमरे के तापक्रम तक ठण्डा होने दें ।

निरीक्षण:

(a) गर्म करने पर पहले हरा पीला तथा बाद में के ईट के रंग का अवक्षेप आता है ।

(b) हरा, पीला, पीला लाल तथा लाल अवक्षेप आता है ।

परिणाम:

(a) हरा रंग थोड़ी मात्रा, पीला एवं ज्यादा मात्रा एवं ईट रंग शर्करा की ज्यादा मात्रा

दर्शाता है ।

(b) कम से ज्यादा ग्लूकोज की मात्रा उपस्थित है ।

C. एल्ब्यूमिन (प्रोटीन) का परीक्षण:

परीक्षण:

(a) सल्फो सेलीसिलिक अम्ल परीक्षण:

एक स्वच्छ परखनली में मूत्र नमूने का 2 एम॰एल॰ लीजिये अब इसमें 2 एम॰एल॰ 30 प्रतिशत सल्फोसेली-सिलिक अम्ल मिलाईये । परखनली को गर्म कीजिये ।

निरीक्षण:

एक सफेद या धुएं जैसा (सफेद बादल जैसा रंग) ।

परिणाम:

एल्ब्यूमिन उपस्थित ।

(b) हेलर्स परीक्षण (Heller’s Test):

एक स्वच्छ परखनली में 5 एम॰एल॰ राबर्ट विलयन (HNO3 + MgSo4) लीजिये परखनली को झुकाइये । अब इसमें मूत्र नमूने की कुछ बूंदें ड्रापर की मदद से अंदर की तरफ डालिये कि राबर्ट विलयन के ऊपर एक सतह बन जाये ।

निरीक्षण:

मूत्र नमूने तथा राबर्ट विलयन के बीच सफेद रिंग बन जाती है ।

परिणाम:

मूत्र नमूने में एल्ब्यूमिन उपस्थित है ।

D. बाइल साल्ट का परीक्षण (Test for Bile Salts):

(a) एम॰एल॰ स्मिथ रियेजेण्ट (टिंक्चर आयोडीन + इथाइल अल्कोहल 1:9 अनुपात) में लें । परखनली को झुकायें अब उसमें मूत्र नमूने की कुछ बूंदें परखनली में धीरे से डालें ।

निरीक्षण:

एक हरी रिंग दोनों के बीच बन जाती है ।

परिणाम:

मूत्र में बाइल साल्ट उपस्थित है ।


Experiment # 4. हीमोलाइसिस तथा क्रीनेशन का अध्ययन (Study of Haemolysis and Crenation):

जब कोशिका झिल्ली के दोनों तरफ पानी तथा विलयक (Solutes) की अपेक्षित सान्द्रता, समान होती है तो विलयन आइसोटोनिक कहलाता है । 0.9 प्रतिशत सोडियम क्लोराइड तथा 5 प्रतिशत ग्लूकोज विलयन, मानव इरीओसाइट्‌स के लिए आइसोटोनिक होता है ।

ऐसे विलयन जिनका अन्तराकोशिय पल्युड (Intra Cellular Fluid) से निम्न विलेयक सान्द्रता होती है, हाइपोटोनिक कहलाते हैं, परन्तु जब यह ज्यादा होता है तो हाइपर टोनिक विलयक कहलाते हैं । जब कोशिकायें, हाइपोटोनिक विलयन में रखे जाते हैं तो पानी एण्डोस्मोसिस विधि द्वारा कोशिका के अन्दर आता है ।

जन्तु कोशिका में एण्डोस्मोसिस कोशिका को फाड़ (Rupture) सकती है क्योंकि कोशिका अवयव (Cell Contents) के फूलने से, झिल्ली उसे सहन नहीं कर पाती । हाइपोटोनिक विलयन में लाल रक्त कोशिकायें (RBC) फूल कर फट जाती हैं और कुछ समय पश्चात हीमोग्लोबिन बाहर आ जाता है । इसे हीमोलाइसिल कहते हैं ।

जब पादप कोशिका हाइपर टानिक विलयन में रखी जाती है तो कोशिका द्रव्य प्लाज्या झिल्ली के साथ कोशिका भित्ति से वापिस (With Draw) हो जाता है यह एक्सोसमोसिस के कारण होता है । अर्थात् वेक्योल से पानी का बाहर बहाव होना । यह विधि प्लाजमोलाइसिस कहलाती है । इरीथ्रोसाइट्‌स (रक्त कोशिकाओ) में एक्सोस्मोसिस (Exosmosis) सिकुड़न का कारण होती है, यह सिकुड़न का दिखना क्रीनेशन कहलाता है ।

प्रयोग:

मानव रक्त की लाल रूधिर कोशिकाओं (RBC) में हीमोलाइसिस तथा क्रीनेशन का अध्ययन । (To Study Haemolysis and Crenation of RBC from Human Blood).

आवश्यक उपकरण एवं सामग्री:

स्लाइड्‌स, सूक्ष्मदर्शी, स्प्रिटलेम्प, 3 प्रतिशत 9 प्रतिशत तथा 2 प्रतिशत NaCl विलयन, एल्कोहल, ‘छेदनेवाली’ सुई, ड्रापर, रूई तथा स्प्रिट ।

विधि:

(i) तीन स्वच्छ स्लाइड्‌स लीजिये उन्हें A B C चिन्हित कीजिये अब A में 3 प्रतिशत, B में 9 प्रतिशत, तथा C में 2 प्रतिशत, NaCl विलयन की एक एक बूंद ड्रापर की मदद से स्लाइड्‌स पर रखिये ।

(ii) अब एल्कोहल या स्प्रिट की मदद से अपने बायें हाथ की मध्य उंगली को रूई से साफ तथा स्टरलाइज कीजिये ।

(iii) छेदने वाली सुई को साफ कर उसे एल्कोहल या स्प्रिट में डालकर स्टरलाइज कीजिये उसे Flame के उपर रख कर गर्म कीजिये । ज्यादा अच्छा होगा कि डिस्पोजेबल सुई (Disposable Needle) ले ।

(iv) स्तरलाइज सुई से मध्य उंगली को छेदे (Prick) निकले हुये रक्त की एक एक बूंद प्रत्येक A B C स्लाइड पर रखे हुये विलयन पर रखें ।

(v) 5 मिनिट पश्चात् प्रत्येक स्लाइड को सूक्ष्मदर्शी में परीक्षण करें ।

निरीक्षण  (Observation):

(i) 3 प्रतिशत NaCl विलयन (हाइपोटोनिक विलयन) वाली “A” Slide में RBC पानी को अवशोषित कर फूल जाते हैं । इस प्रकार लगातार पानी को अवशोषित करने से RBC फट जाते है । तथा हीमोलाइसिस करते है तथा घोस्ट झिल्ली (कटी-फटी) छोड़ देते है ।

(ii) 9 प्रतिशत NaCl विलयन (आइसोटोनिक विलयन) वाली ठ” क्लाइड में ७२३६ अपने पुराने फार्म में और आकार में आ जाते है ।

(iii) 2 प्रतिशत NaCl विलयन (हाइपर टानिक विलयन) वाली C स्लाइड में RBC पानी को एक्सोसमोसिस द्वारा खो देते हैं तथा सिकुड़ी हुई (Shrunken) दशा में दिखते हैं । इसे क्रीनेशन कहते है ।

निष्कर्ष:

आइसोटोनिक विलयन में रक्त कोशिकायें आकार में सामान्य रहती हैं क्योंकि जल की गति कोशिका भित्ति को पार नहीं कर पाती । हाइपरटोनिक विलयन में कोशिकाओं से पानी बाहर आ जाता है अर्थात् एक्सोसमोसिस होती है और सिकुड़ कर क्रिनेटेड हो जाती है ।

हाइपोटोनिक विलयन में पानी कोशिकाओं के अन्दर प्रवेश करता है अर्थात् एण्डोस्मोसिस होती है और एक अवस्था ऐसी आती है जब कोशिका फट जाती है । बची हुई फटी भित्ति बाद में घोस्ट कहलाती है ।


Experiment # 5. स्थाई स्लाइड्स द्वारा स्तनी (Mammal) के अंगों की अनुप्रस्थ काट का अध्यय (Study of Cross Section of Various Parts of Mammals by Permanent Slide):

A. स्तनी हड्डी की अनुप्रस्थ काट (T.S. of Bone of Mammal):

लक्षण:

(i) यह स्तनी की हड्डी की अनुप्रस्थ काट है जो हैवरसियन तंत्र प्रदर्शित करती है ।

(ii) इसकी सबसे बाहरी पर्त पेरीओस्टियम होती है । हद्धी के मध्य में गुहा होती है जो बोन मैरो कहलाती है तथा एण्डीस्टियम द्वारा आस्तरित होती है ।

(iii) पेरीओस्टीअम संयोजी ऊतक की तथा एण्डोस्टियम ऑस्टियोब्लास्ट कोशिकाओं की बनी होती है ।

(iv) पेरीओस्टीयम तथा एन्होस्टीयम के मध्य का स्थान मैट्रिक्स कहलाता है जिसमें अनेकों हैवरसियन सिस्टम्स पाये जाते हैं ।

(v) हैवरसियन सिस्टम, स्तनियों की हहुईा का मुख्य लक्षण है । प्रत्येक हैवरसियन सिस्टम के केन्द्र में हैवरसियन कैनाल पायी जाती है । यह अनेकों समकेन्द्रिक हैवरसियन लैमिली द्वारा घिरी रहती है यह ऑस्टियोसाइट्‌स की बनी होती है ।

ऑस्टियोसाइट्‌स लैक्युनी में बन्द रहती है । हैवरसियन कैनाल में रक्त वाहिकाएँ पायी जाती है । ऑस्टियोसाइट्‌स हैवरसियन कैनाल में मौजूद रक्त वाहिकाओं से ऑक्सीजन तथा खाद्य पदार्थ प्राप्त करते हैं ।

पहचान: हैवरसियन तंत्र (सिस्टम) द्वारा

B. स्तनी की उपस्थि की अनुप्रस्थ काट (T.S. Cartilage of Mammal):

(a) हायलिन उपस्थि (Hyaline Cartilage):

(i) सूक्ष्म दृष्टि से यह साफ हल्के नीले रंग का ग्लासीपदार्थ (Substance) है ।

(ii) यह फायबर झिल्ली पेरीकाण्ड्रियम द्वारा घिरा रहता है, जिसमें कई रुधिर वेसल्स होती हैं जिसके द्वारा पोषण प्राप्त होता है ।

(iii) इसमें काण्ड्रिन की मेट्रिक्स तथा कोण्ड्रोब्लास्ट या कोण्ड्रोसाइटस पाये जाते हैं ।

(iv) काण्ड्रोब्लास्ट काण्ड्रिन का स्त्रवण करते हैं ।

(v) हायलिन उपस्थि, हड्डीयों के सिरे पर पाई जाती है ।

(b) फायब्रो उपस्थि (Fibro Cartilage):

(i) यह फायब्रो उपस्थि की अनुप्रस्थ काट है ।

(ii) इसकी मेट्रिक्स में मोटे सफेद तन्तुओं के बण्डल पाये जाते है ।

(iii) कॉण्ड्रोसाइट्‌स, अण्डाकार या थोड़े लम्बे होते हैं ।

(iv) यह स्तनियों में इण्टर वर्टीब्रल उपस्थि डिस्क में पाये जाते हैं ।

(c) इलास्टिक उपस्थि (Elastic Cartilage):

(i) यह इलास्टिक उपस्थि की अनुप्रस्थ काट है ।

(ii) इसमें कई पीले तन्तु पाये जाते हैं ।

(iii) कॉण्ड्रोसाइट्‌स थोड़े गोलाकार होते हैं, जो मेट्रिक्स में फैलें रहते हैं ।

(iv) ये स्तनियों के बाहय कर्ण, नाक के सिरे पर तथा इपीग्लोटिस में पाये जाते हैं ।

C. स्तनी मेरुरज्जु की अनुप्रस्थ काट (T.S. of Spinal Cord of Mammal):

लक्षण:

(i) यह स्तनी के मेरुरज्जु की अनुप्रस्थ काट की स्लाइड है ।

(ii) इसके भीतरी भाग में डॉर्सल खींच तथा निचले भाग में वेन्ट्रल फिलर पाया जाता है ।

(iii) इसके बीचों-बीच एक सेन्ट्रल कैनाल है जिसका सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है ।

(iv) सेन्ट्रल कैनाल के चारों ओर धूसर पदार्थ तथा इसके बाहर श्वेत पदार्थ होता है ।

(v) धूसर पदार्थ डॉर्सल सतह की ओर डॉर्सल हर्ज तथा वेन्द्रल सतह की ओर वेन्द्रल होने की सतह निकली रहती है ।

(vi) ये हॉर्न दोनों ओर मूल (Root) का निर्माण करते हैं ।

(vii) मेरुरज्जु एक पतली झिल्ली ड्‌यूरामेटर द्वारा ढँका रहता है ।

(viii) दोनों ओर की मूलों में तन्त्रिका तन्तु होते हैं ।

पहचान: H के आकार के ग्रे मैटर की उपस्थिथी द्वारा ।

D. स्तनी अंडाश्य की अनुप्रस्थ काट (T.S. of Ovary of Mammal):

लक्षण:

(i) यह स्तनी की अंडाशय की अनुप्रस्थ काट की स्लाइड है ।

(ii) अंडाशय की बाहरी परत जनन (Germinal) एपीथीलियम की बनी होती है तथा भीतरी भाग स्ट्रोमा कहलाता है ।

(iii) स्ट्रोमा में रुधिर कोशिकाएँ, तन्त्रिका तन्तु तथा ग्रेफियन फॉलिकल्स बिखरे रहते हैं ।

(iv) प्रत्येक ग्रेफियन फॉलिकिल, जनन एपीथीलियम की कोशिका से बनती है ।

(v) ग्रेफियन फॉलिकिल में एक ओवम होता है ।

(vi) फॉलिकिल गुहा में एक द्रव भरा रहता है ।

(vii) परिपक्व ग्रेफियन में बाहर की ओर बहुस्तरीय मैखेना ग्रेन्यूलोसा होती है ।

(viii) फॉलिक्यूलर गुहा में ऊसाइट स्थित होता है इसके अन्दर चारों ओर विटेलाइन झिल्ली तथा बाहर मोटा स्तर जोना रेडिएटा होता है ।

(ix) जोना रेडिएटा के बाहर वाला स्तर कोरोना रेडिएटा कहलाता है ।

(x) परिपक्व फॉलिकिल फटकर अण्डाणुओं को मुक्त कर देती है तथा इनमें रुधिर भर जाता है ।

(xi) फॉलिक्यूलर कोशिकाएँ रुधिर के थक्के के साथ मिलकर कॉर्पस ल्यूटियम बनाती

(xii) कॉपर्स ज्यूटियम ग्रन्थिल रचना होती है, जो प्रोजेस्ट्रोन तथा रिलेक्सिन नामक मादा हॉर्मोन्स स्रावित करती है ।

पहचान:

ग्रेफियन फॉलिकिल की उपस्थिति द्वारा ।

E. स्तनी वृषण की अनुप्रस्थ काट (T.S. Testes of Mammal):

लक्षण:

(i) यह स्तनी के वृषण की अनुप्रस्थ काट की स्लाइड है ।

(ii) प्रत्येक वृषण में अनेक सेमीनिफेरस ट्‌यूख्स स्थित है ।

(iii) सेमीनिफेरस ट्‌यूब्यूल्स के बीच बने रिक्त स्थानों में अन्तराली कोशिकाएँ तथा लीडिग्स कोशिकाएँ पायी जाती है ।

(iv) लीडिग्स कोशिकाएँ एण्ड्रोजिन, नर हॉर्मोन स्रावित करती हैं ।

(v) प्रत्येक सेमीनिफेरिस ट्‌यूब्यूल के बाहर की ओर ट्‌यूनइका प्रोप्रिया तथा भीतर की ओर जनन एपीथीलियम होती है ।

(vi) जनन एपीथीलियम से स्पर्मस तथा सर्टोली कोशिकाएँ बनती हैं ।

(vii) सर्टोली कोशिकाएँ स्पर्मस का पोषण करती है ।

पहचान:

शुक्राणु तथा सरटोली कोशिकाओं की उपस्थिति द्वारा ।

F. स्तनी वृक्क की खड़ी काट:

लक्षण:

(i) वृक्क की खड़ी काट सेम के बीज के आकार की होती है । इसका एक भाग पार्श्व उत्तल व दूसरा अवतल होता है अवतल सिरे को हाइलस कहते हैं ।

(ii) इसकी सबसे बाहरी पर्त संयोजी ऊतक की बनी होती है ।

(iii) वृक्क दो हिस्सों बाहरी कॉर्टेक्स तथा भीतरी मेड्‌यूला में विभक्त रहता है ।

(iv) यूरेटर, रीनल वेन, रीनल आर्टरी हाइलस से बाहर निकलती है ।

(v) मैड्यूला में शंक्वाकार पिरामिड पाये जाते हैं ।

(vi) कॉर्टेक्स और मेड्‌यूला यूरीनीफेरस नलिकाओं का बना होता है ।

(vii) सीधी नलिकाओं का समूह मेड्‌यूला में मेड्‌यूलरी रेज बनाता है ।

(viii) मेड्‌यूलरी रेज के बीच में गहरी कीर्दीकल डाउन ग्रोथ को कॉलम ऑफ बर्टीनी कहते हैं ।

(ix) यूरेटर का चौड़ा हिस्सा पेल्विस कहलाता है जिसमें यूरीनीफैरस नलिकाएँ खुलती हैं ।

पहचान:

कार्टेकेस, मैडयूला व शंक्वाकार पिरामिड्‌स द्वारा ।

F (I) स्तनी वृक्क की मैड्यूला से होती हुई अनुप्रस्थ काट:

लक्षण:

(i) मैडयूला भाग में यूरीनीफैक्स ट्‌यूब्यूल्स, वोमैन्स कैक्यूल्स तथा ग्लोमैरुलस नहीं पाये जाते ।

(ii) लूप ऑफ हेनले के मोटे तथा पतले खण्डों की काट पायी जाती है ।

(iii) अनेकों कलेक्टिंग डक्ट पायी जाती हैं ।

(iv) विभिन्न कलैक्टिंग डक्ट्स संयोजी ऊतकों द्वारा एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं ।

(v) संयोजी ऊतक में रक्त वाहिकाएँ तथा कोशिकाएँ पायी जाती हैं ।

पहचान:

यूरीनीफेरस ट्यूब्यूल्स ग्लो मेरुलस तथा वोमैन्स कैप्स्यूल की अनुपस्थिति तथा कलैक्टिंग डक्ट की उपस्थिति द्वारा ।

F (II) स्तनी: वृक्क की कॉरटैक्स से होती हुई अनुप्रस्थ काट (T.S. of Kidney Through Cortex):

(i) दो प्रकार के यूरीनीफैरस ट्‌यूब्यूल्स की काट दिखायी देती है ।

(a) प्रोक्सीमल यूरीनीफैरस ट्‌यूब्यूल्स ।

(b) डिस्टल यूरीनीफैक्स दस्यल्स ।

(ii) प्रोक्सीमल यूरीनीफैरस ट्‌यूब्यूल्स सीलियेटैड ग्लैडुलर एपीथीलियम हारा आस्तरित है ।

(iii) डिस्टल यूरीनीफैरस ट्‌यूब्यूल्स सीलियेटैड ग्लैंडुलर एपीथीलियम द्वारा आस्तरित रहती है ।

(iv) इसमें मैलपिजियन कैप्स्यूल की काट भी दिखायी देती है । प्रत्येक मैलपिजियन कैप्स्यूल एक बोमैन्स कैक्यूल तथा कुण्डली, जैसे: ग्लोमेरूलस से मिलकर बनता है ।

(v) आर्टरीज और वेन्स की शाखाएँ मिलकर ग्लोमेरुलस बनाते हैं ।

(vi) संयोजी ऊतक में रक्त वाहिकाएँ पायी जाती है ।

(vii) मैड्‌यूलरी किरणें पायी जाती हैं ।

पहचान:

काट में ग्लोमेरुलस, बोमेन्स कैप्स्यूल तथा की उपस्थिती द्वारा ।

G. स्तनी के आमाशय की अनुप्रस्थ काट (T.S. Stomach of Mammal):

कमेण्ट्स:

(i) यह स्तनी के आमाशय की अनुप्रस्थ काट की स्लाइड है ।

(ii) सबसे बाहरी स्तर सिरोसा होता है ।

(iii) दूसरा स्तर पेशी स्तर होता है जो अनुदैर्ध्य तथा वर्तुल पेशियों का बना होता है ।

(iv) तीसरा स्तर पतला होता है जिसे सब-म्यूकोसा कहते हैं । इसमें अस्थियों नहीं पायी जाती हैं ।

(v) सबसे भीतरी स्तर मक्यूलेरिस म्यूकोसा कहलाता है, जो अनुदैर्ध्य तथा वर्तुल पेशियों का बना होता है ।

(vi) इसके पश्चात म्यूकोसा का स्तर होता है जिसमें अनेक वलय होते हैं ।

(vii) वलयों (Folds) में जठर ग्रन्थियों (Gastric Glands) पायी जाती है जो श्लेष्मा हाइड्रोक्लोरिक अग्ल तथा पेप्सिनोजन व प्रोरेनिन नामक एन्ताइम स्रावित करते हैं ।

पहचान:

म्यूकोसा में गोब्लैट कोशिकाओं की अनुपस्थिति द्वारा ।

H. स्तनी के आंत्र की अनुप्रस्थ काट । (T.S. Intestine of Mammal):

कमेण्ट्स:

(i) यह स्तनी की आंत्र की अनुप्रस्थ काट की स्लाइड है ।

(ii) इसके भीतरी स्तर, म्यूकोसा में असंख्य विलाई उपस्थित है ।

(iii) विलाई, भोजन की अवशोषण क्षमता बढ़ा देते हैं ।

(iv) विलाई के बीच-बीच में लिबरकुहन दरारें पायी जाती हैं ।

(v) विलाई में कहीं-कहीं पियर्स अस्थियों भी पायी जाती है, जो लिम्कोसाइट्‌स का निर्माण करती हैं ।

पहचान:

लिबरकुहन की दरारें, पियर्स ग्रथियाँ तथा म्यूकोसा में गोब्लैट कोशिकाओं की उपस्थिति द्वारा ।

I. स्तनी के यकृत की अनुप्रस्थ काट (T.S. Liver of Mammal):

कमेण्ट्स:

(i) यह स्तनी के यकृत की अनुप्रस्थ काट की स्लाइड है ।

(ii) इसकी काट में अनेक लोब्स दिखाई देते है ।

(iii) प्रत्येक लोब में अनेक पंक्तिबद्ध कोशिकाएँ होती हैं ।

(iv) यकृत कोशिकाएँ (Hepatic Calls) बहुमुजी होती है तथा पित्त रस बनाती है ।

(v) पित्त नलिकाएँ (Bile Ducts) यह यकृत कोशिकाओं के बीच-बीच में स्थित होती हैं जो पित्त रस को पित्ताशय में पहुँचाती हैं ।

(vi) यकृत कोशिकाओं पर अनेक रुधिर कोशिकाएँ फैली रहती हैं जो आपस में मिलकर इन्दर लोभलर शिरा बनाती हैं जो पुन: संयुक्त होकर यकृत शिरा का निर्माण करती हैं ।

(vii) इसका प्रत्येक लोब ग्लिसन कैशूल से घिरा होता है ।

पहचान:

यकृत के पिण्डों के बीच इन्ट्रालोमुलर वेन की उपस्थिति द्वारा, ग्लिसन केब्रुल की उपस्थिति ।

J. स्तनी के फेफड़े की अनुप्रस्थ काट (T.S. Lungs of Mammal):

लक्षण:

(i) यह स्तनी के फेफड़े की अनुप्रस्थ काट की स्काइड है ।

(ii) फेफड़े में अनेक पतली भित्ति वाले वायुकोष उपस्थित हैं ।

(iii) इसमें कहीं ब्रोंकस तथा ब्रोंकिओल भी उपस्थित हैं ।

(iv) वायुकोषों के बीच संयोजी ऊतक का पतला स्तर है ।

(v) संयोजी ऊतक में धमनियाँ तथा रुधिर कोशिकाएं उपस्थित हैं, जिनके द्वारा गैसों का आदान-प्रदान होता है ।

पहचान:

एल्विओलाई तथा रेसपिरेटरी ब्रैन्क्रिओल की काटो द्वारा ।


Experiment # 6. मनुष्य की मेखलाएं और उपांग (Limb Bones) की अस्थियों का अध्ययन (Study of Human Girdles and Limb Bones):

(A) Pectoral Girdle of Man (मनुष्य की अंश मेखला):

(i) अंश मेखला या कन्धे की हड्‌डी एक बड़ी चपटी तथा तिकोनी हड्‌डी है जो अपनी तरफ के द्वितीय से सात थोरेसिक वर्टीब्रल के अनुप्रस्थ पार्ट के ऊपर रहती (Overlap) है ।

(ii) इसकी पश्च (पिछली) सतह पर एक स्पाइन (प्रोमिनेट एज) होता है जिससे तिकोनी एक्रोमियन प्रवर्ध निकले रहते है ।

(iii) स्केपुला के चौड़े सिरे से उपर की तरफ प्रवर्द्ध निकलते हैं जिसे एक्रोमियन प्रवर्द्ध कहते हैं ।

(iv) एक्रोमियन प्रवर्द्ध के नीचे एक प्यालेनुमा गुहा होती है जिसे ग्लीनोइडगुहा कहते हैं । जिसमें हाथ की ऊपर वाली भुजा की हड़डीं ड्‌यूमरस का सिर आर्टिकुलेट करता है ।

(B) Pelvic Girdle श्रेणी मेखला (Hip Girdle):

(i) यह मनुष्य के कूल्हे की हड्‌डी है ।

(ii) दो अनियमित, चौड़ी अर्द्ध गोलाकार हिप बोन जिन्हें कीक्सी कहते है । एक चाप जैसी पेल्विक गर्डल रचना बनाती है, जो प्यूबिक सिस्फाइसिस द्वारा आगे की तरफ एक दूसरे से जुड़ी रहती है । यह चाप पीछे की तरफ से क्रम तथा कोसिक्स के साथ पूर्ण गोला पेल्विस बनाती है ।

(iii) प्रत्येक हिप बोन (कूल्हे की हड्‌डी) तीन हड्‌डियों इलियम, इश्चियम तथा शूबिल की बनी होती है । ये तीनों हड्‌डियां जहाँ मिलती हैं वह गहरा गड्‌ढा एसिटाबूलम कहलाता है । इसी गड्‌ढे में जांघ की हड्‌डी फीमर का सिर आर्टिकुलेट करता है ।

(iv) ओबट्‌यूरेटर फोरामन, इश्चियम प्यूबिंस को अलग रखता है ।


Experiment # 7. उपांग की अस्थियों का अध्ययन (Study of Bones of the Appendages):

(A) मनुष्य की ऊपरी उपांगों की अस्थियां:

1. ह्यूमरस

2. रेडियस अल्ना

3. कलाई तथा गदेली की हड्‌डियां

1. ह्यूमरस:

(i) यह ऊपरी उपांग की सबसे लम्बी हड्डी है ।

(ii) इसमें एक शेफ्ट तथा दो इक्स्ट्रीमिटीस हैं ।

(iii) ऊपरी एक्सट्रीमिटीस में 1/3 भाग उससे सिर का होता है जो ग्लीनोइड गुहा से आर्टिकुलेट करता है ।

(iv) सिर के नीचे एनाटामिडल गर्दन होती है ।

(v) ऊपरी एक्टीमिटी के बाहिरी तरफ व गर्दन के नीचे एक खुरदरी रचना, ग्रेटर, ट्‌यूबरोसिटी तथा सामने लेसर ट्‌यूबरोसिटी पाई जाती है ।

(vi) शेफ्ट उपर की तरह एक गोलाकार परन्तु साइड में चपटी रचना होती है ।

(vii) एक खुरदरी ट्‌यूबरकल शैपट के पार्श्व पर मध्य से उपर डेल्टाइड ट्‌यूबरोसिटी होती है जिसमें डेल्टोइड पेशी धंसी रहती है । निचली एक्टीमिटी चौड़ी तथा चपटी होती है ।

(viii) ट्रोक्लिया के अन्दर की सतह अल्पा से आर्टिकुलेट करती है ।

2. रेडियस अल्ना 2 (a) रेडियस:

(i) यह अग्र भुजा की पार्श्व हडुाई है ।

(ii) यह लम्बी होती है जिसमें एक शेपट तथा दो एक्सट्रिमिटीज होती हैं ।

(iii) यह अन्ना से छोटी होती है ।

(iv) ऊपरी एक्स्ट्रीमिटी में एक बटन के आकार का सिर होता है जो धमरस के सिर से आर्टीकलेट करता है ।

(v) रेडियल ट्‌यूबरोसिटी में बाइसेप पेशी का टेण्डोन जुड़ता है । शैपट संकरा होता है ।

2 (B) अल्ना:

(i) अल्ना एक लम्बी हहुईा है जिसमे शेपट तथा दो एक्सट्रिमिटीस पाई जाती हैं ।

(ii) यह अग्र भुजा की मीडियल हहुईा है तथा रेडियस से लम्बी होती है ।

(iii) अल्पा का सिर नीचे होता है ।

(iv) आल्क्रेनोन प्रवर्द्ध बाहर निकले रहते हैं जो लूमरस के आल्क्रेनान फोसा में फिट रहते हैं (जब कोहनी सीधी रहती है) ।

(v) अल्ना की कोरोकोइड प्रवर्द्ध सामने निकले रहते हैं ।

(vi) यह आल्क्रेनोन प्रवर्द्ध से छोटी होती है ।

(vii) लोवर एक्सट्रिमिटीस से नीचे की तरफ एक पतली प्रोसेस, स्टीलाइड प्रोसेस पाई जाती है । इसके अलावा मनुष्य की कलाई तथा हाथ की हद्धियों में मेटाकारपल्स कार्पल हड्डीयां तथा उंगलियां भी सम्मिलित हैं ।

3. कलाई तथा गदेली की हड्‌डियां:

(i) हाथ की कलाई में हड्‌डियों की दो कतारें होती है जिन्हें कार्पल कहते हैं होती हैं इनमें स्केष्फोइड ल्युनेट ट्राईक्वेट्रल तथा पिसीफार्म अगली कतार में तथा ट्रेपेजियम, ट्रेपीजोइड, केपीटेट तथा हेमेट दूरस्थ कतार में होती है ।

(ii) गदेली में 5 मेटाकार्पल तथा उंगली की हड्‌डियां जिन्हे फेलेन्जेस कहते हैं होती है । अंगूठे में 2 तथा बाकी चार उंगलियों में 3 फेलेन्जेस होती हैं ।

(a) मनुष्य के निचली उपांगों की अस्थियां:

(1) फीमर

(2) टीबिया फिबुला

(3) टार्सल हहुईा

(4) मेटा टार्सल

(5) उंगलियां

1. फीमर:

(i) यह शरीर की सबसे लम्बी हड्डी है ।

(ii) यह एसिटाबुलम से आर्टिकुलेट हिप यह कर ज्वाइन्ट बनाती है ।

(iii) ऊपरी एक्टीमिटी में सिर पाया जाता है, सिर के नीचे लम्बी चपटी गर्दन पाई जाती है । गर्दन शेपट से मिलकर ग्रेटर ट्रोकेन्दर बनाती है निचला सिरा चपटा तथा कोण्डाइल्स में विभक्त रहता है । दोनों के बीच इन्दर-कोण्डाइलर फोसा पाया जाता है । यह जांघ की हद्बी कहलाती है ।

2. टीबिया तथा फिबुला या शेन्क की हड्डी:

(i) टीबिया:

एक लम्बी पतली जो मध्य सामने रहती है । टीबिया का ऊपर सिरा कानकेव होता है जो घुटने की टोप तथा फीमर से आर्टिकलेट करता है । निचला भाग एकल की टालस हहुईा से आर्टिकुलेट करता है । मध्य में टीबियल क्रेस्ट पाया जाता है । यह फिबुला के साथ टीबियोफिबुला बनाती है ।

(ii) फिबुला:

यह पाद की पार्श्व हड्डी है यह लम्बी तथा शैपट एवं दो एक्टीमिटी युक्त होती है । ऊपरी एक्सट्रीमिटी सिर बनाती है । निचली एक्टीमिटी नीचे बढ्‌कर पार्श्व मेलियोलस बनाती है । इसके अलावा टार्सल, मेटा टार्सल तथा फैलेन्वेस भी सम्मिलित हैं ।

एड़ी तथा पंजे की हड्‌डियां:

(i) एड़ी में सात हड्‌डियां होती हैं जिन्हें टालस कहते हैं ।

(ii) ये हड्‌डियां केलकेनियम, टालस, क्यूबोइड, नेविक्यूलर तथा प्रथम द्वितीय एवं तृतीय कूनीफोर्मस होती है । इन सभी में एड़ी की हड्‌डी, केलकेनियम सबसे बड़ी तथा मजबूत होती है ।

(iii) पंजे में पांच लम्बी मेटाटार्सल्स (तलवे की हड्‌डी) तथा पंजे के अगले भाग में फेलन्जेस होती है । अंगूठे में दो फेलन्जेस तथा बाकी चार में तीन-तीन फेलेन्जस होती हैं ।


Experiment # 8. मानव रक्त की स्लाईड के निर्माण का अध्ययन: To Observe Permanent Slide of Human Blood:

उद्देश्य:

मनुष्य के रक्त की स्लाइड बनाना एवं उसका अध्ययन करना ।

विधि:

अपनी ऊँगली के स्वतन्त्र सिरे को से साफ कीजिए तथा उसे सूखने दीजिए । ऊँगली के छोर पर सुई से इतना गहरा छेद कीजिये कि खून बहने लगे । निकलते हुए रक्त के नीचे क्लाइड का एक सिरा रखकर कुछ रक्त क्लाइड के किनारे पर एकत्र कर लीजिये ।

अब बायें हाथ में इस क्लाइड को पकड़िये तथा दायें हाथ के एक अन्य क्लाइड को इस क्लाइड से उस सिरे पर पकड़िये जिस पर रक्त एकत्रित है । दायें हाथ की क्लाइड एवं बायें हाथ की स्ताइड से 45 का कोण बनाते हुए दूसरे सिरे की ओर खींचिए । इस प्रकार बायें हाथ वाली स्लाइड पर रक्त की पतली फिल्म बन जायेगी । इस क्लाइड को सूखने दीजिये ।

रक्त की फिल्म का रंगना:

सूखी रक्त फिल्म पर लीशमैन स्टेन, (लीशमैन पाउडर 0.15 ग्राम. मिथाइल ऐल्कोहल ऐसीटोन रहित) 100 सीसी डालिये तथा एक मिनट रुकिए । अब बफर विलयन की समान मात्रा क्लाइड पर डालिए तथा उसे 10 मिनट के लिए छोड़ दीजिये । नल के पानी से धोकर विभिन्न प्रकार की रक्त कणिकाएँ (Different Types of Blood Corpuscles):

1. गोल कणिकाएँ:

ये रक्त में बहुत ज्यादा होती हैं तथा समान रूप से वितरित होती हैं । ये गुलाबी रंग से अभिरंजित होती हैं तथा इनमें केन्द्रक नहीं पाया जाता है । ये ही लाल रक्त कणिकाएँ हैं । इन्हें पेरीओसाइट्‌स भी कहते है ।

2. बड़ी कणिकाएँ:

ये लाल रक्त कणिकाओं से संख्या में कम होती हैं तथा इनका कोशिका द्रव्य कण रहित या कण सहित होता है जो कि हल्का नीला अभिरंजित होता है । इनके केन्द्रक पिण्डदार अथवा पिण्ड रहित होते हैं जो कि गहरे नीले अभिरंजित होते हैं । ये ही सफेद रक्त कणिकाएँ हैं । इन्हें स्कूकोसाइट्‌स भी कहते हैं । कोशिका द्रव्य में कण रखने वाली सफेद रक्त कणिकाओं को ग्रेन्यूलोसाइट तथा कोशिका द्रव्य में कण न रखने वाली सफेद रक्त कणिकाओं को एग्रेन्यूलोसाइट कहते हैं । ग्रेन्यूलोसाइट्‌स अग्र प्रकार की होती हैं ।

(a) पॉलीमार्फस या न्यूट्रोफिल्स:

ये सफेद रक्त कणिकाओं की लगभग 55-70 प्रतिशत होती हैं । ये गुलाबी-बैंगनी अभिरंजन लेती हैं तथा रक्त प्लाज्या में अव्यवस्थित रूप में वितरित रहती हैं । इन कणिकाओं में कई केन्द्र होते हैं जिनके विभिन्न रूप होते हैं । तथा वे प्राय: क्रोमेटिन भागों के द्वारा एक दूसरे से जुड़े रहते हैं । केन्द्रक में प्राय: 2 से 5 पिण्ड होते हैं जो कि केन्द्र में अथवा किनारे की ओर स्थित होते हैं ।

(b) ईओसिनोफिल्स:

ये पॉलीमोर्फस से बड़े होते हैं तथा इनमें एक अनियमित अथवा दो या तीन असमान आकार के केन्द्रक पाये जाते हैं । ये गुलाबी रंग का अभिरंजन ग्रहण करते हैं, ये समस्त सफेद रक्त कणिकाओं की 2-4 प्रतिशत होती हैं ।

(c) बेसोफिल्स:

इनका आकार अनियमित होता है तथा ये सामान्य रक्त में बहुत कम पायी जाती हैं । ये समस्त रक्त कणिकाओं के 5 प्रतिशत से भी कम होती हैं । इनमें एक ही केन्द्रक होता है जो कि अनियमित होता है ।

ऐग्रेन्यूलोसाइट्‌स निम्न प्रकार की होती हैं:

(a) मोनोसाइट्‌स:

ये सबसे बड़ी एग्रेन्यूलोसाइट्‌स है । इनका केन्द्रक वृषण अथवा घोड़े के खुर के आकार का होता है । इनका कोशिका द्रव्य स्पष्ट नीला अथवा भूरा नीला होता है । ये सम्पूर्ण सफेद रक्त कणिकाओं की 1 प्रतिशत होती हैं ।

(b) बड़ी लिम्फोसाइट्‌स:

ये लाल रक्त कणिकाओं से बड़ी होती है । इनका केन्द्रक काफी बड़ा होता है तथा कोशिका द्रव्य की मात्रा कम होती है । ये भास्मिक अभिरंजकों से रंगने पर नीला एंग देते हैं । ये सफेद रक्त कणिकाओं का 20-40 प्रतिशत होती हैं ।

(c) छोटी लिम्फोसाइट्‌स:

ये रक्त में बहुत कम पायी जाती हैं तथा समस्त सफेद रक्त कणिकाओं का 2 प्रतिशत होती हैं । इन कणिकाओं की संरचना बड़ी लिस्फोसाइट जैसी ही होती है किन्तु आकार बहुत छोटा होता है । इसके केन्द्र की स्थिति अण्डाकार तथा पिण्डाकार केन्द्रकों के बीच की होती है ।


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