Read this article in Hindi to learn about the structure of ferns, explained with the help of a suitable diagram.

पहचान एवं वर्गीकरण:

पिच्छ के आकार की पत्तियों वाले फर्न पौधे ठंडे एवं नम स्थानों में मिलते हैं । शोभा के लिए इन्हें बाग-बगीचों में लगाया जाता है ।

फर्न पौधों की वर्गीकरण निम्नानुसार है:

जगत् – वनस्पति-जगत् (हरे, बहुकोशिकीय, स्वपोषी)

डिविजन- ट्रेकियोफाइटा (संवहन ऊतक उपस्थित)

उपडिविजन – टेरोप्सिडा (पौधे वास्तविक जड़, तने एवं पत्ती में विभेदित)

वंश – ड्रायोप्टेरिस (Dryopteris)

टिप्पणी:

(i) फर्न पौधे सामान्यत: ठंडी जलवायु एवं नम भूमि में ऊँचे स्थानों पर उगते हैं । ऊष्ण जलवायु में ये केवल गमलों में छायादार स्थानों पर उगाये जाते हैं ।

(ii) पौधा बीजाणुद्‌भिद अवस्था में होता है ।

(iii) पौधा तना, जड़ एवं पत्तियों में विभेदित होता है ।

(iv) तना भूमिगत होता है, जड़ें अपस्थानिक (adventitious) प्रकार की होती हैं । तने की वृद्धि भूमि के समानान्तर प्रकन्द (rhizome) के रूप में होती है एवं पत्तियाँ उसी में से निकलती हैं ।

(v) पत्ती संयुक्त प्रकार की एवं पिच्छाकार होती हैं । प्रत्येक पत्ती के केन्द्रीय अक्ष को पिच्छाक्ष या रेकिस (rachis) कहते हैं एवं आजू-बाजू के पर्णकों (leaflets) को पिच्छक या पिन्नी (pinnae) कहते हैं ।

(vi) पत्ती के पिन्नी की अधर-सतह पर बीजाणु-धानियाँ (sporangia) होती हैं जिनसे अलैंगिक जनन द्वारा बीजाणु (spores) उत्पन्न होते हैं ।

(vii) बीजाणु उगकर हृदय के आकार के युग्मकोद्भिद अवस्था को जन्म देते हैं जो लैगिक जनन कर बीजाणुद्भिद पौधे उत्पन्न करते हैं । अत: फर्न पौधे भी जीवन-चक्र के दौरान पीढ़ी-एकान्तरण दर्शाते हैं ।

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