Read this article in Hindi to learn about the structure of starfish, explained with the help of suitable diagrams.

पहचान एवं वर्गीकरण:

तारे के आकार के ये समुद्री जीव वास्तव में मछली नहीं होते । समुद्र किनारे रेती में पड़ी हुई अथवा उथले जल में तैरती हुई इनकी पाँच भुजाएँ इनकी प्रमुख पहचान हैं ।

इनकी वर्गीकरण निम्नानुसार हैं:

जगत् – जन्तु-जगत् (बहुकोशिकीय, विषमपोषीजन्तु)

संघ – इकानोडर्मेटा (त्वचा पर काँटे जैसे उभार अरीय सममित)

वर्ग – एस्टेरॉइडिया (तारे समान आकार)

वंश – एस्टोरियास (Asterias)

टिप्पणी:

(1) ये समुद्री जीव हैं । रेतीले किनारे, कीचड़ में धंसी या चट्टानों पर धीमे-धीमे रेंगती रहती हैं ।

(2) ये मांसाहारी होती हैं एवं समुद्री क्रस्टेशियन, मोलस्क जीवों एवं सूक्ष्म-जन्तुओं को आहार बनाती हैं ।

(3) इनका शरीर मुख-गुदा अक्ष (oro-aboral axis) पर चपटा होता है ।

(4) शरीर के मध्य में एक केन्द्रीय बिम्ब (central disc) होती है जिससे पाँच भुजाएँ निकली होती हैं । बिम्ब की एक सतह पर मुख होता है एवं दूसरी सतह पर गुदा इन सतहों को क्रमश: अधर या मुख-सतह (oral-surface) एवं पृष्ठ या गुदा-सतह (aboral surface) कहते हैं ।

(5) मुख-सतह तलहटी की ओर होता है एवं गुदा-सतह ऊपर की ओर । मुख-छिद्र से पाँच गत्यर्थ-खाँचे (ambulacral grooves) निकलती हैं जो एक-एक भुजा के सिरे तक जाती हैं। खाँचों के दोनों ओर काँटेनुमा रचनाएँ होती हैं प्रत्येक खाँचे में दो कतारों में नाल-पाद (tube feet) होते हैं जो इनकी विशेषता है ।

(6) ये नाल-पाद से प्रचलन करते हैं ।

(7) गुदा सतह पर बिम्ब थोड़ी उभरी होती है । इस सतह पर कंटिकाएँ (spines) एवं चिमटी के आकार के वृंतपद (pedicillariae) होते हैं । गुदा-छिद्र बिम्ब के केन्द्र से थोड़ा हटकर होता है ।

(8) इनमें एक विशिष्ट जल-संवहनीय तंत्र (water vascular system) होता है जो आहार-ग्रहण, परिसंचरण, प्रचलन आदि के कार्य करता है ।

(9) इनमें पुनर्जनन की अद्‌भुत क्षमता होती है ।

(10) नर एवं मादा जन्तु पृथक-पृथक होते हैं एवं लैंगिक जनन होता है । परिवर्धन में लार्वा अवस्था द्विपार्श्व समीमती (bilateral symmetry) दर्शाता है ।