Read this article in Hindi to learn about the composition of cell and micro-organisms.

तुम जानते हो कि सभी सजीव कोशिकाओं द्‌वारा निर्मित हैं । वनस्पतियाँ, प्राणी और स्वयं हम भी कोशिकाओं द्‌वारा ही निर्मित हैं । एक अंग्रेज वैज्ञानिक राबर्ट हुक ने सूक्ष्मदर्शी यंत्र में लकड़ी की काग (कार्क) की पतली काट लेकर देखा ।

उहोंने देखा कि काग की रचना मधुमक्खी के छत्ते की भांति अलग-अलग खानों (कोषों) जैसे निर्मित है । उन्होंने इस रचना का नाम कोशिका रखा कोशिका विज्ञान में इसका अध्ययन किया जाता है ।

कोशिका का अध्ययन करने के लिए संयुक्त सुक्ष्मदर्शी का उपयोग किया जाता है, परंतु कुछ कोशिकाओं की रचना अध्ययन में संयुक्त सूक्ष्मदर्शी एक सीमा तक ही सक्षम होता है । ऐसी स्थिति में इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप (सूक्ष्मदर्शी) की सहायता से उनका अध्ययन करना संभव होता है ।

इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप (सूक्ष्मदर्शी) की सहायता से अतिसूक्ष्म पदार्थों का अभिवर्धन हो जाता है और उनका बड़ा प्रतिबिंब देखा जा सक्ता है । इसके द्‌वारा कोई पदार्थ दो अरब (2 X 109) गुना बड़ा करके देख सकते     हैं ।

कोशिका द्‌वारा सजीवों के संगठन का ज्ञान होता है । कोशिका की विशिष्ट रचना होती है । इन्हीं कोशिकाओं के माध्यम से सजीवों की जीवन-क्रियाएँ होती हैं । इसके लिए कोशिका में अलग-अलग घटक होते

हैं । स्यें कोशिका के अंगक कहते हैं ।

कोशिका के अंगक:

कोशिका पटल (प्लैज्मा झिल्ली), कोशिका भित्ति, कोशिका द्रव्य, सूत्र कणिका, गाल्जी पिंड, राइबोसोम, लाइसोसोम, लवक, केंद्रक, धानी (रिक्तिका) ये कोशिका के अंगक है ।

 

कोशिका के कुछ अंगकों के कार्य:

(i) कोशिका पटल:

यह कोशिका का बाहरी आवरण है । इसे प्लैज्मा झिल्ली भी कहते है । यह अत्यंत पतली, लचीली तथा झिल्ली जैसी होती है । कोशिका पटल कोशिका के आंतरिक भागों की रक्षा करता है । साथ ही यह कोशिका के अंदर आनेवाले और उससे बाहर जानेवाले पदार्थों पर नियंत्रण रखता है । इसके द्‌वारा कोशिका को एक निश्चित आकार प्राप्त होता है ।

(ii) कोशिका भित्ति:

कोशिका भित्ति स्नेल वनस्पति कोशिका में होती है । वनस्पति कोशिका के कोशिका पटल के बाहर स्थित आवरण को कोशिका भित्ति कहते है । यह सेल्युलोज नामक पदार्थ से निर्मित होती है । इसमें से पदार्थ आरपार जा सकते हैं । कोशिका भित्ति द्‌वारा कोशिका को मजबूती मिलती है । इसके द्‌वारा कोशिका का आकार निश्चित होता है तथा इसके आंतरिक अंगों की सुरक्षा होती है ।

(iii) केंद्रक:

कोशिका का सबसे बड़ा तथा मध्यवर्ती घटक केंद्रक है । केंद्रक प्राय: आकार में गोलाकार होता है । केंद्रक के चारों ओर स्थित केंद्रक पटल छिद्रमय होता है । केंद्रक में डी एन ए से निर्मित गुणसूत्र होते है । डी एन ए के निश्चित लंबाईवाले धागों को जीन कहते हैं ।

केंद्रक कोशिका के सभी कार्यों पर नियंत्रण रखता है । यह कोशिका के विभाजन की प्रक्रिया में भाग लेता है । केंद्रक के गुणसूत्रों पर स्थित जीनों के अनुसार आनुवंशिक गुणधर्म अगली पीढ़ी तक संक्रमित होते       है ।

(iv) कोशिका द्रव्य:

कोशिका के केंद्रक के अतिरिक्त द्रव अवस्थावाले भाग को ‘कोशिका द्रव्य’ कहते है । कोशिका द्रव्य वास्तव के एक अर्धप्रवाही पदार्थ है, जिसमें पानी में विलेय कार्बनिक तथा अकार्बानिक पदार्थ और विभिन अंगक स्थित होते हैं । कोशिका द्रव्य के विभिन्न अंगकों की सहायता से कोशिका की सभी प्रक्रियाएं सहज ढंग से होती रहती हैं ।

(v) सूत्र कणिका:

ये अलग-अलग आकारवाली होती हैं । ये मुख्य रूप से अंडाकार स्वरूप में दिखाई देती हैं । प्रत्येक सूत्र कणिका में दोहरी दीवार होती है, जिसमें से अंदरवाली दीवार झुर्रीदार होती है ।

कोशिका के खाद्‌य पदार्थ (भोजन) द्‌वारा ऊर्जा के निर्माण का कार्य सूत्रकणिकाएँ ही करती हैं । कोशिका के लिए आवश्यक ऊर्जा की पूर्ति ये ही करती हैं । इसलिए इन्हें कोशिका का ऊर्जा केंद्र कहते हैं ।

(vi) गाल्जी पिंड:

कोशिका द्रव्य की चपटे पटल जैसे आकारवाली थैलियों को गाल्जी पिंड कहते हैं । इनमें प्रकिण्वों (एंजाइम्स) का संग्रह होता है ।

(vii) धानी:

धानी वास्तव में खोखली होती हैं । इन्हें रिक्तिका भी करते हैं । एक पटल से घिरे हुए अंगक को धानी कहते है । वनस्पति कोशिका की धानी (रिक्तिका) आकार में बड़ी होती है । धानियों के माध्यम से ही उत्सर्जक पदार्थों और विभिन्न स्रावों के संचय का कार्य किया जाता है । प्राणी कोशिका तथा वनस्पति कोशिका में कुछ अंतर पाए जाते  हैं ।

ये अंतर निम्नलिखित हैं:

प्राणी कोशिका:

(i) कोशिका पटल के चारों ओर कोई आवरण नहीं होता ।

(ii) धानियाँ (रिक्तिकाएँ) छोटी होती हैं ।

(iii) क्लोरोफिल (पर्णहरित) नहीं होता ।

वनस्पति कोशिका:

(i) कोशिका पटल के चारों ओर कोशिका भित्ति का आवरण होता है ।

(ii) धानियाँ (रिक्तिकाएँ) बड़ी होती हैं ।

(iii) क्लोरोफिल (पर्णहीरत) होता है ।

सूक्ष्मजीव:

हमारे आसपास पानी में, हवा में, मिट्टी में अनेक सूक्ष्मजीव हैं । यहाँ पर तुम्हें विषाणुओं, जीवाणुओं, शैवालों, कवकों, किण्वकोशिका तथा आदिजीवियों की जानकारी दी गई है । ये सब सूक्ष्मजीव ही हैं । कुछ सूक्ष्मजीव उपयोगी होते हैं, तो कुछ हानिकारक होते हैं ।

विषाणु:

इनका अध्ययन केवल इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी द्‌वारा ही संभव है । इनकी रचना सरल होती है । इनमें कोशिका द्रव्य तथा अंगक नहीं होते । विषाणुओं के चारों ओर प्रथिनों का आवरण होता है । इनमें डीआक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड (डी॰एन॰ए) अथवा राइबो न्यूक्लिक एसिड (आर.स.ए) होते हैं । इनके द्‌वारा वनस्पतियों तथा प्राणियों को विभिन्न रोग होते हैं ।

जीवाणु:

विषाणुओं की अपेक्षा जीवाणुओं का आकार बड़ा होता है परंतु ये भी सूक्ष्मदर्शी द्‌वारा ही दिखाई देते हैं । जीवाणुओं में केंद्रक के स्थान पर मुक्त गुणसूत्र होने के साथ-साथ कोशिका भित्ति, कोशिका पटल तथा कोशिका द्रव्य नामक अंगक होते हैं । कुछ जीवाणु उपयोगी तथा कुछ हानिकारक होते हैं ।

फलीवाली वनस्पतियों की जड़ों की गाँठों में स्थित राइजोबियम नामक जीवाणु हवा की नाइट्रोजन का नास्ट्रोजन के यौगिकों में रूपांतरण करते है । ये यौगिक मिट्टी में मिश्रित हो जाते हैं, जिससे मिट्टी उपजाऊ होती है ।

इससे नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है । मिट्टी में स्थित एजेटोबैक्टर नामक जीवाणु हवा की नाईट्रोजन का स्वतंत्र रूप में स्थिरीकरण करते रहते हैं । मिट्टी में अनेक जीवाणु होते हैं, जो सजीवों का अपघटन करके ह्युमस बनाते है । इससे जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है ।

स्टैफिलोकाकस नामक जीवाणु खाद्‌य पदार्थों पर बढ़ते समय एटेरोटाक्सिन नामक विषैला रसायन निर्मित करते हैं । इस प्रकार के पदार्थ खाने पर जुलाब तथा उन्हीं होती है । समय पर किए गए थोड़े-से उपचार के बाद ये परेशानियाँ दूर हो जाती हैं ।

वायुरुद्ध डिब्बों में बंद खाद्‌य पदार्थों के उपयोग की अवधि समाप्त हो जाने के बाद उनमें क्लोस्ट्रिडियम नामक जीवाणु के उत्पन्न होने की संभावना होती है । इसके कारण खाद्‌य पदार्थों में विषैले रसायन तैयार होते है । ऐसे पदार्थ पेट में जाने से जुलाब तथा उल्टी की बीमारी होती है ।

इसलिए वायुरुद्ध डिब्बों पर उनमें रखे खाद्‌य पदार्थों के उपयोग की अंतिम अवधि मुद्रित की जाती है । ऐसे खाद्‌य पदार्थ खरीदते समय इस जानकारी को ज्ञात करना आवश्यक होता है ।

शैवाल:

यह नम तथा गीले स्थानों पर पाई जाती है । पानी में पैदा होनेवाली इस वर्ग की वनस्पतियों की कोशिका में हरितलवक होता है । ये स्वयंपोषी होती हैं । बहुत से शैवाल उपयोगी होते हैं । कुछ शैवालों का उपयोग भोजन के रूप मेक भी किया जाता है ।

इमारतों के ऊपर बनी पानी की बड़ी टंकियों में इस शैवाल के उत्पन्न होने पर पानी में से दुर्गंध निकलती है । डाइटम को शैवाल के एककोशिकीय स्वरूप में जाना जाता     है ।

कवक:

कुछ कवक उपयोगी होते हैं परंतु कुछ कवकों के हानिकारक होने के कारण पदार्थों का विनाश होता है । त्वचा के रोग होते हैं । इस वर्ग की वनस्पतियों की कोशिकाओं में हरितलवक नहीं होते । इसलिए ये परपोषी होती हैं । ये नम तथा गीले स्थानों पर कार्बनिक पदार्थों पर उत्पन्न होते हैं । पेनिसिलियम जाति के कवक के वर्धन के समय निर्मित होनेवाला रसायन विशिष्ट प्रकार के सूक्ष्मजीवों का विनाश करने में सक्षम होता है ।

अलेक्जेंडर फ्लेमिंग नामक वैज्ञानिक ने ई॰स॰ १९२९ में इसकी खोज की थी । आजकल पेनिसिलिन नाम से प्रसिद्ध प्रतिजैविक इस पेनिसीलियम द्‌वारा ही निर्मित होता है । कुछ विशिष्ट सूक्ष्मजीवों में भी विशिष्ट प्रतिजैविक तैयार करने की क्षमता होती है । इसी प्रकार कुछ प्रतिजैविकों में विशिष्ट सूक्ष्मजीवों का विनाश करने की भी क्षमता होती है ।

इसे जानने के लिए नीचे दी गई तालिका देखो:

 

किण्व कोशिका:

ये कवकवर्गी सूक्ष्मजीव है । किण्व कोशिकाएँ किण्वन की प्रक्रिया संपन्न करती हैं । सूक्ष्मजैविक किण्वन प्रक्रिया द्‌वारा उत्तम स्वाद अथवा गंधवाले कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं । पाव, इडली, दोसा जैसे खाद्‌यपदार्थ किण्वन की प्रक्रिया द्‌वारा तैयार होते हैं । ये रुचिकर लगते हैं । परंतु कुछ सूक्ष्मजैविक किण्वन प्रक्रिया द्‌वारा दुर्गंध तथा अप्रिय स्वादवाले पदार्थ बनाते हैं । इसलिए ऐसे पदार्थ खानेंलायक नहीं रह जाते ।

आदिजीवी:

यह एककोशिकीय प्राणियों का वर्ग है । इनकी कोशिका में पर्णहरित (हरितद्रव्य) नहीं होता परंतु कोशिकापटल तथा केंद्रक होते हैं । तैयार खाद्‌य प्राप्त करके आदिजीवी अपनी वृद्धि करते हैं । एक आदिजीवी हानिकारक होते हैं । अमीबा जैसे आदिजीवी दूषित पानी या भोजन द्‌वारा पेट में पहुंचकर जुलाब तथा उल्टी जैसे पेट के विकार पैदा करते हैं । समय पर उपचार न करने पर ये स्थाई रूप से कष्ट देते हैं ।

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