Read this article in Hindi to learn about the various aspects of biology and human welfare.
विभिन्न पादप रोगों के सामान्य लक्षणों का अध्ययन:
परिचय:
मानव एवं जंतुओं के समान पादपों में भी विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं । ये रोग समय-समय पर पौधों के विभिन्न भागों पर जैसे पत्ती, तना, पुष्पक्रम, पुष्प एवं फल पर दिखाई देते है । इन रोगों को सामान्य लक्षणों के आधार पर पहचाना जाता है । इन रोगों के लिए कवक, जीवाणु विषाणु अथवा अन्य रोगकारक जीव उत्तरदायी होते हैं ।
(i) अनाज के रस्ट का अध्ययन करना:
रस्ट का अर्थ होता हैं जंग लगना । वर्षा के समय जिस प्रकार लोहे में जंग लगती है इसी प्रकार के लक्षण अनाज वाले पौधों के तनों एवं पत्तियों पर उत्पन्न होते है । गेहूँ जौ, मक्का आदि पौधों की पत्तियों एवं तनों पर रस्ट रोग सामान्यत: उत्पन्न होते है ।
अवलोकन:
आसपास के खेतों में गेहूँ की फसल का अवलोकन करें । सामान्यत: जनवरी फरवरी के माह में गेहूँ की पत्तियों एवं तने पर रस्ट रोग के लक्षण दिखाई देते हैं । तनों एवं पत्तियों पर लाल भूरे रंग के लम्बी-लम्बी पट्टियाँ दिखाई देती हैं । आवर्धक लैस (हैंडलैंस) की सहायता से इसका अध्ययन करें । यह रोग पक्सीनिया ग्रेमिनिस ट्रिटीसाई कवक के द्वारा होता है ।
(ii) अनाज के स्मट रोग का अध्ययन करना:
अनाज वाले पौधों जैसे ज्वार, बाजरा, गेहूँ आदि पर ये रोग के लक्षण दिखाई देते हैं । ये लक्षण पौधे के पुष्पक्रम अथवा पुष्प के अंडाशय तथा पुष्पपत्रों के विभिन्न भागों पर दिखाई देते है । इस रोग में पुष्प के उपरोक्त भागों पर काला महीन चिकना पाउडर जैसा दिखाई देता है । स्मट रोग अस्टिलेगो रोगकारक कवक के द्वारा होता है ।
अवलोकन:
अपने आसपास के स्थानों में सामान्यत: फरवरी मार्च माह में खेतों में गेहूँ की फसल का अवलोकन करें । ये लक्षण गेहूँ की बाल निकलने के बाद काले पाउडर जैसे दिखाई देते हैं । ये लक्षण तने एवं पत्तियों पर दिखाई नहीं देते । हैंडलैंस की सहायता से लक्षणों का अध्ययन करें । यह रोग अस्टिलेगो, रोगकारक कवक द्वारा उत्पन्न होता है ।
(iii) सब्जियों में मिलडयू रोग का अध्ययन करना:
सब्जियों में सामान्यत: मिलडयू रोग के लक्षण दिखाई देते हैं । इस प्रकार के रोगों के लक्षणों में पोषक पौधे की पत्ती की सतह पर रोगजनक की वृद्धि दिखाई देती है ।
अवलोकन:
अपने आसपास के स्थानों में बाजरा, शीशम अथवा अंगूर की पत्तियों का अध्ययन करें । जब वातावरण में नमी होती है तब सामान्यत: पत्तियों की ऊपरी अथवा निचली सतह पर कपास के रेशे जैसी संरचनायें वृद्धि करती हुई दिखाई देती है । सफेद रेशे जैसी ये संरचनायें रोग के लक्षण को दर्शाती है । अंगूर की पत्तियों पर यह रोग एन्सीच्छा नेक्टर द्वारा तथा शीशम की पत्तियों पर यह रोग फाइलेक्टीनिया रोगकारक कवक द्वारा उत्पन्न होता है ।
जन्तुओं के सामान्य रोगों (गाय, कुत्ता, मुर्गी के जीवाणु तथा विषाणु जन्य रोगों का अध्ययन):
मनुष्य की तरह पालतू जानवरों में भी विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ रोग पाई जाती हैं । ये रोग पालतू जानवरों के लिये घातक भी होते हैं । ये रोग, प्रोटोजोआ, हेलमिन्थ, माइकोप्लाजा, आर्थोपोड्स जीवाणु तथा विषाणुओं के कारण होते हैं ।
अपने आसपास के उपरोक्त जन्तुओं के रोगों का निम्न लक्षणों के आधार पर अवलोकन करें :
मनुष्य में मलेरिया, मोतीझरा, पोलियो, हिपेटाइटिस रोग के लक्षणों का अध्ययन:
(1) मलेरिया या प्लाज्मोडियेसिस:
मलेरिया का मतलब Mala=Bad, Aria=Air से होता है । इस बुखार का नाम सर्वप्रथम मेक्यूश ने 1827 में दिया था । मलेरिया ज्वर मनुष्य में जब किसी मादा एनोफिलीस मच्छर के काटने से जिसके सेलाईवरी ग्रंथि (Salivary Gland) में स्पोरोजोइट्स होते हैं के मनुष्य के रक्त को चूसते समय, संक्रमण होने से पाया जाता है ।
यह प्रोटोजोआ परजीवी प्लाज्मोडियम की जातियों, (प्लाज्मोडियम वाईवेक्स, प्लाज्मोडियम मलेरियाई, प्लाज्योडियम फेल्सिपेरम तथा प्लाल्मोडियम ओवाल) द्वारा मादा एनोफिलीस, के द्वारा फैलता हैं प्लाज्योडियम के दो पोषक है:
1. प्राथमिक पोषक मनुष्य तथा
2. द्वितीयक पोषक (Secondary host) मादा एनोफिलीस है ।
यह मलेरिया जानवरों में भी पाया जाता है ।
1. प्राथमिक पोषक, मनुष्य में अलैंगिक चक्र (Asexual Cycle) जिसमें साइजोगोनी तथा
2. द्वितीयक पोषक, मादा एनोफिलीस में लैंगिक चक्र पाया जाता है जिसमें गेमेटोगोनी तथा स्पोरोगोनी अवस्थायें मिलती है ।
लक्षण:
प्लाज्मोडियम के टॉक्सिन युक्त मीरोजोइटस रक्त में आने के बाद लिवर तथा स्पलीन (Spleen) में इकट्ठे हो जाने के कारण शरीर का रंग पीला तथा टाक्सिन (विषैला) पदार्थ के कारण मलेरिया बुखार आता है जिसमें कंपकपाहट, ठण्डक, पेशियों में दर्द, तेज बुखार, तथा पसीना आता है तथा एनीमिया हो जाता है । आजकल परनीसियस या मेलेनेन्ट टरशियन मलेरिया बुखार तथा बेनिग्न टरशियन मलेरिया काफी फैल रहा
है ।
(2) मोतीझरा या टाइफाइड (Typhoid):
मोतीझरा या टायफाइड (Typhiod) सिर्फ मनुष्य में होने वाले संक्रमण S.Typhi के द्वारा होता है । टायफाइड में 3 से 4 हफ्ते तक लगातार बुखार आता है । इंट्रीक बुखार में दोनों ही टायफाइड तथा पेराटाइफाइड बुखार आते हैं जो इपिडेमिक तथा इन्डेमिक दोनों ही होते है । भारत में यह इन्हेमिक होता है ।
इन्फ्यूबेशन काल (रोग लक्षण प्रकट होने की अवधि):
प्राय: 10 से 14 दिन का होता है परन्तु कभी-कभी 3 दिन से 21 दिवस का भी होता है यह बेसिलाई के मात्रा के अन्दर जाने पर निर्भर करता है ।
संक्रमण का प्रकार (Mode of Transmission):
यह दूषित भोजन जल द्वारा मुख से मनुष्य के शरीर में प्रवेश करते हैं ।
लक्षण (Symptoms):
लगातार बुखार, कमजोरी के लक्षण, रोगी में दिखाई पड़ते हैं । भारत में मोतीझरा Antityphoid वेक्सीन का प्रयोग टायफाइड के लिये किया जा रहा है ।
ये निम्नलिखित हैं:
1. मानोवेलेन्ट एन्टीटायफाइड वेक्सीन ।
2. बाईवेलेन्ट एण्टीटायफाइड वेक्सीन ।
3. TAB वेक्सीन ।
4. लाइव ओरल Ty-21 वेक्सीन ।
(3) पोलियो (Polio):
पोलियो भारत में अभी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या बनी हुई है हालांकि इस पर 90% से ज्यादा काबू पा लिया गया है । हमारे देश में इस बीमारी से निजात पाने के लिये समय-समय पर स्कूल, कालेज तथा स्वास्थ्य केन्द्र में पोलियो ड्राप बच्चों को पिलाई जा रही है । हमारे देश में जागरूकता की कमी के कारण इस रोग पर अभी तक काबू नहीं पाया गया है ।
पोलियो, पोलियो विषाणु (Polio Virus) के द्वारा होता है जिसकी, 1,2,3, सीरोप्रकार है पोलियो वायरस बाह्य वातावरण में काफी समय तक रहता है । लकवा विषाणु (Polio Virus) Type I वायरस के कारण सबसे ज्यादा फैलता है बच्चों में फैलने वाला यह रोग बच्चों के अंगों में ज्यादातर पैरों में होता है ।
पोलियो विषाणु सबसे छोटा (10 mu व्यास में) होता है । यह वायरस सिर्फ मनुष्य में होता है तथा शरीर में संक्रमित भोजन व पानी द्वारा प्रवेश करता है बाद में यह रक्त धारा, तथा लिस्फेटिक तंत्र द्वारा फैलता है और मुख्य रूप से केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के ऊपर हमला (Attack) कर हाथ एवं पैरों की पेशियों को लकवा ग्रस्त करता है । बच्चों को पोलियो वेक्सीन Oral (SABIN) POLIO Vaccine (Opv) की तीन खुराक (Dose) पिलाई जाती हैं ।
(4) यकृत शोथ या हेपेटाइटिस (Hepatitis):
यह एक प्रकार से यकृत शोथ की बीमारी है जोकि एक प्रकार के विषाणु (Virus), अनेक प्रकार की औषधियों, रासायनिक पदार्थो तथा एल्कोहल या शराब के सेवन से होती है ।
यकृत शोध या हेपेटाइटिस कई प्रकार का होता है:
(1) विषाणु यकृत शोथ ।
(2) दीर्घ कालिक यकृत शोथ ।
(3) तीव्र एल्कोहलिक यकृत शोथ ।
इस रोग में एक विशेष प्रकार के विषाणु (Virus) हेपेटाइटिस विषाणु (Hepatitis Virus) के द्वारा यकृत में सूजन आ जाती हैं । यकृत का बढ़ना भी हो जाता है । यकृत में संक्रमण एक हेपेटोट्रोपिक विषाणु के छोटे समूह द्वारा होता है । इनमें से दो कारक हेपेटाइटिस A विषाणु (HAV) एवं हेपेटाइटिस B विषाणु (HBV) पृथक कर चुके है । हेपेटाइटिस डेल्टा विषाणु (HDV) पृथक नहीं किया गया है ।