Read this article in Hindi to learn about the structure of Rohu fish, explained with the help of suitable diagram.

पहचान एवं वर्गीकरण:

यह अलवणीय जल की प्राय: सभी नदियों, तालाबों में मिलने वाली मछली है । शरीर शल्कों से ढँका होता है ।

इसकी वर्गीकरण निम्नानुसार है:

जगत – जन्तु-जगत् (बहुकोशिकीय, विषमपोषी जन्तु)

संघ – कॉर्डेटा (भ्रूणावस्था में नोटोकॉर्ड, फेरिन्जियल गिल्स एवं जीवन पर्यन्त पृष्ठ- सतह पर नलीनुमा तंत्रिका-तंत्र उपस्थित)

वर्ग – ओस्टाइक्थीस (अंत: कंकाल अस्थियों से निर्मित, क्लोम-छद (operculum) उपस्थित ।

वंश – लेबियों (Labeo)

जाति – रोहिता (rohita)

टिप्पणी:

(1) यह उत्तर भारत की नदियों, झीलों, तालाबों, में सामान्य रूप से पायी जाने वाली मछली है । यह लगभग 3 से 3.5 फुट लम्बी होती है ।

(2) यह मांसाहारी मछली है जो अन्य छोटी मछलियों को खाती है ।

(3) यह पृष्ठ-भाग में हरापन लिए कुछ काले रंग की होती है । इसके शल्कों के ऊपर लाल रंग की झलक होने से ही ‘रोह’ कहते हैं ।

(4) सिर ऊपर से उभरा एवं नेत्रों के ऊपर कुछ पिचका-सा होता है । ऊपरी जबड़े पर मुख के ऊपर दो छोटे-छोटे प्रवर्ध निकले होते हैं, जिन्हें बारबेल (barbels) कहते हैं । दोनो पार्श्व-बाजुओं में क्लोम-छद या ओपरकुलम (operculum) होते हैं जो क्लोम (gills) को ढंकते हैं ।

(5) क्लोम-छद से पहले सिरे तक दोनों पार्श्व-बाजुओं में पार्श्व रेखाएँ (lateral lines) होती हैं ।

(6) अन्य मछलियों की तरह इसके भी दो-दो अंस पंख एवं श्रोणि पंख होते हैं । इसके अलावा एक पृष्ठ, गुदा एवं पुच्छ पंख होते हैं ।

(7) इनका जननकाल वर्षा-ऋतु में होता है । मादा अंडे देती है जो तलहटी में जमा होते जाते हैं । नर मछली इन अंडों पर अपने शुक्राणु गिराता है । इसे बाह्य-निषेचन कहते हैं ।

(8) यह अत्यन्त आर्थिक महत्व की खाने के उपयोग की मछली है ।

नोट:

रोहू उपलब्ध न हो तो कोई भी स्थानीय मार्केट में उपलब्ध मछली जैसे कतला, पतोला, महासिर आदि में से किसी का भी अध्ययन किया जा सकता है ।

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