Read this article in Hindi to learn about the various type of leafs, explained with the help of suitable diagrams.

Type # 1. नागफनी (Opuntia):

i. यह नागफनी की टहनी है।

ii. इसकी पत्तियाँ शूलों (spines) के रूप में रूपान्तरित हो गई हैं ।

iii. शूलों के रूप में पत्तियाँ एक रूपान्तरित तने पर्णाभ पर लगी हैं ।

iv. एक-एक स्थान पर शूल गुच्छों के रूप में हैं । (देखिए चित्र 5.23)

v. शूलों के कक्षों (axills) में कक्षीय कलिकाएँ (axillary buds) उपस्थित हैं ।

vi. इन शूलों का मुख्य कार्य पौधे की रक्षा करना एवं पौधे कम करना है ।

Type # 2. नींबू (Lemon):

i. यह नींबू की पत्तियाँ एवं काँटे हैं।

ii. पत्ती हस्ताकार संयुक्त प्रकार की है किन्तु इसमें पर्णकों की संख्या केवल एक है ।

iii. एक पर्णक वाली इस पत्ती को एक पर्णी (unifoliate) कहते हैं ।

iv. इसका पर्णवृन्त चपटा एवं पंख के समान है । ऐसे पर्णवृन्तों को पर्णाभवृन्त (phyllode) कहते हैं ।

v. तने पर रूपान्तरित तने के रूप में काँटे भी हैं जो पौधे की रक्षा करते हैं ।

Type # 3. कलियारी (Gloriosa):

i. यह कलियारी के पौधे के तने का एक भाग है जिसमें पर्णअप्रक (leaf apex) प्रतान (tendril) के रूप में रूपान्तरित हो गया है ।

ii. यह आरोहक पौधा है इसीलिये पत्तियाँ प्रतान युक्त हैं ।

iii. पत्तियों के प्रतान किसी सहारे से लिपट जाते हैं । इसी प्रकार ये पौधे की वृद्धि में सहायक होते हैं ।

Type # 4. बबूल (Acacia):

i. ये बबूल की द्विपिच्छकी संयुक्त पत्ती है ।

ii. इसमें मुख्य नाड़ी से दोनों ओर द्वितीयक नाड़ियाँ निकलती हैं ।

iii. पर्णक दो-दो के जोड़े से द्वितीयक नाड़ी (Secondary rachis) पर स्थित हैं ।

iv. मुख्य नाड़ी (Primary ractus) के आधार पर स्थित अनुपर्ण (stipules) शूलों के रूप में रूपान्तरित हो गये हैं ।

v. शूलमय अनुपर्ण (spiny stipules) पौधे की रक्षा करते हैं ।

Type # 5. अजूबा (Bryophyllum):

i. यह अजूबे की साधारण पत्ती है ।

ii. पत्ती गूदेदार है क्योंकि इसमें खाद्य-पदार्थ संग्रहीत रहते हैं ।

iii. पत्ती के किनारों पर अनेक कलियाँ एवं छोटी- छोटी पत्तियाँ निकली हैं ।

iv. छोटी कलिकाओं के आधार से अनेक अपस्थानिक जड़ें निकली हैं जो भूमि में जाकर कलिकाओं या सम्पूर्ण पत्ती को भूमि में स्थिर करती हैं ।

v. अजूबे की पत्तियों द्वारा इस प्रकार के कलिका निर्माण से वर्धी प्रजनन होता है ।

Type # 6. जलहायसिन्थ (Water Hyacinth):

i. यह एक जलीय पौधा है जो जल की सतह पर तैरता है ।

ii. इसकी पत्तियों के पर्णवृन्त फूलकर स्पंजी गुब्बारों के रूप में हो जाते हैं जिन्हें आभासी शल्क कन्द (pseudo bulb) भी कहते हैं । अत: यह पर्णवृन्त का रूपान्तरण है ।

iii. पर्णवृन्त के फूलने से उसमें हवा भर जाती है जिससे पौधे को जल से सतह पर रहने में सहायता मिलती है ।

iv. फूले पर्णवृन्त को प्लव-वृन्त (floating petiole) कहते हैं ।

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Type # 7. मटर (Pea):

i. यह मटर की संयुक्त पत्तियाँ हैं ।

ii. इसमें पत्ती के शीर्षभाग के पर्णक प्रतानी में रूपान्तरित हो गये हैं । इन प्रतानों को पर्ण-प्रतान (leaf tendirls) कहते हैं ।

iii. प्रतान आरोही अंग हैं जिसकी सहायता से ये किसी सहारे के चारों ओर कुंडलित होकर जकड़ लेते हैं तथा वृद्धि करते जाते हैं ।

iv. संयुक्त पत्ती के आधार पर स्थित अनुपत्र (stipule) भी पत्ती के समान रूपान्तरित हो जाता है ।

v. पत्ती के समान अनुपर्ण पत्ती का ही कार्य करता है । ऐसे अनुपर्ण को पर्णिल अनुपर्ण (foliaceous stipule) कहते हैं ।

Type # 8. स्माइलेक्स (Smilax):

i. यह स्माइलेक्स या चोब चीनी पौधे की पत्ती है ।

ii. पर्णाधार (leaf base) पर स्थित अनुपर्ण प्रतान के रूप में रूपान्तरित हो गये हैं ।

iii. ऐसे अनुपणों को प्रतानी अनुपर्ण (tendrillar stipules) कहते हैं ।

iv. ये भी पौधे के आरोहण में सहायक होते हैं ।

Type # 9. तुम्बीलता या कलश पादप (Pitcher Plant):

i. यह दलदल में पाया जाता है ।

ii. इस पौधे की कुछ पत्तियाँ एक कलश या तुम्बी (pitcher) के रूप में रूपान्तरित हो जाती हैं ।

iii. पत्ती का पर्णवृन्त धागे के समान होता है जबकि इसका फलक (lamina) आकर्षक रंग की कम्भी या कलश का रूप ले लेता है ।

iv. कलश एक ढक्कन से ढँका रहता है । कलश की गर्दन में नीचे की ओर झुके हुए रोम होते हैं जो चिकने एवं नुकीले होते हैं । कलश के निचले भाग में एक अम्लीय तरल पदार्थ भरा रहता है । ढक्कन के पास कुछ ग्रंथियाँ होती हैं जिनके स्राव से कीट आकर्षित होते हैं ।

v. कलश फूलों के समान दिखाई देता है अत: कीड़े इनके आकार एवं ग्रंथियों के स्राव से आकर्षित होकर इन कलशों पर आते हैं । कलश के भीतर प्रवेश करने से कीड़े नीचे तरल पदार्थ में गिर जाते हैं ।

vi. अम्लीय तरल पदार्थ कीट को मार कर उसका पाचन कर देता है । कलश की कोशिकाएँ पाचित कीट का अवशोषण कर लेती हैं ।

vii. उक्त क्रिया द्वारा पौधे नाइट्रोजन की कमी की पूर्ति जन्तुओं को अपना आहार बनाकर कर लेते हैं ।

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