Read this article in Hindi to learn about the modifications of adventitious roots.
मूसला जड़ों के समान ही अपस्थानिक जड़ें (झकड़ा जड़ें) भी भोजन संग्रह हेतु या पौधे को सहारा देने हेतु विभिन्न प्रकार से रूपान्तरित हो जाती हैं ।
इनमें से कुछ मुख्य निम्नलिखित हैं:
1. सतावर (Asparagus):
(i) यह सतावर की अपस्थानिक जड़ों का गुच्छे के रूप में रूपान्तरण है ।
(ii) ये अपस्थानिक जड़ का ही रूपानातरण है क्योंकि गुच्छे की सभी जड़ें तने के आधार से निकली हैं ।
(iii) प्रत्येक जड़ मध्य में फूली एवं दोनों सिरों की ओर पतली है ।
(iv) सिरों से महीन शाखाएँ निकली हैं ।
(v) प्रत्येक का आकार अनिश्चित है ।
(vi) इनका कार्य भी पौधे के लिए भोजन संग्रह करना है ।
2. मूँगफली (Ground Nuts):
(i) यह मूंगफली की अपस्थानिक जड़ों का ग्रंथिका रूपी या गांठ रूपी (nodulated) रूपान्तरण है ।
(ii) ये अपस्थानिक जड़ है क्योंकि ये तने से निकल कर जमीन में गांठें बनाती हैं ।
(iii) गाँठें समूह में हैं ।
(iv) गाँठों में नाइट्रोजन यौगिकीकरण (Nitrogen fixation) हेतु जीवाणु (bacteria) होते हैं । ये जीवाणु वायुमंडल से नाइट्रोजन का अवशोषण कर उनका यौगिक बनाते हैं । ये यौगिक पौधे के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं ।
(v) जीवाणु अपना भोजन पौधे से प्राप्त करते हैं ।
(vi) इस प्रकार ये जीवाणु पौधे के साथ सहजीवी (symbiont) के रूप में रहते हैं ।
(vii) यह सहजीविता का अच्छा उदाहरण है ।
3. करेला या अंगूर की जड़ें:
i. पौधे की अपस्थानिक जड़ें माला के मणकों के आकार में रूपान्तरित हैं ।
ii. ये जडें तने के आधार से गुच्छे के समान निकली हुई हैं ।
iii. सभी जड़ें कुछ अन्तराल से मणके के समान फूली हुई हैं ।
iv. ये भोजन संचय का कार्य करती हैं ।
4. शकरकन्द (Sweet Potato):
i. ये अपस्थानिक जड़ का रूपान्तरण है क्योंकि कन्द के समान ये जड़ें पौधे के तने से निकली हैं ।
ii. ये गुच्छे के रूप में न होकर तने की पर्वसन्धियों से निकलकर जमीन में वृद्धि करती है ।
iii. ये अनिश्चित आकार की हैं ।
iv. इनका मुख्य कार्य भी स्टार्च के रूप में भोजन संग्रह है ।
v. अत: यह शंकरकन्द की कन्दिल रूप में रूपान्तरित अपस्थानिक जड़ है ।
5. बरगद (Banyan):
i. ये बरगद की अपस्थानिक जड़ें हैं क्योंकि ये तने की शाखाओं से निकलकर भूमि की ओर वृद्धि करती हैं । इन्हें अवस्तम्भ जड़ें (prop roots) कहते हैं ।
ii. भूमि में प्रवेश करने के पश्चात् ये स्तम्भ के समान हो जाती हैं तथा मुख्य पेड़ को सहारा प्रदान करती हैं ।
iii. ये मुख्य रूप से अनुप्रस्थ दिशा में बढ़ने वाली शाखाओं को साधे रखने के लिए होती हैं ।
6. गन्ना (Sugar Cane):
i. ये गन्ने की जड़ें अपस्थानिक जड़ का ही रूपान्तरण हैं क्योंकि ये तने की पर्वसन्धियों से निकल कर भूमि में वृद्धि करती हैं ।
ii. तने के निचले भाग से निकली जड़ें भूमि में प्रवेश कर तने को सहारा देने के साथ ही खनिज लवणों का अवशोषण भी करती हैं ।
iii. प्रत्येक गाँठ के चारों ओर से निकली रहने के कारण जटा के समान दिखाई देती हैं । इसलिए इन्हें जटामूल (stilt roots) कहते हैं ।
7. पान (Betel):
i. ये पान की आरोही जड़ें (climbing roots) हैं, जो अपस्थानिक जड़ का रूपान्तरण हैं । तना कमजोर है ।
ii. तने से निकल कर ये जड़ें किसी सहारे पर चढ़ती जाती हैं एवं इस तरह से पौधे को साधने, चढ़ने एवं फैलने में सहायक होती हैं ।
iii. ये जड़ें सहारे की वस्तु में घुसकर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती हैं । ये पंजे के आकार की दिखती हैं ।
iv. जड़ें पतली, नुकीली तथा लम्बी होती हैं ।
8. राइजोफोरा (Rhizophora):
i. यह राइजोफोरा की जड़ों की शाखाओं का रूपान्तरण श्वसन मूल (respiratory roots) के रूप में हैं ।
ii. ये मुख्य जड़ों की शाखाओं से निकलकर भूमि से बाहर आ जाते हैं ।
iii. ये केवल समुद्र के किनारे दलदली स्थानों के पौधे में ही पाये जाते हैं जहाँ पौधा ज्वार के समय पूर्ण या आंशिक जल में डूब जाता है । ऐसी स्थिति में ये जड़ें जल से बाहर निकली रहती हैं ।
iv. इन श्वसन जड़ों में छिद्र होते हैं जिन्हें श्वसन स्थान कहते हैं । इन्हीं छिद्रों से जड़ों को वायुमण्डल की हवा प्राप्त होती है ।
9. अमरबेल (Cuscuta):
i. ये अमरबेल की चूषक जड़ें (sucking roots) हैं ।
ii. अमरबेल एक परजीवी पौधा है, अत: इसके तने से कुछ जड़ें निकलकर पोषक (host) पौधे के ऊतकों में घुस जाती हैं । इन्हीं जड़ों से अमरबेल पोषक से खाद्य-पदार्थ चूसती है ।
iii. यह बेल पीले रंग की होती है क्योंकि इसमें हरित कणक नहीं होते । अन्य उदाहरण- आकाश बेल, गंठवा, भांगरा, बांदा आदि ।
10. वैण्डा (Vanda):
i. ये वैण्डा की विशिष्ट जड़ें हैं जो हवा में लटकती हैं ।
ii. यह पौधा अन्य पेड़-पौधों पर उगता है, किन्तु परजीवी नहीं होने से श्वसन हेतु स्वयं की जड़ें बनाता है ।
iii. इन्हें अधिपादप मूल (ephiphytic roots) कहते हैं ।
iv. ये जड़ें चूंकि हवा में लटकती हैं, वायव मूल भी कहलाती हैं ।
v. प्रत्येक जड़ एक स्पंजी ऊतक ग्राही गुंठिका द्वारा घिरा रहता है ।
vi. ये गुंठिका ही हवा से नमी सोखती हैं ।
11. अजूबा (Bryophyllum):
i. ये अजूबे की पत्तियों की पर्णमूल हैं जो अपस्थानिक जड़ों का रूपान्तरण हैं ।
ii. अजूबे के पौधे से जब कोई पत्ती भूमि पर गिर जाती है तब पत्ती के किनारों पर कलिकाएँ बन जाती हैं जिन्हें पर्णकलिका कहते हैं ।
iii. ये जड़ें पत्ती के किनारों पर स्थित इन्हीं पर्णकलिकाओं से निकलती हैं ।
iv. ये जड़ें गुच्छे के रूप में रहती हैं तथा पर्ण कलिकाओं एवं पूर्ण पत्ती को भूमि में स्थिर रखती हैं ।
v. ये जड़ें एक नये पौधे को जन्म देकर वर्धी प्रजनन का कार्य करती हैं । अन्य उदाहरण- बिगोनिया, हैजा आदि ।