Here is a compilation of top seven experiments on plant physiology in Hindi.
Experiments on Plant Physiology
Contents:
- Experiment on the Study of Various Plant Tissues through Permanent Slide
- Experiment on the Internal Structure of Dicot and Monocot Root
- Experiment on the Study of Plant Pigments by Paper-Character Method
- Experiment on the Measurement of Plant Transpiration Rate with the Help of Genang Potometer
- Experiment on Determining the Respiratory Quotient with Genang Respirometer
- Experiment on the Demonstration of Osmosis by Potato Osmoscop
- Experiment on the Identification of Various Plant Disease caused by Deficiency of Salt
Experiment # 1. स्थाई स्लाइड द्वारा पेरनकाइमा, कालेनकाइमा, स्कलेरनकाइमा, जाइलम, फ्लोएम तथा विभिन्न पादप ऊतकों का अध्ययन (Study of Various Plant Tissues through Permanent Slide):
परिचय:
ऊतक एक समान अथवा आपस में मिलती-जुलती कोशिकाओं का व्यवस्थित समूह है, जिसकी कोशिकाएँ एक समान कार्य करती हैं, तथा इनकी उत्पत्ति भी एक समान कोशिकाओं से होती हैं । पादप शरीर में स्थित प्रत्येक ऊतक का विशिष्ट कार्य होता है । लगभग सभी ऊतक सर्वप्रथम शीर्षस्थ कोशिकाओं के समूह के विभाजन द्वारा उत्पन्न होते हैं तथा धीरे-धीरे ये कोशिकाएं कार्य के अनुरूप अनुकूलित होकर अलग अलग रूप धारण कर लेती हैं ।
पादप ऊतकों को विकास की दृष्टि से दो भागों में विभाजित करते हैं:
(i) विभाज्योतकी ऊतक ।
(ii) स्थायी ऊतक वे ऊतक जिसमें स्थायी अथवा अस्थायी रूप से विभाजन की क्षमता नहीं होती है. स्थायी ऊतक कहलाते हैं । स्थायीऊतकों में कोशिकाओं के विभाजन की क्षमता पूर्णरूप से अथवा कुछ समय के लिए नष्ट हो जाती है तथा ये विशिष्ट कार्यो का संपादन करती हैं । ये कोशिकाएँ पतली अथवा मोटी भित्ति वाली तथा जीवित अथवा मृत हो सकती हैं ।
रचना की दृष्टि से स्थायी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं:
(a) सरल या साधारण स्थायी ऊतक (Simple Permanent Tissue)
(b) जटिल स्थायी ऊतक (Complex Permanent Tissue)
(c) विशिष्ट स्थायी ऊतक (Specific Permanent Tissue)
सरल स्थायी ऊतक:
ये ऊतक प्राय: एक सी कोशिकाओं के बने होते है जिनके कारण ये आकारिकी अथवा रूप में समांगी होते हैं ।
पौधों में निम्नलिखित सरल ऊतक पाये जाते हैं:
(i) मृदूतक (Perenchyma):
(a) पादप शरीर में सबसे अधिक तथा मुलायम भागों में पाया जाता है ।
(b) कोशिकाएँ जीवित, पतली भित्ति तथा सेल्युलोज की बनी होती हैं ।
(iii) कोशिकाओं में रिक्तिकाएँ संख्या में अधिक, साइज में छोटी या संख्या में कम तथा गोल, बहुभुजी तथा अंतरकोशिकीय अवकाश युक्त होती हैं ।
(iv) इनका प्राथमिक कार्य भंडारण का है ।
प्रयोग:
प्रयोगशाला में किसी द्विबीजपत्रीय तने (जैसे सूरजमुखी अथवा कुकरबिटा) की सेवन कटिंग करिए । इन सेवन कटिंग के मेटीरियल को अभिरंजक द्वारा अभिरंजित करके माइक्रोस्कोप में अध्ययन कीजिए । अवलोकन करने के बाद प्रायोगिक पुस्तिका में चित्र बनाइये ।
(ii) कालेनकाइमा (Collenchyma):
(a) इन कोशिकाओ में अन्तरकोशिकीय अवकाश नहीं पाये जाते हैं ।
(b) इनकी कोशिकाभित्ति के कोने मोटे एवं स्थूल होते हैं, जिसके कारण इन्हें स्थूल कोणिय कहा जाता है ।
(c) कोशिकाओं के कोनों पर सेल्युलोज अथवा पेक्टिन जमा हो जाता है ।
(d) ये ऊतक द्विबीजपत्रीय तनों, पत्तियों में पर्णवृन्त तथा पुष्पों के पुष्पवृन्त में पाये जाते हैं,
लेकिन एकबीजपत्रीय तनों तथा किसी भी प्रकार की जड़ों में नहीं पाये जाते । ये ऊतक तनन कार्य के साथ प्रकाश संश्लेषण तथा खाद्य संचयन भी करते हैं ।
प्रयोग:
किसी द्विबीजपत्रीय तने की सेक्यान कटिंग कीजिए । सेक्शन कटिंग के मेटीरियल को अभिरंजित कीजिए तथा माइक्रोस्कोप में अध्ययन कीजिए ।
(iii) स्केलरनकाइमा (Sclernchyma):
(a) इन ऊतकों को दृढ़तिक कहा जाता है ।
(b) यह पौधों के कठोर भागों में पाये जाने वाला यान्त्रिकीय ऊतक है ।
(c) यह लम्बी कोशिकाओं का बना होता है ।
(d) यह मृत ऊतक है जो लिग्निन के जमाव के कारण अत्यंत कठोर एवं मोटा हो जाता है ।
(e) कोशिकाभित्ती की स्थूलन एकसमान होती है ।
(f) अन्तरकोशिका अवकाश अनुपस्थित तथा पौधों को दृढ़ता प्रदान करना प्रमुख कार्य है ।
प्रयोग:
प्रयोगशाला में जूट, सन तथा पटसन के स्पेसीमेन दिखाकर अध्ययन करायें ।
(iv) जाइलम (Xylem):
(a) इन ऊतकों को जटिल ऊतक या संवहनी ऊतक भी कहते हैं ।
(b) घुलित पदार्थो को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में सहायता करते हैं ।
(c) कड़ी भित्ती वाले ये ऊतक, पौधों को यांत्रिक शक्ति भी प्रदान करते हैं ।
(d) ये ऊतक, जल तथा घुलित पदार्थो को गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत ऊपर की ओर ले जाते हैं ।
(e) जाइलम का निर्माण वाहिनिका, वाहिनी, जाइलम रेशे तथा जाइलम पेरेनकाइमा से मिलकर होता है ।
(f) संवहनी पादप इसके उदाहरण हैं ।
प्रयोग:
प्रयोगशाला में किसी द्विबीजपत्रीय अथवा एकबीजपत्रीय तने/ जड़/ पत्ती की सेक्शन कटिंग तैयार कीजिए । इस सेक्शन कटिंग के मेटीरियल को अभिरंजित करके माइक्रोस्कोप में अध्ययन करिए ।
(v) फ्लोएम (Phloem):
(a) संवहनी पादपों में पाया जाने वाले जटिल ऊतक है ।
(b) ये ऊतक प्रकाश संश्लेषी उत्पादों के संवहन में सहायक होते हैं ।
(c) यह ऊतक चालनी नलिका, सखी कोशिकाओं, पलोएम पेरेनकाइमा आदि का बना होता है ।
सेक्शन कटिंग की विधि:
पादप भागों की आंतरिक संरचना के अध्ययन के लिए सेक्तान काटना आवश्यक है । सेक्वान काटना एक वैज्ञानिक कौशल है, जितना बारीक एवं उत्तम सेक्शन होगा, उतनी ही अध्ययन करने में सुगमता एवं सरलता होगी तथा अभिरंजन स्टनिंग की क्रिया अच्छी होगी ।
सेक्शन काटने के लिए निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता होती है:
(a) अच्छी क्वालिटी का रेजर अथवा नया ब्लेड
(b) पिथ – आलू, गाजर या कद्दू के ताजा टुकड़े
(c) दो प्लास्टिक निडिल
(d) दो छोटे ब्रश
(e) ड्रापर
विधि:
(i) सेक्श्न काटते समय पिथ के बीच में रेजर अथवा ब्लेड की सहायता से एक गडढा अथवा छेद बनाकर, उसमें पादप वस्तु को फंसाकर सेक्शन काटिए ।
(ii) पिथ को सामान्यत: बायें हाथ के अंगूठे और प्रथम ऊंगली से पकड़िए तथा रेजर अथवा ब्लेड से दाहिने हाथ से पतले महीन सेक्श्न काटिए । सेक्तान सदैव समतल काटिए अर्थात तिरछे सेक्यान नहीं काटना
है ।
(iii) पतले महीन सेक्यान को वाच ग्लास में ब्रुश की सहायता से अलग करके जल में रखिए ।
(iv) इन सेक्शनों में से सबसे पतले एवं महीन सेक्शनों को स्लाइड में रखकर जल आरोपित करके माइक्रोस्कोप में अवलोकन करिए ।
अभिरंजन एवं आरोपण (Staining and Mounting):
पादप कोशिकाओं के अध्ययन के लिए, सेक्शन कटिंग के मेटीरीयल को अभिरंजक जैसे सेफ्रेनिन अथवा हीमोटीक्सीलिन से अभिरंजित करके उसे जल अथवा ग्लिसरीन में आरोपण करते हैं । कोशिकाओं के रंगने की प्रक्रिया ही अभिरंजन है ।
अभिरंजन विधि:
सेक्शन कटिंग से प्राप्त मेटीरियल को वाच ग्लास में जल आरोपित करके रखते हैं । अभिरंजन के पूर्व जल को अलग कर दें तथा अभिरंजक की 2-3 बूंदें मेटीरियल पर डालिए तथा इसे 4-5 मिनट तक रखे रहने
दें । अभिरंजित ऊतक को वाचग्लास में जल की सहायता से अब धीरे धीरे धो डालिए । एक स्वच्छ कांच की क्लाइड पर इस अभिरंजित मेटीरियल को जल/ग्लिसरीन में आरोपित करके रखें तथा माइक्रोस्कोप में अवलोकन करिए ।
आरोपण विधि:
अभिरंजित मेटीरियल को जल अथवा ग्लिसरीन में अस्थाई रूप से आरोपित किया जाता है । एक स्वच्छ क्लाइड में बीचों बीच जल की कुछ बूंदें अथवा ग्लिसरीन की बूंदें डालिए तथा बुश की सहायता अभिरंजित मेटीरियल को रखिए । आवश्यकता नुसार इस आरोपित अभिजित मेटीरियल पर एक कवर स्तिप भी रख सकते हैं ।
Experiment # 2. द्विबीजपत्री एवं एकबीजपत्री जड़ की आंतरिक संरचना (Internal Structure of Dicot and Monocot Root):
जड़ की आन्तरिक सरचना के विशिष्ट लक्षण:
(i) एपीब्लेमा पर एककोशिकीय मूलरोम होते हैं ।
(ii) मूलीय त्वचा पर रन्ध्र अनुपस्थित होते हैं ।
(iii) संवहन बण्डल अरीय क्रम में लगे होते हैं ।
(iv) जाइलम एक्जार्क होते हैं । एक्लार्क का अर्थ होता है प्रोटोजाइलम पेरीसाइकिल के पास तथा मेटाजाइलम केन्द्र की ओर ।
(v) पेरीसाइकिल एककोशिकीय होते हैं ।
(vi) एण्डीडर्मिस में पैसेज कोशिकाएं पायी जाती है ।
(vii) पिथ कम चौड़ा तथा मृदूतकीय कोशिकाओं का बना है ।
द्विबीजपत्री जड़:
उददेश्य-सूरजमुखी:
जड़ की अनुप्रस्थ काट की बनाई गयी स्लाइड का अध्ययन करना ।
सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन करने पर इसमें निम्न संरचनाएं दिखाई देती हैं:
(i) एपीब्लेमा:
यह सबसे बाहरी एककोशिका का मोटा स्तर होता है जिस पर एककोशिकीय अराम पाये जाते हैं ।
(ii) कार्टेक्स:
यह एपीब्लेमा से एण्डोडर्मिस तक फैला रहता है जो मृदूतकीय कोशिकाओं का बना होता है ।
(iii) एण्डोडर्मिस:
यह एक कोशिका का मोटा स्तर होता है जो संवहन बण्डलों को घेरे रहता है ।
(iv) पेरीसाइकिल:
यह एक कोशिका मोटी होती है, जो एण्डोडर्मिस के ठीक नीचे स्थित होती है ।
(v) संवहन बण्डल:
सूर्यमुखी की जड़ टेट्रार्क होती है अर्थात चार जाइलम तथा चार पलोएम, एकान्तर क्रम में विन्यस्त होते हैं । संवहन बण्डल, रेडियल होते हैं तथा जाइलम एक्लार्क होता है अर्थात् प्रोटोजाइलम बाहर की ओर तथा मेटाजाइलम भीतर की ओर स्थित होता है । रेडियल का अर्थ परिधि के चारों ओर से है ।
(vi) पिथ- यह अविकसित होता है जो केन्द्र की ओर स्थित होता है तथा मृदूतक कोशिकाओं का बना है ।
पहचान:
(i) संवहन बण्डल अरीय तथा प्रोटोजाइलम एक्जार्क-जड़ ।
(ii) जाइलम के चार समूह उपस्थित, अत: टेट्रार्क दशा, चार पलोएम एकान्तर दशा में स्थित ।
(iii) पिथ छोटा व अविकसित ।
(iv) द्वितीयक वृद्धि एवं केम्बियम पाया जाता है । अत: द्विबीजपत्रीय जड़ ।
एकबीजपत्री जड़:
उददेश्य: एस्पेरागस: जड़ की अनुप्रस्थ काट की बनाई गयी स्लाइड का अध्ययन करना ।
सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन करने पर इसमें निम्न संरचनाएँ दिखाई देती हैं:
(i) एपीब्लेमा:
यह सबसे बाहरी पतली भित्ति वाला एक कोशिका का मोटा स्तर होता है । इस पर एककोशिकीय मूल रोम कहीं-कहीं उपस्थित होते हैं ।
(ii) कार्टेक्स:
यह पतली भित्ति वाली कोशिकाओं के अनेक स्तर का बना होता है जो मूलीय त्वचा से अन्तरत्वचा तक फैला हुआ है । इसकी कोशिकाएं गोल हैं जिनमें अन्तराकोशिकीय अवकाश दिखायी देते हैं ।
(iii) एण्डोडर्मिस:
यह एक कोशिका का मोटा स्तर होता है जिसकी कोशिकाएँ ढोलक के समान हैं ।
(iv) मेरीसाइकिल:
यह भी एक कोशिका मोटा स्तर होता है जो अन्तरत्वचा के ठीक नीचे स्थित है । पेरीसाइकिल को परिरम्भ भी कहते है ।
(v) स्टील:
परिरम्भ के अन्दर रम्भ (स्टील) स्थित है । रम्भ में संवहन बण्डल हैं ।
(a) संवहन बण्डल में जाइलम एवं पलोएम हैं ।
(b) जाइलम तथा पलोएम एकान्तर तथा रेडियल हैं ।
(c) संवहन बण्डल की संख्या 8-10 तक होती है ।
(d) प्रोटोजाइलम तथा मेटाजाइलम:
प्रोटोजाइलम छोटे होते हैं जो बाहर की ओर स्थित होते हैं तथा मेटाजाइलम बड़े हैं, जो केन्द्र की ओर स्थित है । जाइलम की यह अवस्था एक्लार्क कहलाती है ।
(vi) पिथ: यह केन्द्र की ओर है जिसकी कोशिकाएँ गोल तथा पतली भित्ति वाली हैं ।
पहचान:
(i) संवहन बण्डल, अरीय, प्रोटोजाइलम- एक्जार्क-मूल ।
(ii) जाइलम तथा फ्लोएम के 7 से अधिक समूह ।
(iii) पिथ सुस्पष्ट तथा मृदूतकीय ।
(iv) द्वितीयक वृद्धि नहीं पायी जाती है । अत: एकबीजपत्री जड़ है ।
द्विबीजपत्री एवं एकबीजपत्री तने की आन्तरिक संरचना:
प्रयोगशाला में प्राय: 5-6 प्रकार के द्विबीजपत्री तथा 4-5 प्रकार के एकबीजपत्री तनों, की सेक्यान कटिंग एनाटोमीकल अध्ययन के लिए की जाती है । दिये गये मेटीरियल का अनुप्रस्थ काट सावधानीपूर्वक बतायी गयी विधि द्वारा काटिये ।
सेक्शन को स्टेनिंग विधि द्वारा अभिजित करके जल या ग्लिसरीन में माउण्ट कीजिए । बनी हुए अस्थायी स्लाइड का सूक्ष्मदर्शी द्वारा अवलोकन करके स्वच्छ एवं स्पष्ट चित्र अपनी नोट बुक पर बनाईये ।
द्विबीजपत्री तने:
उद्देश्य- सूरजमुखी:
तने की अनुप्रस्थ काट की बनाई गयी स्ताइड का अध्ययन करना ।
सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन करने पर इसमें निम्न सरचनाए दिखाई देती हैं:
(i) एपीडर्मिस:
यह सबसे बाहरी एक कोशिका का मोटा स्तर होता है जिस पर अनेक बहुकोशिकीय स्तम्भ रोम स्थित होते हैं ।
(ii) हाइपोडर्मिस:
यह अनेक कोशिकाओं का मोटा स्तर एपीडर्मिस के ठीक नीचे स्थित होता है जो कोलेन्क्राइमा की बना होता है ।
(iii) कार्टेक्स:
यह बड़ा तथा मृदूतकीय कोशिकाओं का बना होता है ।
(iv) एण्डोडर्मिस:
यह एक कोशिका का मोटा स्तर होता है जो संवहन बण्डलों को घेरे रहता है ।
(v) पेरीसाइकिल:
यह अनेक स्तरीय दृढ़ोतकीय कोशिकाओं की बनी होती है जो एण्डोडर्मिस तथा प्राथमिक पलोएम के बीच समूहों में स्थित होती है ।
(vi) संवहन बण्डल:
यह एक वलय में विन्यस्त होते हैं । प्रत्येक बण्डल कीज्जोस्ट कोलेट्रल तथा खुला होता है । प्रत्येक बण्डल में जाइलम तथा पलोएम के बीच केम्बियम स्थित होता है । बण्डलों के मध्य मेड्यूलरी किरणें पायी जाती हैं ।
(vii) पिथ: यह केन्द्र में स्थित होता है जो मृदूतकीय कोशिकाओं का बना होता है ।
पहचान: यह तना है, क्योंकि:
(i) बाह्य त्वचा पर बहुकोशिकीय रोम हैं ।
(ii) हाइपोडर्मिस उपस्थित है ।
(iii) संवहन बण्डलों की संयुक्त बहिपलोएमी तथा एण्डार्क दशा है ।
द्विबीजपत्री लक्षण: यह द्विबीजपत्री तना है क्योंकि:
(i) संवहन बण्डल एक वलय में व्यवस्थित है ।
(ii) भरण ऊतक, कार्टेक्स, पिथ एण्डोडर्मिस पेरीसाइकिल आदि में भिन्नित है ।
(iii) संवहन बण्डल के जाइलम तथा पलोएम के बीच केम्बियम उपस्थित है ।
संवहन बंडल खुले हैं ।
(iv) हाइपोडर्मिस, कोलेनकाइमा की बनी है ।
(v) द्वितीयक वृद्धि होती है ।
एक बीजपत्री तने:
उद्देश्य:
मक्का के तने की अनुप्रस्थ काट की बनाई गयी स्लाइड का अध्ययन करना ।
सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन करने पर इसमें निम्नलिखित संरचनाएं दिखायी देती हैं:
(i) एपीडर्मिस:
यह सबसे बाहरी एककोशिका चौड़ा स्तर है । इस पर क्प्रटइकिल की परत है और स्तम्भ रोमों का अभाव है ।
(ii) हाइपोडर्मिक्ष:
यह बाह्य त्वचा के ठीक नीचे कोशिकाओं की 3-4 स्तर तक चौड़ी परत है । कोशिकाएँ दृढ़ोतकीय हैं ।
(iii) भरण ऊतक:
हाइपोडर्मिस से लेकर केन्द्र तक भरण ऊतक है । इसकी कोशिकाएँ गोल, पतली, भित्ति वाली है जिनके बीच अन्तराकोशिकीय अवकाश है । भरण ऊतक कॉर्टेक्स, पिथ, अन्तस्तचा परिरंभ में विभेदित नहीं है ।
(iv) सबहन बण्डल:
(a) बाहर की ओर छोटे तथा केन्द्र की ओर बड़े आकार के संवहन बण्डल हैं ।
(b) प्रत्येक बण्डल में जाइलम तथा क्लोएम एक ही अर्द्धव्यास पर हैं, अत: ऐसे बण्डल संयुक्त कहलाते हैं ।
(c) संयुक्त बण्डल में जाइलम अन्दर की ओर तथा पलोएम बाहर की ओर है । अत: बहिपलोएम कहलाते है । बहि: पलोएम को कोलेट्रल भी कहते हैं ।
(d) प्रत्येक बण्डल के चारों ओर दृढ़ोतक की छाद है ।
(e) बण्डल मे केम्बियम या एधा नहीं होता है अत: बन्द कहलाते हैं ।
(f) प्रत्येक बण्डल में प्रोटोजाइलम में लयजात गुहिका है ।
(g) इसमें जाइलम एण्डार्क होता है ।
(h) प्रत्येक बण्डल में जाइलम V की आकृति में है ।
पहचान:
तने के लक्षण: यह तने की अनुप्रस्थ काट है क्योंकि:
1. संवहन बण्डल संयुक्त तथा बहि:फ्लोएमी है ।
2. जाइलम एण्डार्क है ।
3. बाह्य त्वचा पर उपचर्म है ।
4. हाइपोडर्मिस दृढ़ोतक की बनी है ।
एकबीजपत्री लक्षण:
यह एकबीजपत्री तना है, क्योंकि:
(i) संवहन बण्डल अधिक संख्या में हैं, जो भरण ऊतक में बिखरे हैं ।
(ii) भरण ऊतक कॉर्टेक्स, पिथ अन्तस्तचा, पेरीसाइकिल में भिन्नित नहीं है ।
(iii) संवहन बण्डल बन्द प्रकार के हैं, क्योंकि जाइलम तथा पलोएम के बीच केम्बियम नहीं है ।
(iv) प्रत्येक संवहन बण्डल के चारों ओर बण्डल शीथ उपस्थित है ।
(v) द्वितीयक वृद्धि का अभाव है ।
Experiment # 3. पेपर-वर्ण लेखिकी द्वारा पादप वर्णकों को अलग कर उनका अध्ययन करना (Study of Plant Pigments by Paper-Character Method):
आवश्यक वस्तुयें तथा रसायन:
ताजी पालक की पत्तियां, वर्ण लेखिकी पेपर (व्हाट मेन नं. 1) एक चौड़ी लम्बी परखनली, एक स्प्लिट, कार्क, मोरटार तथा पेस्टल, पेट्रोलियम ईथर, एसीटोन, फनल, बीकर, छन्ना कागज, केपिलरी ट्यूब ।
विधि:
(i) मोरटार तथा पेस्टल में (या खरल में) कुछ पालक की पत्तियां, बालू तथा 5 एम.एल. एसीटोन के साथ पीस लीजिये । इसे छान लीजिये ताकि पत्तियों के वर्णक को एसीटोन एक्सट्रेक्ट प्राप्त हो जाये ।
(ii) वर्ण लेखिका पेपर (वाटरमेन नं. 1) की पतली स्ट्रिप लीजिये । इस स्ट्रिप का एक सिरा काट कर एक पतली नोक बनाईये ।
(iii) अब केपिलरी ट्यूब की सहायता से नोक के नजदीक स्ट्रिप के बीच में वर्णक एक्सट्रेक्ट की एक बूंद रखिये । अब बूंद को सूखने दीजिये, इस प्रकार 4 से 5 एम.एल. लेकर इसे पेपर पर रखिये ।
(iv) अब परखनली लीजिये और उसकी सहायता से ईथर एसीटोन एक्सट्रेक्ट को पेपर पर डालिये । अब इस वर्णक से लोड किये क्रोमेटोग्राफिक स्ट्रिप को फटे हुये कार्क में फंसा कर परखनली में इस तरह लटकाइये कि उसका सबके आगे का बिन्दु सोल्वेण्ट से 1 से.मी. उपर रहे ।
(v) अब कार्क को ऐसा काटिये कि वायु प्रवेश न कर सके, तथा परखनली की बगैर डिस्टर्ब किये कुछ समय के लिये रखिये जब सोल्वेन्ट का 3/4 भाग स्ट्रिप में चढ़ जाये, सावधानी पूर्वक स्ट्रिप को निकाल लीजिये अब उसे सूखने दें ।
निरीक्षण:
सूखा हुआ क्रोमेटोग्राफिक पेपर स्ट्रिप अलग-अलग वर्णक बेण्ड्स दर्शाता है । अलग-अलग पत्तियों के वर्णक अपने-अपने रंगों द्वारा पहचाने जाते है । अब हर वर्णक बेण्ड का लोडिंग स्पाट से उसकी दूरी तथा साल्वेन्ट के द्वारा की गई दूरी को भी नोट कीजिये ।
गणना:
प्रत्येक वर्णक बिन्दु की आर.एफ. दर निम्नलिखित द्वारा गणना की जा सकती है:
Experiment # 4. गेनांग पोटोमीटर की सहायता से पौधे में वाष्पोत्सर्जन दर को नापन (Measurement of Plant Transpiration Rate with the Help of Genang Potometer):
आवश्यक सामग्री:
(i) गेनांग वाष्पोत्सर्जनमापी
(ii) पानी में काटी गयी पौधे की एक शाखा
(iii) बीकर
(iv) पानी
(v) सोख्ता कागज
(vi) पिघला हुआ मोम
(vii) स्टॉप वाच
उपकरण का वर्णन:
गेनांग वाष्पोत्सर्जन:
मापी काँच का बना है जो लकड़ी के स्टैण्ड पर फिट है । इसके एक सिरे पर काँच की चौड़ी नली है जिसमें पानी में काटी गयी पौधे की शाखा लगी है । काँच की नली का दूसरा सिरा 90 अंश के कोण पर मुड़ा है जो पानी से भरे बीकर में डूबा है ।
इस पतली कांच की नली पर से.मी. के निशान लगे है । पूरा उपकरण पानी से भरकर पिघले हुए मोम को लगाकर वायु अवरुद्ध कर दिया जाता है । बीकर में डूबी हुई नली के सिरे पर एक महीन छिद्र है जिसके द्वारा सोख्ते कागज की सहायता से वायु का बुलबुला प्रवेश करा देते हैं ।
उपकरण को सूर्य के प्रकाश में रख देते हैं । निरीक्षण हम देखते हैं कि कुछ देर बाद वायु का बुलबुला शून्य निशान से धीरे-धीरे नली में शाखा की ओर गति करने लगता है । स्टॉप वाच द्वारा एक मिनट में बुलबुले द्वारा की गयी दूरी नोट कर लेते हैं ।
स्पष्टीकरण गेनांग वाष्पोत्सर्जनमापी द्वारा ज्ञात होता है कि शाखा में लगी पत्तियों द्वारा वाष्पोत्सर्जन होता है जिसके कारण चूषक दाब उत्पन्न होता है और बीकर का जल पोटोमीटर में गति करता है जिससे बुलबुला आगे बढ़ता है ।
परिणाम:
पत्तियों द्वारा वाष्पोत्सर्जन की गति बुलबुले द्वारा तय की गयी दूरी के बराबर होती है ।
सावधानियां:
(i) उपकरण को भली प्रकार पानी से भरकर वायु अवरुद्ध कर लेना चाहिए ।
(ii) शाखा को सदैव पानी में तिरछा काटना चाहिए ताकि वायु प्रवेश न कर सके । शाखा को तिरछा काटने से सतह क्षेत्रफल बढ़ जाता है ।
(iii) बुलबुले द्वारा तय की गयी दूरी को ध्यानपूर्वक नोट करना चाहिए ।
(iv) उपकरण को हिलाना-डुलाना नहीं चाहिए ।
(v) मील का प्रयोग – सिद्ध करना है कि प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है ।
आवश्यक सामग्री:
1. गमले में लगा पौधा
2. चौड़े मुंह की बोतल
3. बीच से चिरी हुई कर्क
4. कॉस्टिक पोटाश
विधि:
गमले में लगे पौधे को 24 घंटे अंधेरे में रखते हैं, ताकि पत्तियाँ मण्डरहित हो जायें । एक चौड़े मुंह की बोतल के कर्क को बीच से चीरकर एक पत्ती का आधा भाग बोतल में प्रवेश करा देते हैं, तथा आधा भाग बाहर की ओर रखते हैं ।
प्रयोग को सूर्य के प्रकाश में रख देते हैं । बोतल में थोड़ा सा कॉस्टिक पोटाश (KOH) का घोल रख देते हैं । बोतल के अन्दर CO2 को कॉस्टिक पोटाश (KOH) सोख लेता है । अत: बोतल के अन्दर की पत्ती को CO2 नहीं मिल पाती है ।
निरीक्षण:
2-3 घंटे बाद पत्ती को बोतल से निकालकर आयोडीन घोल में मण्ड परीक्षण करते हैं । हम देखते हैं कि बोतल के अन्दर वाले पत्नी के भाग में CO2 न मिलने से प्रकाश-संश्लेषण क्रिया नहीं होती है जिससे यह मण्ड परीक्षण नहीं देता है । किन्तु बोतल के बाहर पत्नी के भाग में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया होती है, क्योंकि उसे कार्बन डाइऑक्साइड मिलती है, तथा वह मण्ड परीक्षण (स्टार्च) देता है ।
स्पष्टीकरण:
मण्डरहित पत्ती का वह भाग जो बोतल के अन्दर था, KOH की उपस्थिति के कारण CO2 प्राप्त नहीं कर पाता है । अत: प्रकाश संश्लेषण नहीं करता है तथा स्टार्च नहीं बना पाता है, जो स्टार्च टेस्ट नहीं देता है । बोतल के बाहर वाले पत्ती के भाग को CO2 मिलती है जो प्रकाश संश्लेषण करता है, तथा स्टार्च टेस्ट देता है ।
परिणाम:
अत: सिद्ध होता है कि प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए कार्बन डाइऑक्साइड आवश्यक होती है ।
सावधानियाँ:
(i) प्रयोग से पूर्व पौधे को 24 घंटे अंधेरे में रखकर पत्तियों को मण्डरहित कर लेना चाहिए ।
(ii) चिरी हुई कर्क में पत्ती लगाकर बोतल के मुंह पर ग्रीस लगा देना चाहिए ।
(iii) बोतल के अन्दर सान्द्र कास्टिक पोटाश का घोल लेना चाहिए ।
Experiment # 5. गेनांग रेस्पाइरोमीटर द्वारा श्वसन पदार्थो में श्वसन भागफल ज्ञात करना (Determining the Respiratory Quotient with Genang Respirometer):
आवश्यक सामग्री (Material Required):
(i) गेनांग का रेस्पाइरोमीटर (Ganong’s Respirometer)
(ii) कपास (Cotton)
(iii) ग्रीस (Grease)
(iv) स्टैण्ड (Stand)
(v) नमक का घोल एवं जल
(vi) कॉस्टिक पोटाश (KOH)
(vii) विभिन्न प्रकार के श्वसन पदार्थ जैसे पुष्पों के दलपत्र आलू के टुकडे, अरण्ड के बीज, मटर के बीज तथा नागफनी आदि ।
गेनांग का रेस्पाइरोमीटर (Ganong’s Respirometer):
यह काँच का बना उपकरण होता है जिसका बत्व काँच की ग्रेजुएटेड ट्यूब से जुड़ा रहता है । यह ग्रेजुएटेड ट्यूब एक रबर ट्यूब द्वारा दूसरी काँच की लेवलिंग ट्यूब से जुड़ी रहती है । काँच की यह दोनों ट्यूब्स ऊर्ध्व तल में एक स्टैण्ड पर कस दी जाती हैं । उपकरण के काँच के बत्त्व में काँच का ढक्कन फिट रहता है । काँच के इस ढक्कन में तथा बज्य की ग्रीवा में एक महीन छिद होता है ।
विधि:
सर्वप्रथम लेवलिंग ट्यूब में नमक का घोल भरिए ताकि ग्रेजुएटेड तथा लेवलिंग ट्यूब इससे आधी भर जायें । इसके पश्चात बज्य में लगे काँच के ढक्कन को खोलकर बल्व के अन्दर बल्व की तली में पानी से भीगा कपास रखिए ।
अब आलू के टुकड़ों या जिस पदार्थ का श्वसन भागफल (R.Q.) ज्ञात करना हो उसे भीगे हुए कपास पर रख दीजिए । इसके पश्चात् काँच का ढक्कन इस प्रकार बन्द कीजिए कि ढक्कन का छिद्र बल्व की ग्रीवा के छिद्र के आमने-सामने एक ही रेखा में आ जायें जिससे वायुमण्डलीय वायु सीधी बल्ट के अन्दर आ सके ।
इसके बाद नमक के घोल से भरी लेवलिंग ट्यूब को ऊपर-नीचे कीजिये ताकि ग्रेजुएटेड ट्यूब के शून्य निशान को नमक का घोल छूता रहे । इसके पश्चात काँच के ढक्कन को थोड़ा-सा घुमाइए ताकि वायुमण्डल की वायु से बत्व की वायु का सम्बन्ध विच्छेद हो जावे । कछ समय के लिए उपकरण को रखा रहने दीजिए तथा निरीक्षण कर गणना कीजिए ।
निरीक्षण:
देखने से ज्ञात होगा कि ग्रेजुएटेड ट्यूब में नमक के घोल के तल में कोई परिवर्तन नहीं होता है । आयतन में कोई परिवर्तन न होना यह स्पष्ट करता है कि श्वसन क्रिया में प्रयुक्त हुई ऑक्सीजन (O2) की मात्रा तथा विमुक्त कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) की मात्रा समान है । अत: आलू के टुकड़ों में R.Q. का मान इकाई (Unity) होता है ।
Experiment # 6. आलू के ऑस्मोस्कोप द्वारा परासरण का प्रदर्शन करना (Demonstration of Osmosis by Potato Osmoscop):
आवश्यक सामग्री:
(i) आलू (Potato)
(ii) पेट्रीडिश (Petridish)
(iii) शक्कर/नमक का घोल (Sugar/Salt Solution)
(iv) चाकू (Knife)
(v) आलपिन (Alpin)
विधि:
आलू के छिलके को चाकू द्वारा छीलकर अलग कीजिए । छिले हुए आलू को बीच से काट कर दो टुकड़े A, B कीजिए । दोनों A व B टुकड़ों में चाकू की सहायता से 1/2” x 1/2” की केविटी बनाईये । आलू टुकड़े आसुत व्रै के में बनायी गयी केविटी में जल भरकर पानी से भरी पेट्रीडिश में रख दीजिए तथा केविटी में पानी के तल पर आलपिन लगा दीजिए । आलू के टुकड़े B से बनी केविटी में नमक/शक्कर का घोल भर दीजिए और इसे पानी से भरी पेट्रीडिश में रख दीजिए ।
निरीक्षण:
एक दो घण्टे बाद हम देखते है कि आलू B की केविटी में रखा जल शक्कर/नमक (NaCl) घोल में परिवर्तित हो जाता है जैसा कि चित्र C में प्रदर्शित है । किन्तु A टुकड़े की केविटी में भरे आसुत जल के तल में कोई परिवर्तन नहीं होता है ।
स्पष्टीकरण:
आलू की कोशिकाएं अर्द्ध पारगम्य झिल्ली का कार्य करती है । अत: टुकड़े B की केविटी में भरे नमक/शक्कर (NaCl) में पेट्रीडिश से जल अन्त: परासरण के फलस्वरूप प्रवेश करने लगता है । अत: घोल में बदल जाता है । किन्तु A में पानी भरा होने के कारण कोई क्रिया नहीं होती है ।
निष्कर्ष:
अन्त: परासरण क्रिया में बाहर से जल अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली द्वारा अधिक सान्द्रता की ओर जाने लगता है ।
सावधानियाँ:
1. आलू को छील लेना चाहिए ।
2. केविटी सावधानीपूर्वक बनानी चाहिए ।
Experiment # 7. लवण की कमी से होने वाले विभिन्न पादप रोग की पहचान करना (Identification of Various Plant Disease Caused by Deficiency of Salt):
परिचय:
पौधों को जीवन प्रक्रियाएँ सुचारु रूप से चलाने के लिए विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । ये पोषक तत्त्व पौधे की वृद्धि एवं अन्य जैविक प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण होते हैं ।
इन पोषक तत्वों की कमी से पौधों में विभिन्न लक्षण दिखाई देते है । जिन्हें हम पोषक तत्वों की कमी से होने वाले रोग कहते हैं । इस पोषक तत्वों की कमी को यदि दूर किया जाये, तो पौधा स्वस्थ हो जाता है ।
ये पोषक तत्व दो प्रकार के होते हैं:
1. सूक्ष्म पोषक तत्व
2. महापोषक तत्व ।
1. सूक्ष्म पोषक तत्व:
ऐसे तत्व जिनकी अत्यंत सूक्ष्म मात्रा में उपस्थिति पौधे की स्वस्थ वृद्धि के लिए आवश्यक होती है, सूक्ष्म पोषक तत्व कहलाते हैं । जैसे मैंगनीज, जिंक, कापर, बोरान आदि । पोषक तत्वों की कमी से होने वाले लक्षण |
(i) मैंगनीज:
इस सूक्ष्मपोषक तत्व की कमी से पत्तियों में हरिमहीनता प्रदर्शित होती है ।
(ii) जिंक:
इसकी कमी से पत्तियां पीली पड़ जाती हैं । कॉपर इस तत्व की कमी से हरिमहीनता दिखाई देती है ।
(iii) बोरॉन:
इसकी कमी से स्तंभ अग्रक नष्ट हो जाते है तथा जड़ों की वृद्धि रुक जाती है ।
2. महापोषक तत्व:
वे सभी आवश्यक तत्व जिनके बिना पौधे भली-भांति वृद्धि नहीं करते हैं, तथा जिनकी आवश्यकता अधिक मात्रा में होती है, महापोषक तत्व कहलाते हैं जैसे पोटेशियम, कैलशियम, आयरन, नाइट्रोजन, सल्फर,
फास्फोरस ।
(i) पोटेशियम:
इस तत्व की कमी से पौधे की वृद्धि रुक जाती है तथा पत्तियों का रंग हल्का हरा पीला हो जाता है, पत्तियों के अग्र सिरे मुड़ जाते है तथा पत्तियां मुड़ जाती हैं ।
(ii) कैल्सियम:
इसकी कमी से पत्ती के किनारे अनियमित, पीले तथा पत्ती के अग्रक मुड़ जाते हैं, पत्तियों के डंठल सूखकर मुरझा जाते हैं, तथा वृद्धि रुक जाती है ।
(iii) लौह (आयरन):
इस तत्व की कमी से पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है ।
(iv) नाइट्रोजन:
इसकी कमी से पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है जिसे हरिमहीनता (क्लोरोसिस) कहते हैं । यह सामान्य लक्षण प्राय: सभी पौधों की पत्तियों पर विशेषकर नाड़ियों में देखने को मिलता है ।
(v) फास्फोरस:
इसकी कमी से पत्तियों का रंग गहरा नीला हो जाता है, पत्तियां परिपक्व होने के पूर्व झाड़ जाती है, तथा वृद्धि रुक जाती है ।
प्रयोग:
पोषक तत्वों की कमी से उत्पन्न होने वाले लक्षणों के आधार पर आसपास के परिवेश में पाये जाने वाले पौधों का अवलोकन तथा लक्षणों के आधार पोषक तत्वों की कमी के बारे में जानकारी नोट करें ।