Read this article in Hindi to learn about the thirteen special types of inflorescence seen in flowers, explained with the help of suitable diagrams.

Type # 1. गुलमोहर का प्रारूपी असीमाक्ष (Typical Raceme) पुष्पक्रम:

i. यह गुलमोहर का पुष्पक्रम है ।

ii. इसका मुख्य अक्ष (main axis) लम्बा होता है ।

iii. पुष्प सवृन्त हैं जो कि अक्ष के पार्श्व में लगे हैं ।

iv. कुछ पार्श्व शाखाओं में भी पुष्प हैं ।

v. अक्ष पर पुष्प अग्राभिसारी क्रम (acropetal succession ) से लगे हैं अर्थात् नीचे के फूल बड़े व पुराने जबकि शीर्ष की ओर फूल छोटे एवं नये हैं ।

अत: यह पुष्पक्रम प्रारूपी असीमाक्षी (typical racemose) प्रकार का है । चूंकि पार्श्व शाखाएँ भी पुष्पयुक्त होकर असीमाक्षी पुप्पक्रम दर्शाती हैं अत: यह यौगिक असीमाक्ष प्रकार का पुप्पक्रम है । (साधारण असीमाक्षी पुष्पक्रम सरसों, मूली आदि में मिलता है ।)

Type # 2. चौलाई (Amaranthus) का स्पाइक (Spike) पुष्पक्रम:

i. यह गुलमोहर के पुष्पक्रम के ही समान है किन्तु पुष्प अवृन्त है ।

ii. मुख्य अक्ष लम्बा है एवं पुष्प पार्श्व में हैं ।

iii. अक्ष पर पुष्प अग्राभिसारी क्रम से लगे हैं ।

अत: यह चौलाई का स्पाइक प्रकार का आसीमाक्ष पुष्पक्रम ।

अन्य उदाहरण:

लटजीरा ।

Type # 3. गेहूँ का स्पाइकलेट (Spikelet) पुष्पक्रम:

i. इस पुष्पक्रम में मुख्य अक्ष छोटा  है एवं  स्पाइक पुष्पक्रम का ही एक रूप है ।

ii. पुष्प अवृन्त या सवृन्त दोनों ही प्रकार के होते हैं ।

iii. प्रत्येक स्पाइकिका के आधार पर तीन सहपत्र हैं, जिन्हें तुष कहते हैं।

iv. नीचे के दो तुष के कक्ष में कोई फूल नहीं है अत: इन्हें रिक्त तुष (empty glume) कहते हैं । तीसरे तुष के अक्ष में फूल होता है अत: उसे पुष्पी तुष (flowering glume) कहते हैं ।

v. पुष्पीतुष के विपरीत एक सहपत्रिका (bracteole) होती है जिसे पेल कहते हैं ।

vi. फूल तुष एवं पेल से घिरा रहता है ।

उपरोक्त लक्षणों के कारण यह गेहूँ का स्पाइकिका प्रकार का असीमाक्षी पुष्पक्रम है ।

अन्य उदाहरण:

सभी प्रकार के घास के पुष्प ।

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Type # 4. शहतूत का केटकिन (Catkin) पुष्पक्रम:

i. यह शहतूत का पुष्पक्रम है ।

ii. इसका मुख्य अक्ष पतला एवं पेन्डुलम के समान लटका हुआ है ।

iii. अक्ष पर लगे गुच्छ के रूप में स्पाइक पुष्पक्रम का ही रूप है ।

iv. पुष्प एकलिंगी है ।

v. पुष्प अवृन्त है एवं अग्राभिसारी क्रम से अक्ष पर लगे हैं ।

उपरोक्त लक्षणों के कारण यह शहतूत के फूलों का कैटकिन प्रकार का असीमाक्षी पुष्पक्रम हैं ।

अन्य उदाहरण:

भोजपत्र (Betula)

Type # 5. केले का स्पैडिक्स (Spadix) पुष्पक्रम:

i. यह केले के फूलों का गुच्छा है ।

ii. इसका अक्ष गूदेदार (fleshy) है तथा बड़े एवं रंगीन सहपत्र (bract) से ढँका रहता है । इस सहपत्र को स्पेथ (spathe) कहते हैं ।

iii. मुख्य अक्ष पर दो पृथक गुच्छों में एकलिंगी पुष्प लगे हैं । निचला गुच्छा मादा पुष्पों का तथा ऊपरी गुच्छा नर पुष्पों का है ।

iv. पुष्प अवृन्त एवं अग्राभिसारी क्रम में हैं ।

v. दोनों पुष्प गुच्छों के मध्य रिक्त स्थान पर अक्ष रोमयुक्त (hairy) है ।

vi. इस प्रकार का पुष्पक्रम भी असीमाक्षी का ही एक प्रकार है जिसे स्पेडिक्स कहते हैं ।

अन्य उदाहरण:

अरबी, खजूर, मक्का आदि ।

Type # 6. कैंडिटफ्ट (Iberis) का समशिख (Corymb) पुष्पक्रम:

i. ये कैंडीटफ्ट के फूल हैं ।

ii. फूलों का मुख्य अक्ष अपेक्षाकृत छोटा है ।

iii. अक्ष पर नीचे के फूलों के पुष्पवृन्त ऊपर के फूलों के पुष्पवृन्तों से बहुत लम्बे होते हैं, इस कारण सभी पुष्प एक ही तल पर आ जाते हैं । ऐसी स्थिति वाले पुष्पक्रम को समशिख कहते हैं ।

iv. पुष्प सवृन्त है एवं अग्राभिसारी क्रम से लगे हैं ।

उपरोक्त लक्षणों के कारण यह सहशिख प्रकार का पुष्पक्रम एक प्रकार का असीमाक्षी पुष्पक्रम ही है ।  

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अन्य उदाहरण:

वाल फ्लावर (Wall flower)

Type # 7. धनिये का पुष्पछत्र (Umbel) पुष्पक्रम:

i. यह धनियों के फूलों का गुच्छा है ।

ii. मुख्य अक्ष छोटा है एवं शीर्ष स्थान से कई शाखाएँ निकली हैं । शाखाओं के अक्ष भी छोटे एवं फूल युक्त हैं ।

iii. पुष्प अक्ष के शीर्ष पर एक ही बिन्दु से फैले हुए दिखाई देते हैं ।

iv. सभी पुष्पों के पुष्पवृन्त लगभग एक ही लम्बाई के हैं ।

v. फूल निकलने के स्थान पर सहपत्रों का चक्र (whorl of bracts) होता है जिसे सहपत्रक चक्र (involucre) कहते हैं ।

उपरोक्त लक्षणों के आधार पर यह पुष्पक्रम भी असीमाक्ष का ही एक रूप है । इसकी छत्री आकृति के कारण इसे पुष्पछत्र कहते हैं । फूँक शाखाओं पर भी पुष्पछत्र हैं अत: यह संयुक्त पुष्पछत्र (compound umbel) है ।

अन्य उदाहरण:

सौंप, गाजर, जीरा आदि ।

Type # 8. सूर्यमुखी का मुंडक (Capitulum) पुष्पक्रम:

i. यह सूर्यमूखी का एक फूल वस्तुत: अनेक फूलों का गुच्छ है ।

ii. मुख्य अक्ष चपटा है ।

iii. मुख्य अक्ष के शीर्ष पर असंख्य अवृन्त पुष्प स्थित हैं ।

iv. बाहरी पुष्प पुराने एवं भीतरी नये होते हैं ।

v. पुष्प अपूर्ण होते हैं इसलिए इन्हें पुष्पक (floret) कहते हैं ।

vi. बाहर के पुष्पक जो दलपुंज के समान है उन्हें रश्मि पुष्पक (ray florets) कहते हैं । ये अलिंगी होते हैं ।

vii. रश्मि पुष्पकों से घिरे छोटे एवं मध्य के पुष्यकी को बिम्ब पुष्पक (disc florets) कहते हैं । ये द्विलिंगी होते हैं ।

viii. उपरोक्त लक्षणों के आधार पर यह सूर्यमुखी का फूल वस्तुत: मुंडक प्रकार का पुष्पक्रम है जो असीमाक्षी श्रेणी में आता है ।

अन्य उदाहरण:

पैदा, कुसुम, बबूल, कदंब, छुइमुई आदि ।

Type # 9. कपास का ससीमाक्षी (Cymose) पुष्पक्रम:

i. यह कपास का पुष्पक्रम है ।

ii. मुख्य अक्ष का अन्त एक फूल में है।

iii. फूल में अन्त होने से पूर्व इसके पार्श्व में एक शाखा उत्पन्न हो जाती है । यह पार्श्व शाखा स्वयं भी एक शाखा देकर फूल में अन्त हो जाती है ।

iv. पुत्री अक्ष (daughter axis) एक तरफ के बाद दूसरी तरफ विकसित होते हैं, जिससे एक टेढ़ी-मेढ़ी आकृति बन जाती है ।

अत: यह कपास का एकशाखीरा ससीमाक्षी (Uniparous cymose) पुष्पक्रम हैं ।

Type # 10. चमेली का ससीमाक्षी (Cymose) पुष्पक्रम:

i. यह चमेली के फूलों का पुप्पक्रम है ।

ii. मुख्य अक्ष एक फूल में समाप्त हो रहा है ।

iii. फूल के आधार पर मुख्य दो पार्श्व शाखाएँ उत्पन्न करता है ।

iv. फूल के आधार पर ये पार्श्व शाखाएँ भी एक फूल के रूप में अन्त होने के साथ ही दो पार्श्व शाखाएँ उत्पन्न करती हैं ।

अत: यह चमेली का द्विशाखी ससीमाक्षी (Biparus cymose) पुष्पक्रम हैं ।

अन्य उदाहरण:

हरसिंगार, बेला, जूही आदि।

Type # 11. लालपत्ती (Euphorbia) का कटोरिया या साइएथियम (Cyathium) पुष्पक्रम:

i. यह लालपत्ती का विशेष प्रकार का पुष्पक्रम है ।

ii. इसमें एक कटोरी या प्याले के आकार का सहपत्र चक्र (involucre) है जिसमें मकरंद का स्राव करनेवाली ग्रंथियाँ (nectar glands) होती हैं ।

iii. सहपत्र चक्र के केन्द्र में एक लम्बे वृन्त वाला मादा पुष्प होता है जो अनेक छोटे वृन्तों वाले नर पुष्पों से घिरा होता है ।

iv. मादा पुष्प केवल जायाँग भाग के रूप में रह गये हैं । इन पुष्पों के शेष भाग हासित (reduced) हो जाते हैं अर्थात् पुष्प में दिखने वाला प्रत्येक पुंकेसर वस्तुत: एक पुष्प का प्रतिनिधित्व करता है । प्रत्येक पुंकेसर के आधार पर एक शल्की सहपत्र (scaly bract) होता है ।

v. पुष्पक्रम में पुष्प अपकेन्द्री या ससीमाक्ष क्रम में विकसित होते हैं ।

अत: यह लालपत्ती का विशिष्ट प्रकार का साइएथियम पुष्पक्रम है ।

अन्य उदाहरण:

नागदमन (Pedilanthus)

Type # 12. तुलसी का वर्टिसिलेस्टर (Verticillaster) पुष्पक्रम:

i. यह तुलसी का विशिष्ट प्रकार का पुष्पक्रम है ।

ii. दो सहपत्रों के कक्षों से दो मुख्य अक्ष निकलते हैं । प्रत्येक अक्ष एक फूल में अन्त हो रहा है । अत: यह ससीमाक्ष पुष्पक्रम का ही एक रूप है ।

iii. प्रत्येक अक्ष में से दो पार्श्व शाखाएं उत्पन्न होती हैं । अत: द्विशाखी ससीमाक्ष पुष्पक्रम के समान है ।

iv. पार्श्व शाखाएँ अनेक शाखिकाएँ (branchlets) उत्पन्न करती हैं जो कि प्रत्येक एक फूल के रूप में अन्त होता है । ये शाखिकाएँ एकान्तर रूप में व्यवस्थित हैं । अर्थात् एक शाखी ससीमाक्षी पुष्पक्रम को भी दर्शाता है ।

v. अत: यह पुष्पक्रम ससीमाक्षी है । द्विशाखी के रूप में आरम्भ होकर यह एकशाखी के रूप में समाप्त होता है । इसीलिये यह विशेष प्रकार का पुष्पक्रम वर्टिसिलेस्टर कहलाता है ।

अन्य उदाहरण:

पुदीना, कोलियस आदि ।

Type # 13. अंजीर का हाइपैन्थोडियम (Hypanthodium):

i. यह अंजीर का पुष्पक्रम है ।

ii. मुख्य अक्ष अत्यन्त छोटा है एवं एक गूदेदार खोखली गुहा (receptacle) के रूप में रूपान्तरित हो गया है ।

iii. प्रत्येक गुहा एक सिरे पर छिद्र द्वारा खुलती है जो शल्कों द्वारा सुरक्षित रहता है ।

iv. गुहा की आंतरिक दीवार के आधार पर मादा पुष्प एवं शीर्षस्थ छिद्र के पास नर पुष्प स्थित हैं ।

अत: यह विशिष्ट प्रकार का पुष्पक्रम है जिसे हाइपैन्थोडियम कहते हैं ।

अन्य उदाहरण:

बरगद, पीपल, गूलर आदि ।

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