This article provides a practical guide in Hindi to learn about the process of growth and development in plants.

एकबीजपत्री बीज एवं द्विबीजपत्री बीजों में अंकुरण का अध्ययन: 

परिचय:

पौधों में, बीज के अन्दर भ्रूण सुषुप्ता अवस्था में बना रहता है लेकिन जैसे ही भ्रूण को नमी मिलती है वह नवोदभिद पौधे में विकसित होने लगता है । अत: ऐसी प्रक्रिया जिसमें बीज का भ्रूण सुषुप्ता अवस्था से निकलकर विकसित होने लगता है, अंकुरण कहलाती है । इस प्रक्रिया में बीज नमी अवशोषित करता है । अंकुरण की इस प्रक्रिया में कई कारक (Factors) महत्त्वपूर्ण होते हैं ।

जैसे:

(i) जल अथवा नमी

(ii) सामान्य तापक्रम

(iii) वायु

(iv) ऑक्सीजन ।

ये सभी कारक अंकुरण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं ।

अंकुरण सामान्यत: दो प्रकार का होता है:

(1) ऊपरिभूमिक (Epigeal)

(2) अधोभूमिक (Hypogeal)

(A) द्विबीजपत्रीय बीज में अंकुरण का अध्ययन:

प्रयोग:

(i) प्रयोगशाला में द्विबीजपत्रीय बीज जैसे मटर, चना अथवा सेम के सूखे हुए बीज लें ।

(ii) एक पेट्रीडिश में 2/3 भाग तक, लकड़ी का बुरादा डालें इसके बाद लकड़ी के बुरादा पर थोड़ा सा जल डालें जिससे लकड़ी का बुरादा नम हो सके ।

(iii) अब इस पर उपरोक्त कोई भी सूखे हुए कुछ बीज रख दीजिए । पेट्रीडिश को पेट्रीडिश के दूसरे भाग से ढंककर उपयुक्त स्थान पर 2-3 दिन तक रख दें ।

(iv) 2-3 दिन बाद अवलोकन करने पर ज्ञात होगा कि बीजों में अंकुरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है ।

चना, मटर अथवा सेम के अंकुरित बीजों में निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देंगे:

(i) बीजपत्र सामान्यत: लकड़ी के बुरादे की सतह पर या लकड़ी के बुरादे में ही बने रहते है ।

(ii) अंकुरण की प्रक्रिया में सर्वप्रथम अधोबीज पत्र वाले भाग के नीचे मूलांकुर वृद्धि करेगा जो आगे चलकर जड़ें विकसित करेगा ।

(iii) बीजपत्र के अक्ष से ऊपरी बीजपत्र (EPICOTYL) वाला भाग लम्बाई में वृद्धि करके, प्रांकुर को ऊपर की ओर धकेल कर प्ररोह को विकसित करेगा ।

(iv) इस प्रकार का अंकुरण अधोभूमिक कहलाता है ।

(B) एकबीजपत्रीय बीजों में अंकुरण का अध्ययन: 

प्रयोग:

(i) प्रयोग के लिए सूखे हुए मक्के के बीज लें ।

(ii) प्रयोगशाला में एक पेट्रीडिश में 2/3 भाग तक लकड़ी का बुरादा डालें । इसके बाद थोड़ा सा पानी डालकर लकड़ी के बुरादे को नम कर दें ।

(iii) इस लकड़ी के बुरादे पर कुछ सूखे हुए मक्के के बीज रख दें ।

(iv) पेट्रीडिश को पेट्रीडिश के दूसरे भाग से ढंककर किसी उपयुक्त स्थान पर रख दें ।

(v) 2-3 दिन बाद मक्के के बीज में अंकुरण प्रक्रिया का अवलोकन करें ।

अवलोकन:

(i) अंकुरण के समय बीजपत्र के भ्रूणपोष द्वारा संचित भोज्य पदार्थ अवशोषित किया जाता है ।

(ii) अंकुरण के समय मूलांकुर वाला भाग, कालर जैसी संरचना, जिसे कॉलोराइजा कहते हैं, से नीचे की ओर बाहर निकलता है ।

3. प्रांकुर वाला भाग, प्रांकुर के पतले आवरण जिसे कोलिओटटाइल कहते हैं, से ऊपर की ओर बाहर निकलता है ।

नोट:

इमली ककड़ी (खीर), अरंडी आदि पौधों के बीजों में भी अंकुरण प्रक्रिया का अध्ययन उपरोक्त विधि से किया जा सकता है ।

इन बीजों में ऊपरिभूमिका अंकुरण होता है, जिसमें निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते है:

(a) इस प्रक्रिया में बीजपत्र, अधोबीजपत्र (Hypocotyl) के लगातार लम्बाई में वृद्धि के कारण ऊपर की ओर आ जाते है । अधोबीजपत्र बीजपत्र के अक्ष के ठीक नीचे वाला भाग है ।

(b) इस प्रकार के अंकुरण में बीजपत्र ऊपरी सतह पर दिखाई देते हैं तथा चपटी, हरी पत्ती के समान दिखते हैं । इमली जैसे पौधों के बीज अकरण प्रक्रिया में ऊपरी सतह पर सिकुड़ जाते हैं, अथवा गिर जाते हैं ।