Read this article in Hindi to learn about the structure of earthworm, explained with the help of a suitable diagram.

पहचान एवं वर्गीकरण:

खंडित शरीर  का यह जन्तु भूमिकृमि है । इसके अगले भाग में एक पट्टिका है एवं शरीर एवं संपुटक हैं ।

इसका वर्गीकरण निम्नानुसार है:

जगत – जन्तु-जगत् (बहुकोशिकीय, विषमपोषी जन्तु)

संघ – ऐनेलिडा (खण्डित सरीर, देहगुही)

वर्ग – ओलिगोकीटा (शरीर पर चलने हेतु संपुटक)

वंश – फेरेटिमा (Pheretima)

जाति – पोस्थ्युमा (posthuma)

टिप्पणी:

(1) भूमि में बिल बनाकर रहने के कारण भूमि कृमि कहलाते हैं ।

(2) इसकी भारतीय जाति पोस्थ्युमा (P. posthuma) है जो कि भूरे रंग का जन्तु है ।

(3) बिल बेर मुख द्वार पर इनका मल लम्बी गोलियों के रूप में जमा रहता है, जिनसे इनकी उपस्थिति का पता चलता है ।

(4) केंचुआ एक लम्बा, संकरा, बेलनाकार एवं खंडित शरीर वाला जन्तु होता है । शरीर में लगभग 100 से 125 खण्ड होते हैं ।

(5) अगले सिरे पर मुख-छिद्र एवं अंतिम खण्ड में गुदा-छिद्र होता है ।

(6) अगले 13 खण्डों के पश्चात् एक गहरे भूरे रंग की पट्टिका (clitellum) होती है जो तीन खण्डों (14, 15 एवं 16 के ऊपर) आवरण के समान होती है ।

(7) पृष्ठ-सतह पर एक गहरे भूरे रंग की धारी दिखती है जो पृष्ठ रुधिर-वाहिनी है । प्रचलन हेतु त्वचा में संपुटक (setae) होते हैं ।

(8) अधर-सतह थोड़ी चपटी होती है । अधर-सतह पर 14 वें खण्ड में एक मादा-जनन छिद्र एवं 18 वें खण्ड में दो नर जनन-छिद्र होते हैं । नर जनन-छिद्रों के अगले एवं पिछले खण्डों में एक-एक जोड़ी उभार होते हैं जिन्हें जनन-पैपिला (genital papillae) कहते हैं ।

(9) उभयलिंगी होते हैं । लैंगिक जनन द्वारा ककून निर्माण होता है जिनमें से शिशु केंचुए उत्पन्न होते हैं ।

(10) केंचुआ अत्यधिक आर्थिक महत्व का है । यह भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायक होता है अत: इसे कृषकों का मित्र कहते हैं ।