Here is an essay on ‘Diseases and Its Types’ for class 7, 8, 9, 10, 11, and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Diseases and Its Types’ especially written for school and college students in Hindi language.
निरोगी समाज प्रत्येक देश के लिए एक संसाधन ही है । अत: प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना चाहिए । तुम या तुम्हारा कोई मित्र कभी न कभी बीमार पड़ा होगा । इस दशा में डाक्टर तुम्हें औषधि देवर स्वस्थ करते हैं और तुम्हें यह भी बताते है कि रोग न होने के लिए तुम्हें कौन-सी सावधानियाँ रखनी हैं ।
हमारे चारों ओर सूक्ष्मजीव हैं । उनमें से कुछ सूक्ष्मजीव उपयोगी होते हैं और कुछ सूक्ष्मजीव रोग पैदा करते है । ये हमें हानि पहुँचाते हैं । भोजन, पानी तथा हवा के माध्यम से ये सूक्ष्मजीव हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं ।
यदि हमारे शरीर की प्रतिकार शक्ति कम हो, तो उस रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं और हम रोगग्रस्त हो जाते हैं । रोगग्रस्त होने पर संबंधित व्यक्ति की शारीरिक तथा मानसिक अवस्था के साथ उसके संपूर्ण स्वास्थ्य में खराबी उत्पन्न हो जाती है ।
रोगों के प्रकार:
प्रसार के आधार पर रोग के तीन प्रकार हैं:
(i) महामारी
(ii) संसर्गजन्य रोग
(iii) संपर्कजन्य रोग ।
(i) महामारी:
जलवायु में विशिष्ट परिवर्तन द्वारा तथा दूषित पानी द्वारा अनेक लोगों को एक ही समय पर एक ही रोग होता है । इसे ‘महामारी’ कहते हैं । उदा. हैजा, विषमज्वर, इन्फ्लुएंजा, पेचिश तथा आँख आना इत्यादि महामारी हैं ।
(ii) संसर्गजन्य रोग:
लगातार किसी रोगी के साथ रहने पर उसके शरीर के रोगजंतु हवा द्वारा निरोगी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते हैं और निरोगी व्यक्ति भी रोगग्रस्त हो जाता है । ऐसे रोगों को ‘संसर्गजन्य रोग’ कहते हैं । उदाहरण., क्षय, इन्फ़्लुएंजा इत्यादि ।
(iii) संपर्कजन्य रोग:
किसी रोगग्रस्त व्यक्ति के शरीर के रोग जंतुओं का निरंतर वास्तविक संपर्क होने अथवा स्पर्श के माध्यम से समीपी संपर्क करने पर निरोगी व्यक्ति भी रोगग्रस्त हो जाता है । ऐसे रोगों को ‘संपर्कजन्य रोग’ कहते हैं । उदा., खुजली, खसरा, उकवत (एग्जिमा) दाद इत्यादि । ऊपर बताए गए रोग जीवाणु तथा विषाणु जैसे सूक्ष्मजीवों द्वारा होते है ।
1. चेचक
(i) रोग प्रसार के कारण:
इस रोग के विषाणु श्वसन मार्ग से किसी निरोगी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने पर, रोगी व्यक्ति के संपर्क द्वारा तथा उसके कपड़े, बरतन आदि का उपयोग करने पर यह रोग होता है ।
(ii) प्रमुख लक्षण:
(a) तेज ज्वर होता है ।
(b) सिर में दर्द होता है ।
(c) त्वचापर छोटे-छोटेफोड़े निकलते हैं ।
(d) इन फोड़ों में पानी जैसा पदार्थ भरा हुआ दिखाई देता है। । कुछ दिनों में उनपर पपड़ी आ जाती है ।
(iii) प्रतिबंधक उपाय तथा उपचार:
सही चिकित्सकीय उपचार करवाना । एक बार चेचक रोग होने के बाद यह प्राय: दुबारा नहीं होता । रोग द्वारा उत्पन्न होनेवाली प्रतिकार शक्ति जन्मभर बनी रहती है ।
2. पोलियो
(i) रोग प्रसार के कारण:
इस रोग का प्रसार दूषित पानी तथा दूषित हवा अथवा हवा में उपस्थित विषाणु द्वारा होता है ।
(ii) प्रमुख लक्षण:
(a) ज्वर होता है ।
(b) गला (श्वासनली) लाल हो जाता है ।
(c) पीठ तथा पैर की पेशियों में तनाव का आभास होता है ।
(d) हाथों अथवा पैरों के पेशियों में शक्तिहीनता आ जाती है ।
(e) मांसपेशियों की वृद्धि रुक जाती है ।
(f) मांसपेशियों में लूलापन आने से अपंगता उत्पन्न हो जाती है ।
(iii) प्रतिबंधक उपाय तथा उपचार:
(a) पोलियो का टीका लगवाना,
(b) चिकित्सकीय उपचार करवाना ।
साल्क तथा सेबिन नामक वैज्ञानिकों द्वारा पोलियो के विषाणु से टीके का निर्माण करने का यश प्राप्त किया गया ।
पल्स पोलियो अभियान:
आजकल हमारे केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष एक ही समय पर ५ वर्ष से कम आयुवाले अधिक-से-अधिक बच्चों को पोलियो की खुराक देने का अभियान अपने हाथ में लिया गया है । इस अभियान द्वारा इस आयुसमूहवाले बच्चों की प्रतिकार क्षमता बढ़ती है ।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत ५ वर्ष से क्य आयुवाले सभी भारतीय बच्चों को पोलियो की दो खुराक छह सप्ताह के अंतर पर एक पूर्व निर्धारित दिन को ही दी जाती है । ये दो खुराकें (बूस्टर खुराक) हमेशा की खुराक लेने पर भी लेने ही पड़ती हैं । इस अभियान द्वारा हमारे देश से पोलियो का उन्मूलन हो जाएगा ।
3. अलर्क ( रैबीज):
(i) रोग प्रसार के कारण:
यह रोग पागल कुत्ते, बंदर, बिल्ली तथा खरगोश के द्वारा काटने पर होता है ।
(ii) प्रमुख लक्षण:
(a) तेज सिरदर्द होता है ।
(b) ज्वर आता है ।
(c) गले की मांसपेशियाँ अकड़ जाती है तथा सिकुड़ जाती है । उनमें दर्द होता है ।
(d) रोगी तनु पेय पदार्थ तथा पानी भी नहीं पी सकता ।
(e) रोगी को पानी से डर लगता है ।
(f) रोगी बेसुध (अचेत) हो जाता है ।
(g) रोगी के हाथ-पैर लूले (लुंज) होकर अकड़ जाते है और उसके मरने की संभावना हो जाती है ।
(iii) प्रतिबंधक उपाय तथा उपचार:
(i) कुत्ते द्वारा काटे गए भाग को साबुन से स्वच्छ करके धोना चाहिए ।
(ii) शीघ्र से शीघ्र चिकित्सक के पास जाकर जितना आवश्यक हो उतनी संख्या में ‘अलर्क प्रतिबंधक इंजेक्शन’ लेना चाहिए ।
(iii) घरेलू, पालतू प्राणियों को अलर्क प्रतिबंधक टीका लगवाना चाहिए ।
4. क्षयरोग (टी॰बी॰):
राबर्ट काक नामक वैज्ञानिक ने क्षय रोग के जीवाणु की खोज की थी ।
(i) रोग प्रसार के कारण:
क्षय रोग के रोगी के थुंक से इसके रोगजंतु हवा में मिश्रित होते हैं । हवा द्वारा इस रोग का प्रसार होता है ।
(ii) प्रमुख लक्षण:
(a) रोगी को खाँसी आती रहती है ।
(b) उसे हल्का ज्वर होता है ।
(c) थुंक के साथ खून भी गिरता है ।
(d) रोगी का वजन क्रमश: घटता है ।
(e) सीने में दर्द होता है ।
(f) श्वासोच्छवास में कष्ट होता है ।
(iii) प्रतिबंधक उपाय तथा उपचार:
(i) बीसीजी का टीका लगवाया जाता है ।
(ii) रोगी को अन्य लोगों से अलग रखा जाता है ।
(iii) चिकित्सा से उपचार करवाते हैं ।
आजक्ल ‘क्षय’ को अत्यधिक संसर्गजन्य रोग माना जाता है । भारत में लगभग प्रत्येक दो मिनट में क्षय के एक रोगी की मृत्यु होती है । विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से क्षय के स्फन के कानम आयोजित किए जाते हैं । उसके लिए डाट (DOT – Direct Observation Treatment) केंद्र निर्मित किए गए हैं । इन केंद्रों में विश्व स्वास्थ्य संगम की उत्तम औषधियाँ मुफ्त उपलब्ध कराई जाती है ।
5. विषमज्वर:
(i) रोग प्रसार के कारण:
दूषित भोजन, दूषित पानी और मक्खियों द्वारा इस रोग का प्रसार होता है ।
(ii) प्रमुख लक्षण:
(a) निश्चित अवधि के बाद बुखार होता है ।
(b) सीने पर लाल-लाल फुंसियाँ निकलती है ।
(c) जुलाब होता है ।
(iii) प्रतिबंधक उपाय तथा उपचार:
(a) विषमज्वर का प्रतिबंधक टीका लगवाना ।
(b) पानी उबालकर पीना ।
(c) बाहर के खुले पदार्थ न खाना ।
(d) स्वच्छ तथा ताजा भोजन ग्रहण करना ।
(e) घर में रखे भोजन को सदैव ढंककर रखना ।
(f) सार्वजनिक स्वच्छता के नियमों का पालन करना ।
6. हैजा:
(i) रोग प्रसार के कारण:
घरेलू मक्खियों द्वारा दूषित किए गए पानी और भोजन द्वारा इस रोग का प्रसार होता है ।
(ii) प्रमुख लक्षण:
(i) इस रोग में उन्ही होती है और बार-बार जुलाब होता है ।
(ii) शरीर में पानी का अनुताप कम हो जाता है ।
(iii) त्वचा शुष्क हो जाती है और आँखें अंदर धँस जाती हैं ।
(iv) रोगी के पेट में दर्द होता है ।
(v) पैरों में अकड़न पैदा होती है ।
(iii) प्रतिबंधक उपाय तथा उपचार:
(i) सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ रखना चाहिए ।
(ii) घरेलू मक्खियों को मारने का प्रबंध करना चाहिए ।
(iii) खुले में रखे खाद्य पदार्थ नहीं खाना चाहिए ।
(iv) पानी उबालकर पीना चाहिए ।
(v) हैजे का प्रतिबंधक टीका लगवाना चाहिए ।
आजकल किसी तीर्थयात्रा पर अथवा विदेश जाते समय, हैजे का प्रतिबंधक टीका लगवाना स्वास्थ्य विभाग द्वारा अनिवार्य किया गया है । मनुष्य स्वयं ऐसा प्राणी है, जो ‘विब्रियो कालरा’ नामक हैजे का वाहक है ।
7. आंत्रशोथ:
संसर्गजन्य जीवाणुओं, विषाणुओं अथवा कृमियों द्वारा और किसी रासायनिक तथा अन्य हानिकारक पदार्थों द्वारा आँतों के आंतरिक स्तर में होनेवाली सूजन को ‘आत्रशोथ’ कहते है । आंत्र का अर्थ है, आँत तथा शोथ का अर्थ है सूजन ।
(i) रोग प्रसार के कारण:
इस रोग का प्रसार दूषित भोजन तथा पानी द्वारा होता है ।
(ii) प्रमुख लक्षण:
(a) पेट में दर्द रहता है ।
(b) ज्वर होता है ।
(c) उल्टियाँ होती हैं ।
(d) भोजन ग्रहण करने की इच्छा समाप्त हो जाती है ।
(e) कभी जुलाब तो कभी कोष्ठबद्धत (कब्ज) के लक्षण दिखाई देते हैं ।
(f) वजन में क्रमश: कमी होती है ।
(iii) प्रतिबंधक उपाय तथा उपचार:
(a) सुरक्षित भोजन तथा पानी का उपयोग करना चाहिए ।
(b) व्यक्तिगत स्वच्छता रखनी चाहिए ।
(c) खाद्य पदार्थों को ढँककर रखना चाहिए ।
8. पेचिश:
(i) रोग प्रसार के कारण:
घरेलू मक्खियों के द्वारा दूषित किए गए भोजन से इस रोग का प्रसार होता है । दूषित पानी तथा स द्वारा भी इसका प्रसार होता है ।
(ii) प्रमुख लक्षण:
(a) जुलाब के कारण शरीर में पानी की कमी होने से शरीर शुष्क हो जाता है ।
(b) आँखें अंदर धँस जाती है ।
(c) मुँह शुष्क पड़ जाता है, और ओंठ सुख जाते हैं ।
(d) मूत्र की मात्रा कम हो जाते है ।
(e) हाथ-पैर ठंडे हो जाते हैं ।
(f) नाड़ी की गति मंद हो जाती है ।
(iii) प्रतिबंधक उपाय तथा उपचार:
(a) पानी उबालकर ठंडा करके पीना चाहिए ।
(b) व्यक्तिगत स्वच्छता रखें ।
(c) भोजन पर धूल, मक्खियाँ न बैठें, इसकी सावधानी रखें ।
(d) रसोईघर स्वच्छ रहे, इसकी सावधानी रखें ।
(e) फलों तथा सब्जियों को धोने के बाद ही काटें ।
9. निर्जलीभवन:
जुलाब के कारण शरीर का पानी निकल जाने से शरीर शुष्क हो जाता है । इसे ‘निर्जलीभवन’ कहते हैं । जुलाब शुरू होने पर पानी की कमी को पूरा करने के लिए रोगी को जल संजीवनी दें और तुरंत ही चिकित्सक का उपचार प्रारंभ करें ।
अतिसार में आँतों की शोषण क्रिया बिगड़ जाती है, परंतु आँतें जल संजीवनी की शक्कर का अवशोषण कर सकती है । शक्कर के साथ-साथ शरीर नमक तथा पानी भी अवशोषित करता है । इससे तुरंत आराम मिलता है । शीघ्र उपचार कराने पर कोई गंभीर परिस्थिति उत्पन्न नहीं होती ।
(i) प्रतिबंधक उपाय:
कोई रोग हो जाने पर चिकित्सक से उपचार करवाकर रोगमुक्त होने से अच्छा यह है कि, हम यह प्रयास करें कि, रोग होने ही न पाए । इसके लिए टीका लगवाते हैं । अनेक रोगों के टीके तैयार किए जा चुके है । टीका लगवाने से शरीर की रोगप्रतिकारक क्षमता बढ़ती है । इसलिए यह भी प्रतिबंधक उपाय ही है ।
यद्यपि रोग फैलने के पहले या बाद में उसके होने के खतरे से बचने के लिए टीका लगवाना स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है, तथापि प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपने लिए सावधानी रखकर स्वास्थ्य विभाग के साथ सहयोग अना चाहिए । सरकार द्वारा बच्चों के लिए टीकाकरण कार्यक्रम आयोजित किए जाते है ।
बीसीजी., त्रिगुणी (घटसर्प, कुकुरखाँसी, धनुर्वात), पोलियो, खसरा, द्विगुणी (घटसर्प, धनुर्वात), धनुर्वात, पीलिया-बी जैसे विभिन्न प्रकार के टीके समय-समय पर बच्चों को दिए जाते हैं ।
(ii) रोगप्रतिबंधन के सामान्य उपाय:
i. पानी उबालकर ठंडा करके पीएँ ।
ii. संतुलित आहार लें ।
iii. स्वयं स्वास्थ्यवर्धक आदतों का निर्माण करें ।
iv. व्यक्तिगत तथा परिवेश की स्वच्छता पर ध्यान रखें ।
v. रोग के लक्षण दिखाई देते ही अतिशीघ्र उपचार करवाएँ ।
10. एड्स:
वास्तव में अंग्रेजी नामवाले शब्दों Acquired Immune Deficiency Syndrome के मूल अक्षरों से निर्मित संक्षिप्त नाम ‘एड्स’ है । वर्ष १९८६ में फ्रांस में डा॰ माँटेनियर और अमेरिका में डा॰ गैली द्वारा खोज किए गए विषाणु एक ही प्रकार के थे । यह सिद्ध होने पर उसका नाम ‘ह्यूमन इम्युनोडेफिसिएंसी वायरस (HIV)’ रखा गया ।
इसी HIV विषाणु के संसर्ग द्वारा एड्स होता है । इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति अपनी रोग प्रतिकारक क्षमता खो देता है और रोगग्रस्त हो जाता है । चिकित्सकीय उपचार द्वारा रोगी की आयु केवल बढ़ाई जा सकती है । एड्स रोग से ग्रस्त व्यक्ति की उपेक्षा न करें । उनकी ओर सहायता के हाथ बढ़ाएँ ।
i. विश्व स्वास्थ्य संगम द्वारा वर्ष १९८६ से ‘विश्व एड्स नियंत्रण’ कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है ।
ii. भारत में वर्ष १९८७ में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम भी प्रारंभ किया गया है ।
WHO द्वारा सभी सरकारी अस्पतालों में उत्तम प्रकार की औषधियाँ मुफ्त उपलब्ध कराई जाती हैं ।