Read this article in Hindi to learn about the parts of human brain.

1. प्रमस्तिष्क या दीर्घ मस्तिष्क (Cerebrum):

घ्राण पिण्डों के ठीक पीछे दो बड़े एवं मोटे गोल पिण्ड होते हैं जिन्हें प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध तन्तुओं की बनी एक चौड़ी सफेद पट्टी से जुड़े रहते हैं जिसे महा-संयोजन कहते हैं । प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध में दो प्रकार के द्रव पाये जाते हैं- श्वेत द्रव व दूसर द्रव । यही दोनों मिलकर प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध में प्रमुख भाग बनाती है । इसे ‘नियोपैलियम’ कहते हैं । मानव में इसके विकास से बुद्धिमत्ता का गुण विकसित हुआ ।

प्रमस्तिष्कीय गोलार्द्ध एक सफेद माइलिन आच्छादित तन्तुओं के समूह से जुड़े होते हैं जिसे महासंयोजक पिण्ड (कपिस कोलोसम) भी कहते हैं । इसका कार्य दोनों गोलार्द्ध के मध्य सन्देश लाने एवं ले जाने का कार्य करता है ।

प्रमस्तिष्कीय बल्कुट के नाम से भी प्रमस्तिष्क को जाना जाता है जो कि चार पालियों खण्डों में बाँटा गया है:

(a) ललाट पालि (Frontal Lobe):

इसका मुख्य कार्य संज्ञानात्मक प्रवृत्ति का होता है । जैसे- चिन्तन, अवधान, स्मृति, आधिगम, निर्णय व तर्क आदि से ये सम्बद्ध होता है किन्तु यह स्वायत्त एवं संवेगात्मक अनुक्रियाओं पर भी अवरोधात्मक प्रभाव डालता है ।

(b) पाशविक पालि (Parietal Lobe):

यह मुख्य रूप से त्वचीय संवेदनाओं एवं उनका चाक्षुष और श्रवण संवेदनाओं के साथ समन्वय रखता है ।

(c) शंख पालि (Temporal Lobe):

इसका सम्बन्ध मुख्य रूप से श्रवणात्मक सूचनाओं के प्रक्रमण से होता है । प्रतीकात्मक शब्दों एवं ध्वनियों की स्मृति यहाँ बनी रहती है । वाणी को समझना एवं लिखित भाषा आदि का ज्ञान इसी पालि पर निर्भर करता है ।

(d) पश्चकपाल पालि (Occipital Lobe):

मुख्यत: चाक्षुष सूचनाओं से सबद्ध ये पालि आवेगों की व्याख्या, चाक्षुष उद्दीपकों की स्मृति एवं रंग चाक्षुष उन्मुखता आदि के साथ तालमेल रखती है ।

2. अनुमस्तिष्क या लघु मस्तिष्क (Cerebellum):

यह प्रमस्तिष्क के पिछले भाग में नीचे की ओर स्थित है । यह प्रमस्तिष्क से छोटा होता है । यह प्रमस्तिष्क के समान दो खण्डों में बँटा रहता है । इसके ऊपरी तल पर भी कई परिशाखाएँ होती हैं । मस्तिष्क का कुल वजन का 1/10 भाग अनुमस्तिष्क का होता है । एक ओर इसका सम्बन्ध सुषुम्ना शीर्ष से होता है तथा दूसरी ओर इसका सम्बन्ध प्रमस्तिष्क से होता है ।

अनुमस्तिष्क के कार्य (Functions of Cerebellum):

(i) स्नायुओं में सहयोग बनाना (To make help in Nervous):

शारीरिक क्रियाओं हेतु विभिन स्नायुओं में सहयोग आवश्यक है और यह कार्य अनुमस्तिष्क करता है ।

(ii) स्नायुओं पर नियन्त्रण (To Control on Nervous):

स्नायुओं में सहयोग के अतिरिक्त अनुमस्तिष्क स्नायुओं पर नियन्त्रण रखने में प्रमस्तिष्क की सहायता करता है, जिससे शरीर सन्तुष्ट रहता है ।

(iii) शारीरिक क्रियाओं को नियमित करना (To Regulate of Physical Reaction):

चलना कूदना दौड़ना जैसी शारीरिक क्रियाएँ नियमित करता है, ताकि शरीर को नुकसान न हो ।

3. सेतु (Pone):

यह अनुमस्तिष्क के ठीक सामने का भाग होता है । इसी के नीचे से सुषुम्ना शीर्ष प्रारम्भ होती है । प्रमस्तिष्क में जाने वाली संवेदी, प्रेरक तन्त्रिकाएँ यहीं से होकर जाती हैं । यह भाग मस्तिष्क तथा अनुमस्तिष्क दोनों से मिलता है । यहाँ पर कपाल से निकलने वाले नेत्र तना चेहरे की कपाल तन्त्रिकाओं का केन्द्र है ।

4. सुषुम्ना शीर्ष (Medulla Oblongata):

सुषुम्ना शीर्ष में लहू-स्यंदन, श्वांसदर, उपापचय, श्रवण, सन्तुलन, रक्त-नलिकाओं के सिकुड़ने-फैलने, रक्त दाब, आहार नाल की तरंग गति, ग्रथियों से स्राव आदि के नियन्त्रण केन्द्र होते है । इसके अतिरिक्त यह मस्तिष्क के शेष भाग एवं मेरुरज्जु के बीच संवेदनाओं के लिए संवहन मार्ग का कार्य करता है ।

5. मेरुरन्तु (Spinal Cord):

इसे सुषुम्ना भी कहते हैं । यह मस्तिष्क का सबसे नीचे का भाग होता है । यह मस्तिष्क के मस्तिष्क पुच्छ से शुरू होकर मानव की रीढ़ की अस्थियों में पूरी कमर के नीचे तक फैल जाती है ।

इसकी लम्बाई 60 सेमी. से 70 सेमी. के बीच होती है । वास्तव में मेरुरज्जु में तन्त्रिकाओं का गुच्छा-सा पाया जाता है, जो रीढ़ की अस्थियों के जुड़ने से बनी कशेरुक नाल में फैली रहती है । इस प्रकार मेरुरज्जु कशेरुक नाल से सुरक्षित रहती है ।

मेरुरज्जु के चारों ओर भी तीन तन्तुमय झिल्लियों का आवरण होता है । इसमें क्रमश: बाहर की ओर दृढ़तानिक (Duramater) मेरुरज्जु व कशेरुक दण्ड के बीच द्रव से भरी एक गुहा होती है । मध्य झिल्ली या जलतानिका और भीतरी मृदुतानिका का विन्यास वैसा ही होता है, जैसा मस्तिष्क में होता है ।

मेरुरज्जु की आन्तरिक काट देखने पर पता चलता है, कि मेरुरज्जु के बीच में सेरेब्रो स्पाइनल द्रव से भरी एक गुहा होती है । इसकी दीवार दो मोटी स्तरों की बनी होती है । भीतर की ओर ‘धूसर द्रव’ तथा बाहर की ओर ‘श्वेत द्रव’ का स्तर होता है । मेरुरज्जु में यह स्थिति मस्तिष्क की स्थिति से सर्व था उल्टी होती है ।

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